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न्यायिक स्वतन्त्रता के सिद्धांत का पालन सरकार करे =प्रधान न्यायधीश एच एस कपाडिया

कल भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्र के नाम सन्देश में संवेधानिक संस्थाओं का सम्मान किये जाने को राष्ट्रीय हित में बताया था और आज एक संवैधानिक संस्था न्यायपालिका के न्यायाधीश ने दूसरी संस्था विधायकी को न्यायिक सिद्धांत कि अवधारणा से नज़र नहीं हटाने के लिए
टिपण्णी कर दी है|
भारत के प्रधान न्यायधीश एच एस कपाडिया ने लोकतंत्र के एक मजबूत संस्था न्यायपालिका की स्वतंत्रता से छेड़ छाड़ न किये जाने के लिए सरकार को आगाह किया |उन्होंने न्यायपालिका के अपने दायरे से बाहर जाने की बात तो स्वाकरी मगर उसके साथ ही न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बहाली के लिए आवाज़ भी उठाई |
श्री कपाडिया ने उच्चतम न्यायालय में स्वाधीनता दिवस समारोह में न्यायिक मानक एवं जवाब देही विधेयक की तरफ इशारा करते हुए कहा की सरकार न्यायधीशों की जवाब देही तय करने के लिए क़ानून तो बना सकती हैलेकिन उसे न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के साथ छेड़ छाड़ नहीं करनी चाहिए |
गौर तलब है कि इस विधेयक को अभी राज्य सभा में पारित किया जाना है इसमें एक धारा पर चलती अदालत में न्यायाधीश को अवांछित टिपण्णी करने से रोकने का प्रावधान है|जसी पर न्यायाधीशों को एतराज़ है|
दरअसल इन दोनों संस्थाओं में पिछले कुछ समय से शीत युद्ध जैसी स्थिति देखी जा रही है कमोबेश येही समस्या पड़ोसी मुल्क को भी परेशान किये हुए हैं |चूंकि श्री प्रणव ने संवैधानिक संस्थाओं के सम्मान में कोई कम्प्रोमाईज नहीं किये जाने की बात कह दी है सो अब न्यायपालिका ने अपनी स्वतन्त्रता के लिए आवाज़ उठा दी है|

Comments

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