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Category: Poetry

सद्गुरु का वास जैसे आटे में नमक समाया हुआ है

अपने तन की खबर नहीं, सजन की खबर ले आवे कौन
ना मैं माटी ना मैं अग्नि ना पानी ना पवन
बुल्लिया साईं घट-घट वसदा
ज्यों आटे में लौंन.
भावार्थ: सूफी संत बुल्लेशाह समझाते हुए कहते हैं जब तुम खुद को ही नहीं समझ
पाए तो सद्गुरु को क्या जान पाओगे? सद्गुरु के पास जाने से पहले
अपने आप को जान लेने की आवश्यकता है कि हम आत्मा हैं हम
शरीर नहीं हैं. मिटटी , आग, पानी अथवा वायु से तो यह भौतिक
शरीर बना है जो नश्वर है. मेरे तो घट-घट मैं सद्गुरु के नाम का
वास उसी प्रकार हैं जैसे आटे में नमक समाया हुआ है.
सूफी संत बुल्लेशाह की वाणी

राम नाम की पूँजी मुक्ति का आधार

पूँजी राम नाम की पाइए. पाथेय साथ नाम ले जाइये
नशे जन्म मरण का खटका, रहे राम भक्त नहीं अटका.

भाव : संतजन हमें समझाते हुए कहते हैं कि मनुष्य को इस जीवन में राम नाम का धन एकत्र करना चाहिए
क्योंकि केवल यही धन ऐसा है जो परलोक में भी मनुष्य के साथ जाता है इसके सिवाय कोई और सांसारिक
वस्तु साथ नहीं जाती . जिस मनुष्य के पास राम नाम की पूँजी है उसे जीवन मृत्यु के आवागमन का संशय नहीं रहता .
तथा मुक्ति मार्ग में आने वाली विघ्न- बाधाएँ परमात्मा की कृपा से समाप्त हो जाती हैं .

स्वामी सत्यानन्द जी महाराज द्वारा रचित अमृतवाणी का एक अंश
प्रेषक: श्री राम शरणम् आश्रम, गुरुकुल डोरली, मेरठ

परमात्मा से प्रेम करने पर संसार और हमारी जिन्दगी ख़ूबसूरत हो जाती हैं.

प्रेम का उन्माद

मेरा कोई दोस्त नहीं है, मेरे प्रियतम के सिवाय,
मुझे कोई काम नहीं है, उसके प्रेम के सिवाय
खिजां नसीब रास्ते भी सज गए संवर गए,
उन्हें बहार ही मिली, जहाँ गये, जिधर गए..
भाव-
रूहानी संत, संत दर्शन सिंह जी महाराज आत्मा और परमात्मा के प्रेम के सम्बन्ध में कहते हैं
जिस प्रकार कोई प्रेमी दिन-रात अपनी प्रेमिका के बारे में सोचता रहता है , वैसे ही जब हमारी आत्मा एक बार
प्रभु से मिलकर उसके प्रेम से ओत-प्रोत हो जाती हैं, तो वह भी उसी हालत में रहती है.
परमात्मा से प्रेम करने पर हमारा संसार और हमारी जिन्दगी ख़ूबसूरत हो जाती हैं. हमारे जीवन में अनगिनत फूलों
की सुगंध आ जाती है. ऐसा लगता हैं मानो सर से पैर तक हमारे अन्दर ईश्वर का प्रेम बह रहा हो.

संत हमारे जीवन के प्राणाधार हैं

मीराबाई की वाणी
साधू हमारे हम साधुन के, साधू हमारे जीव,
साधुन मीरा मिल रही, जिमी माखन मैं घीव

.
भावार्थ – सत्संग के रंग में रंगी मीरा कहती है – संत ही मुझे सबसे प्रिय हैं.,वे ही मेरे अपने हैं. संत ही मेरे जीवन और प्राण हैं . मैं संतों की हूँ. मैं उनकी संगती में
यूं समा गई हूँ जिस प्रकार मक्खन मैं घी समाया रहता है .

राहुल गांधी जी अब तो पी एम् बन जाओ

राहुल गांधी जी आप कब प्रधान मंत्री बनोगे
पी एम् बन कर कब मेरी नैय्या पर करोगे
तुमने पार किया ४० वां मेरा हो गया दह्योडा
अब हाँ कह कर दोनों का बेडा बन्ने ला दे
बैठे हैं कही घाघ यहाँ कुर्सी के पाए जकडे
मंमोहने बेचारे के दिल और दिमाग उलझाये
मन मोहनी जान है आफत में इसकी जान बचाओ
अब मान जाओ जल्दी से प्रधान मंत्री बन जाओ