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नैनो की छोटी सी झोपडी बना लूं और प्रभु मेरी पुतली रुपी पलंग पर विद्यमान हो जाएँ

 नैनो की छोटी सी झोपडी बना लूं और प्रभु मेरी पुतली रुपी पलंग पर विद्यमान हो जाएँ

नैनो की छोटी सी झोपडी बना लूं और प्रभु मेरी पुतली रुपी पलंग पर विद्यमान हो जाएँ

नयनों की करी कोठड़ी , पुतली पलंग बिछाय ।
पलकों की चिक डालकर, पिया को लेहूँ रीझाय ॥
संत कबीर दास जी फरमाते हैं कि मेरा मन करता है अपने नैनो की छोटी सी झोपडी बना लूं और प्रभु मेरी पुतली रुपी पलंग पर विद्यमान हो जाएँ। पलकों से पर्दा बना लूं और प्रभु का नाम जपता रहूँ जिससे मेरे प्रभु प्रसन्न हो जाएँ।
संत जन समझाते हैं कि हमारे जीवन का अंत पता नहीं किस वक्त हो जाए । हमें चाहिए की पल भर भी उस प्रभु की याद न बिसरे । उठते – बैठते, खाते – पीते, सोते – जागते हर समय उसकी याद बनी रहे । जैसे मछली जल के बिना तड़पती है , हमारे अन्दर भी उस प्रभु को पाने की ऐसे ही तडपन होनी चाहिए । प्रभु से प्यार, उसके मीठी-मीठी याद तथा उससे मिलने की बलवती इच्छा हमारे मन में सदा रहे। एक दिन प्रभु जरूर प्रसन्न होंगे ।
संत कबीर दास जी की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

Comments

  1. pawan verma says:

    बहुत ही अछे विचार है आंनंद आ गया

    1. Jamos says:

      Thanks Please keep visiting the site