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राजभाषा को प्रोन्नत करने के लिए भी आरक्षण का प्रावधान भी करो

१४ सितम्बर १९४९ को राजभाषा का दर्जा प्राप्त होने के उपरांत आज ६३ साल बाद भी हिंदी राष्ट्रीय स्वरुप को पाने को तरस रही है| देश भर में आज हिंदी दिवस मनाया जा रहा है|लेकिन आज भी मात्र ओपचारिकता भर ही दिखाई देती है| दिल्ली के विज्ञानं भवन तक में आयोजित राष्ट्रीय हिंदी दिवस में हिंदी की दुर्दशा देख कर बेहद दुःख हुआ| राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जब तक लिखा भाषण पड़ते रहे हिंदी में पड़ते रहे मगर भाषण की ओपचारिकता समाप्त होते ही उन्होंने अंग्रेज़ी में क्षमा मांगनी शुरू कर दी और अंग्रेज़ी में ही अगले साल हिंदी सुधारने का आश्वासन देकर पोडियम माईक छोड़ा | हिंदी को लेकर गंभीरता कहीं दिखाई नहीं देती|यहाँ तक की मंत्रालयों की लाखों रूपये खर्च करके बनाई गई वेब साईट्स पर हिंदी के बजाय अंग्रेज़ी को ही प्राथमिकता दी जा रही है|आज कल आरक्षण का दौर है|इसीलिए क्या राजभाषा को राष्ट्र भाषा में प्रोन्नत करने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया जा सकता है|
भारत में हिंदी को 14 सिंतबर 1949 को राजभाषा का दर्जा दिया गया। इसके बाद राजभाषा अधिनियम 1963 और फिर राजभाषा नियम 1976 बनाया गया जिसके तहत केंद्र सरकार के मंत्रालयों, विभागों, कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों व अन्य संस्थाओं में हिंदी में कामकाज को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। अलग से हिंदी अनुभाग बनाये गए प्रति वर्ष हिंदी की प्रतियौगिताएं आयोजित होती है|शिक्षण संस्थानों ने हिंदी दिवस मनाया जाता है| लेकिन राजभाषा आज भी राष्ट्र भाषा नहीं बन पाई है| राष्ट्रपति पहले अनेकों मंत्रालय संभल चुके हैं ऐसे में उन मंत्रालयों में हिंदी की प्रग्रती को समझा जा सकता है|पी एम् की साईट पर भी अंग्रेज़ी का ही बोल बाला है|
लोकसभा की वेबसाइट में अंग्रेजी की वेबसाइट हिंदी की तुलना में बहुत समृद्ध है। उदाहरण के तौर पर लोकसभा के अधीन विभागों से संबंद्ध स्थायी 16 समितियों के प्रतिवेदन को ले सकते हैं|
राज्यसभा की हिंदी वेबसाइट में हिंदी में प्रेस रिलीज की संख्या कम है। इस साल अंग्रेजी की साइट पर 9 जनवरी, 17 अप्रैल, 30 अप्रैल, 18 मई और 6 जून को प्रेस रिलीज अपलोड की गई जबकि हिंदी में 19 मार्च, 17 अप्रैल, 18 मई, 6 जून को प्रेस रिलीज अपडेट की गई।
अधिकाँश मंत्रालयों की साइट्स पर लगभग सभी महत्वपूर्ण आदेश अंग्रेजी में हैं।
विपक्ष के रूप में भाजपा की वेब साईट पर भी हिंदी के बजाय अंग्रेज़ी को ही महत्त्व दिया जा रहा है| अध्यक्ष एल के अडवाणी का ब्लाग तो अंग्रेज़ी में ही है|
सरकारी कार्यालयों में प्रथक हिन्ढी अनुभाग है+ कक्ष है+अधिकारी है स्टाफ है मगर ज्यादातर को दुसरे कायों में लगा दिया जाता है| मेरठ में केन्द्रीय सरकार के एक विभाग में तो यह आलम है कीएक अधिकारी को दो कार्यालयों का प्रभार दिया गया है|स्टाफ को दूसरे कामो पर लगाया गया है|इन्हें तो केवल रिपोर्ट्स बनाने की ओपचारिकता पूर्ण करने के लिए बुला लिया जाता है|