तेरा नाम तिहाई दा, साईं तेरा नाम तिहाई दा
बुल्ल्हे नालों चुल्ल्हा चंगा , जिस पर ताम पकाई दा
रल्ल फकीरां मजलस कीती , भोर भोर खाई दा
रंगड़े वालों खिंगर चंगा , जिस पर पैर घिसाई दा
बुल्ल्हा शौह नूं सोई पावे , जेह्ड़ा बकरा बणे कसाई दा
साईं बुल्लेशाह
सतगुरु परमात्मा का को प्राप्त करने का मार्ग अत्यंत कठिन है . इस मार्ग पर चलने से पहले अपने अहंकार और
स्वार्थ का त्याग करना पड़ता है. बुल्लेशाह इसी को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि हे सतगुरु परमात्मा ! हम बस तेरे
नाम का ही सुमिरन करते हैं .
बुल्ले से तो यह चूल्हा अच्छा है , क्योंकि इस पर कम – से – कम रोटी तो पकती है जिसे फकीर एकत्र होकर अत्यंत
संतोष से बांटकर खा लेते हैं .
अहंकारी से तो वह पत्थर अच्छा है जिस पर पैर घिसकर मैल साफ़ कर लिया जाता है परन्तु अहंकार तो रोज नई
गंदगी इस मन में एकत्र करता है .
सतगुरु परमात्मा को वही प्राप्त कर सकता है जो कसाई का बकरा बनने के लिए तैयार हो अर्थात सतगुरु परमात्मा
को प्राप्त करने के लिए ‘मैं ‘ को मिटाना पड़ता है क्योंकि परमात्मा का मिलन ही जीवन के चरम लक्ष्य की प्राप्ति है
बुल्ले शाह दी काफी
बादशाह औरंगजेब के शासन काल में सय्यद परिवार में लाहौर के कसूर पंडोकी गावं में १६८० में जन्मे अब्दुलाह शाह कादिर को बाबा बुल्ले शाह भी कहा जाता है|बाबा ने पंजाबी गूड रहस्यवाद की अभिव्यक्ति पर कमांड हासिल की और विश्व के सर्वश्रेष्ठ सूफी का रुतबा हासिल किया|इनकी मृत्यु की त७८ वर्ष में हुई बताई जाती है\
प्रस्तुतकर्ता राकेश खुराना .
बादशाह औरंगजेब के शासन काल में सय्यद परिवार में लाहौर के कसूर पंडोकी गावं में १६८० में जन्मे अब्दुलाह शाह कादिर को बाबा बुल्ले शाह भी कहा जाता है|बाबा ने पंजाबी गूड रहस्यवाद की अभिव्यक्ति पर कमांड हासिल की और विश्व के सर्वश्रेष्ठ सूफी का रुतबा हासिल किया|इनकी मृत्यु की त७८ वर्ष में हुई बताई जाती है\