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तेरे आलौकिक हुस्न की कोशिश की कशिश मैं गरीब भी तेरी ओर खिंचा आ रहा हूँ ,

मनम ग़रीब दयार व तोई ग़रीब नवाज़ ।
दमे बहाले ग़रीब दयार ख़ुद परवाज़ ।
ग़रज करश्माए हुस्न असत वरना हाजत नेस्त ,
जमाल दौलते महमूद रा व जुल्फे अयाज़ ।
अर्थ : हाफ़िज़ साहिब मुर्शिद के आगे प्रार्थना करते हैं , हे मुर्शिद ! मैं गरीब हूँ , तू गरीब नवाज है । मैं धुर – धाम से मुद्दतों से बिछड़ा हुआ हूँ । मुझ गरीब के हाल पर रहम करके मुझे अपने धुर – धाम उड़ा कर ले चल । यह तेरे आलौकिक हुस्न की कोशिश का नतीजा है कि मैं तेरी ओर खिंचा आ रहा हूँ , नहीं तो मेरी क्या हैसियत थी । यही सबब है , नहीं तो कहाँ सुल्तान महमूद और कहाँ बेचारा अयाज़ गुलाम , जिस पर उसकी इतनी मेहर की नज़र थी ।
हाफ़िज़ साहिब
प्रस्तुति राकेश खुराना

Comments

  1. Janee Klimas says:

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