मेरे सदगुरु सुगढ़ सुजान चुनरिया रंग देंगे।
वो तो हैंगे दीनदयाल चुनरिया रंग देंगे।।
इस भजन की व्याख्या करते हुए पूज्य श्री ने बताया कि आध्यात्म के पथ पर चलते-चलते , तप की भट्ठी में तपे हुए, ध्यान रुपी अनुसन्धान करके जिन संत महापुरुषों को प्रभु के दरबार से अनुभूतियाँ हुईं , ऐसे संतों को सुगढ़ कहा जाता है । जिसे प्रभु के रहस्यों की जानकारी हो, जिसे शुभ का ज्ञान हो तथा वह प्रभु के प्रेम में ओत-प्रोत हो ऐसे संतों को सुजान कहते है।
पुज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी आगे समझाते हुए कहते हैं कि एक सुगढ़ सुजान संत वही है जिसकी नस-नस, रोम-रोम परमात्मा के गूढे रंग में रंगा हो, जो राम नाम से भरपूर हो। ऐसे महापुरुषों संतों से हमारी चित्त चुनरिया रंगती है । अगर किसी का दीपक जला हुआ हो तभी वह किसी का दीपक जला सकता हैं । ऐसे ही कोई आत्मज्ञानी , परमेश्वर को जानने वाला, अनुभवी संत किसी जिज्ञासु के अन्तःकरण में प्रभु के नाम का दीपक प्रजव्वालित करता है ।
श्री रामशरणम आश्रम , गुरुकुल डोरली,
पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी
अमृतमयी प्रवचन,
प्रस्तुती राकेश खुराना
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