माँ भगवती के मंडपों में आज माता के कात्यायनी के छठे स्वरुप की पूजा का विधान है|इनसे पूर्व और पश्चात भी भारतीय नारी अपने पति के गौत्र से जानी जाती है मगर माँ का यह स्वरुप और नाम उनके ऋषि पिता के गौत्र से जाना जाता है|
शास्त्रों के अनुसार कात्यायन ऋषि ने कठोर तप किया और माँ दुर्गा को अपने यहाँ कन्या के रूप में जन्म लेने का सौभाग्य पाया |इसीलिए इनका नाम कात्यायनी पडा|इसीलिए यह छठा स्वरुप ऋषि+मुनियों+साधकों की प्रसन्नता के लिए माना जाता है|
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