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स्वंत्रता सेनानी डाक्टर [कप्तान] लक्ष्मी सहगल का आज ९७ वर्ष की आयु में निधन हो गया

स्वंत्रता सेनानी डाक्टर [कप्तान] लक्ष्मी सहगल का आज ९७ वर्ष की आयु में निधन हो गया कानपूर में उन्होंने अंतिम साँस ली |
१९ जुलाई को ह्रदय रोग के कारण इन्हें अस्पताल के आई सी यूं में भर्ती कराया गया था जहां मस्तिष्क आघात भी हो गया इनकी हालत दिन बदिन बिगड़ती ही चली गई आज उन्होंने अंतिम सांस ली| अंतिम समय में इनकी पुत्री[ लेफ्टिस्ट नेत्री] सुहासिनी अली साथ थीं |
२४-१०-२०१४ को चेन्नई में स्वामीनाथन परिवार में जन्मी लक्ष्मी को देश के लिए मर मिटने का जज्बा अपने स्वंत्रता प्रेमी परिवार से ही मिला था |इसी जज्बे ने लक्ष्मी को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस से मिलवाया जहां आज़ाद हिंद सरकार में नेता जी ने इन्हें मिनिस्टर फार वोमेन अफेयर्स बनाया और झांसी रेजिमेंट का कप्तान बनाया\इसके बाद सहगल परिवार में शादी हुई और आज़ादी के बाद कानपुर में ही बस गए \यहाँ यह परिवार पकिस्तान विभाजन के कारण आ रहे रिफ्युजिओं की सहायता में समर्पित रहे|१९९८ में तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण के द्वारा लक्ष्मी सहगल को पदम् विभूषण एवार्ड प्रदान किया गया Permalink: http://jamosnews.com

मुक़द्दस दरगाह में फिल्म वालों की एंट्री पर बैन हो = दरगाह दीवान

मुक़द्दस दरगाह अजमेर शरीफ के दीवान जैनुल आबेदीन ने दरगाह में आने वाले फिल्म वालों की एंट्री पर कड़ा एतराज जताया है|
इनके अनुसार इस्लाम में न्रत्य और फिल्मो की मनाही है|इसीलिए अपनी फिल्मो की सफलता के लिए यहाँ आकर कामना करना उचित नहीं है |
दरगाह अजमेर शरीफ पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मजहब के क्यों न हों, ख्वाजा के दर पर दस्तक देने के बाद उनके जहन में सिर्फ अकीदा ही बाकी रहता हैयह हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक है|
इतिहास के पन्नों में झांकने पर पता चलता है कि बादशाह अकबर को भी इसी मुक़द्दस दरगाह पर माथा टेकने से पुत्र[सलीम] की प्राप्ति हुई थी ।ख्वाजा साहब का शुक्रिया अदा करने के लिए अकबर बादशाह ने आमेर से अजमेर शरीफ तक पैदल आये थे |पिछले दिनों पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी भी आये थे और एक बड़ी राशि दे कर गए थे यहाँ हाजरी देने वालों में मज़हब की कोई दीवार नहीं है|फिल्म वाले भी अपनी फिल्मो कि सफलता और प्रसिद्धि के लिए आते हैं|इसी पर एतराज जताते हुए दरगाह दीवान[प्रमुख] श्री जैनुल द्वारा इस्लाम के बुद्धिजीवी+अनुयायी +उलेमाओं से फिल्म वालों की एंट्री पर विचार करने की|अपी;ल की गई है |
तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ वास्तुकला की दृष्टि से भी बेजोड़ है…यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद खूबसूरत है। इसका कुछ भाग अकबर ने तो कुछ जहाँगीर ने पूरा करवाया था। माना जाता है कि दरगाह को पक्का करवाने का काम माण्डू के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने करवाया था। दरगाह के अंदर बेहतरीन नक्काशी किया हुआ एक चाँदी का कटघरा है। इस कटघरे के अंदर ख्वाजा साहब की मजार है। यह कटघरा जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने बनवाया था। दरगाह में एक खूबसूरत महफिल खाना भी है, जहाँ कव्वाल ख्वाजा की शान में कव्वाली गाते हैं।