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नाम की कमाई से कुकर्मों का अंत =कबीरवाणी

नाम की कमाई से कुकर्मों का अंत
जबहिं नाम ह्रदय धरयो, भयो पाप का नास
जैसे चिनगी आग की, परी पुरारी घास

भावार्थ
संत कबीर दास जी कहते हैं जिस समय हमारे ह्रदय में नाम प्रकट हो जाता है, हमारे कुकर्मों का अंत हो जाता है .
जिस प्रकार घास का बड़े से बड़ा ढेर भी चिंगारी से जलकर राख हो जाता है . इसी प्रकार हम संसारी कितने
भी खोटे कर्म कर चुके हों, नाम की कमाई हमारे सब पापों का नाश कर देती है .
कबीर दास जी नाम का प्रताप इस तरह भी बताते हैं –
नाम जपत कोढ़ी भला, चुइ-चुइ पड़े जिस चाम
कंचन देह किस काम की, जिस मुख नाहीं नाम

अर्थात अगर कोई कोढ़ी भी, जिसके घाव से पानी बह रहा है, परन्तु अंतर में वह नाम से जुड़ा हुआ है तो वह
उस व्यक्ति से कहीं अच्छा है, जो सोने जैसी काया लेकर सांसारिक मोहमाया, विषयभोग में लिप्त है.