गुरु अर्जुनदेव जी की अमृत वाणी
सभ किछु घर महि बाहरि नाही
बाहरि टोलै सो भरमि भुलाही |
गुरपरसादी जिनी अंतरि पाइया |
सो अंतरि बाहरि सुहेला जीउ |
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भाव : जो कुछ है हमारे शरीर में है , बाहर कुछ भी नहीं है , वे समझा रहे हैं कि अमृत हमारे
शरीर में है | इस समय आत्मा इस शरीर रुपी घर में है | जो कुछ हमने पाना है वह इस
शरीर के भीतर है | जो इन्सान बाहर ही भटकता रहता है , वह माया के भ्रम में फँसा रह
जाता है | परन्तु जिसने गुरु की कृपा से अपने अन्दर अमृत पा लिया , फिर तो वह इन्सान
अन्दर और बाहर अमृत से भर जायेगा | अगर हमें दुखों से दूर होना है , अपने आपको सही
रूप से जानना है तो अंतर में शब्द से जुड़ना होगा |
वाणी : गुरु अर्जुनदेव जी
पंचम सच्चे पादशाह गुरु अर्जन देव जी गुरु राम दास जी के सबसे छोटे सुपुत्र थे |इनका जन्म संवत १६२० की वैसाख वडी सात [१५ -४-१५६३] को हुआ |गुरु जी ने हरमिंदर साहेब की नीवं एक मुस्लिम संत हजरत मियाँ से दिसंबर १६४४ को रखवाई और साम्प्रदाईक सौहार्द की नीवं रखी| गुरु जी ने तरनतारण साहेब + करतारपुर+ हरगोबिन्द पुर जैसे शहरों की नीवं रखी| गुरु जी ने लाहौर में भी एक बाओली का निर्माण कराया था मगर तत्कालीन शहंशाह ने उसे खत्म करवा दिया इसके बाद महाराजा रंजीत सिंह ने इसका जीर्णोद्धार कराया लेकिन १९४७ में उन्मादी भीड़ ने इसे फिर बंद करा दिया|
प्र्स्तुति राकेश खुराना
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