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अन्ना और अरविन्द के अराजनैतिक संबंधों में अब राजनीतिक कडवाहट

अन्ना और अरविन्द के अराजनैतिक संबंधों में अब कडवाहट आने लग गई है|अरविन्द केजरीवाल राजनीतिक पार्टी बनाने के पक्ष को उजागर कर चुके हैं और इस दिशा में एक प्रदर्शन भी कर चुके हैं|अन्ना हजारे अभी तक पक्ष या पार्टी बनाने के विषय में फैंसला फायनल नहीं कर पाए हैं| जंतर-मंतर के मंच से राजनीति विकल्प की बात कहने वाले अन्ना अब पार्टी बनाने के खिलाफ बयान दे रहे हैं।
टीम अरविंद अगर चुनाव लड़ती है तो वो उसके लिए प्रचार भी करेंगे या नहीं यह भी साफ़ नहीं हुआ है| अन्ना आंदोलन के जरिए सिर्फ जनता को जगाने के पक्ष में दिख रहे हैं। जिससे जनता योग्य उम्मीदवारों को चुनकर संसद और विधानसभाओं में भेज सके। इसके लिए अन्ना विकल्प देने की बात जरूर कहते आ रहे हैं|
कोयला आवंटन पर अरविंद के घेराव आंदोलन पर किरण और अरविंद के बीच मतभेद उभर कर सामने भी आ गए। अन्ना ने भी माना कि दोनों में इस बात पर मतभेद है, हालांकि उन्हें उम्मीद है कि इस मतभेद को मिल बैठ कर सुलझा लिया जाएगा। लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई पहल होते नहीं दिख रही|
टीम अन्ना दिल्ली का विधानसभा चुनाव लड़ने के संकेत दे रही है|अन्ना ने अभी तक अपना विरोध प्रकट नहीं किया है| आंदोलन के दौरान मैं अन्ना हूं कि टोपी, मैं अरविंद हूं कि टोपी में बदलने लगी है \इससे भी अन्ना के दिल पर चोट लगना स्वाभाविक ही है|
बीते महीने अन्ना हजारे ने ऐलान किया था कि वो जनता को राजनीतिक विकल्प देंगे
गौरतलब है कि जंतर मंतर के आखिरी अनशन से पहले अन्ना लगतार राजनीति में उतरने से इनकार करते रहे हैं। लेकिन जब अरविंद-मनीष और गोपाल राय के अनशन पर सरकार ने कान नहीं दिया तो अन्ना के रुख में बदलाव साफ दिया। आईबीएन नेटवर्क के एडिटर इन चीफ राजदीप सरदेसाई से बात करते हुए अन्ना ने कहा कि अगर भ्रष्टाचार की सुरसा के वध के लिए सियासी पहल की जरूरत हुई और जनता ने आदेश दिया तो वो इनकार नहीं कर सकेंगे।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत से ही सत्ता पक्ष से अन्ना हजारे को इस बात की चुनौती दी जाती रही कि चुनाव मैदान में मुकाबला करके दिखाएं। लेकिन अन्ना कभी इसके हक में नहीं रहे। अन्ना का मानना था कि राजनीतिक दल बनाते ही आंदोलन की धार कमजोर पड़ जाएगी।
जाहिर है अन्ना का ताजा रुख उनके पहले के रुख से अलग दिख रहा है। जो अन्ना समर्थकों और सहयोगियों के पीछे खड़े रहने की बात कर रहे थे वो अब साफ कह रहे हैं कि पार्टी बनाने और चुनाव लड़ने की कोई जरूरत नहीं है। वो राजनीतिक विकल्प की बात तो अब भी कर रहे हैं लेकिन ये विकल्प जन जागरण का है खुद सियासत में उतरने का नहीं। अन्ना ने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का दायरा बढ़ाने की बात करते हुए यहां तक कह डाला कि अगर आंदोलन का स्वरुप व्यापक नहीं हुआ तो ये शिकायत निवारण केंद्र बन कर रह जाएगा। खैर इसका जो भी नतीजा निकलेगा सो निकलेगा मगर अभी तो जन लोकपाल का मुद्दा इनके हाथों से निकलता दिख रहा है|