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एल के अडवाणी के ब्लॉग से

भाजपा के वरिष्ठ शीर्ष नेता एल के आडवानी ने अपने ब्लॉग में दो विभिन्न घटनाओं के माध्यम से राजनीतिक इतिहास की परतें खोल कर अपने कार्यकर्ताओं का हौंसला बढाया है|श्री आडवानी ने कहा है की भाजपा ने भारत की एकदलीय प्रभुत्व वाली राजनीति को द्विध्रुवीय राजनीति में बदला है अब २०१४ में इसका सकारात्मक परिणाम मिलेगा|भाजपा ने विपक्ष की सशक्त भूमिका निबाहते हुए सत्ता रूड़ दल को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बुरी तरह से घेर रखा है ऐसे में कोई शक नहीं कि कांग्रेस दो सीटों पर सिमट जाये और भाजपा पुनः सत्ता के लिए बहुमत प्राप्त कर ले |

प्रस्तुतु है श्री आडवानी का ब्लाग
के सन् 1992 में, प्रसिध्द अमेरिकी राजनीतिक विज्ञानी फ्रांसिस फ्युकुयमा ने एक पुस्तक लिखी थी ”दि एण्ड ऑफ हिस्ट्री एण्ड दि लास्ट मैंन”। फ्युकुयमा का तर्क था कि नब्बे के दशक के अंत में दुनियाभर में उदार लोकतंत्रों का प्रसार मानवता के सामाजिक-आर्थिक मूल्यांकन का अंतिम बिन्दु है। मुख्य रुप से वह कम्युनिज्म के पतन का संदर्भ दे रहे थे। इसे इतिहास का अंत कहना शायद अतिश्याक्ति हो। लेकिन 1989 में बर्लिन दीवार का ढहना निस्संदेह वैश्विक इतिहास में एक विलक्षण मोड़ था। इसने लोकतंत्रों के प्रभुत्व और अमेरिकी तथा सोवियत ब्लॉकों के बीच चल रहे शीत युध्द में वाशिंगटन की विजय को रेखांकित किया।
1989 भारत के राजनीतिक इतिहास का भी एक निर्णायक मोड़ रहा। इस वर्ष के लोकसभाई चुनावों में भाजपा ने एक लम्बी छलांग लगाते हुए दयनीय दो सीटों 1984 से में 86 सीटों 1989 का सम्मानजनक स्थान प्राप्त किया। भाजपा राष्ट्रीय राजनीति पर कांग्रेस पार्टी के एकाधिकार को चुनौती देने वाले मुख्य दल के रुप में उभरी।
अगले दशक में भाजपा 1996 तक, तेजी से बढ़ती रही और कांग्रेस पार्टी सिकुड़ती गई, जब भाजपा लोक सभा में सर्वाधिक बड़े दल के रुप में उभरी, और 1998-1999 में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने केंद्र सरकार का पूर्ण नियंत्रण संभाल लिया; और इसने 6 वर्षों तक देश को एक स्थिर, अच्छी सरकार और विभिन्न क्षेत्रों में अर्थपूर्ण प्रगति करने वाली सरकार दी। तब से, जब भी कोई मुझसे पूछता है: राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा के मुख्य योगदान को आप कैसे निरुपित करेंगें; तो सदैव मेरा उत्तर रहता है:

भारत की एकदलीय प्रभुत्व वाली राजनीति को द्विध्रुवीय राजनीति में परिवर्तित करना।

मैं मानता हूं कि यह उपलब्धि न केवल भाजपा अपितु कांग्रेस और निस्संदेह देश तथा इसके लोकतंत्र के लिए वरदान सिध्द हुई है

दुर्भाग्य से कांग्रेस पार्टी इसे इस रुप में नहीं लेती, भाजपा को एक मुख्य विपक्ष मानकर जिसके साथ सतत् सवांद करना शासन के लिए लाभकारी हो सकता है के बजाय इसे एक शत्रु के रुप में मानती है जिसे हटाना और किसी भी कीमत पर मिटाना उसका लक्ष्य है।

प्रणव मुकर्जी अपवाद थे। नेता लोकसभा के रुप में यूपीए के अधिकांश कार्यकाल में उन्होंने मुख्य विपक्ष के नेतृत्व से निरंतर संवाद बनाए रखा। अत: जब हाल ही में कोयला सम्बन्धी सीएजी रिपोर्ट पर कांग्रेस पार्टी ने सीएजी पर गैर-जिम्मेदार और निंदात्मक टिप्पणियां की तो, हमने उनसे मिलने का फैसला किया तथा उनसे अनुरोध किया कि वे अपने पूर्ववर्ती सहयोगियों को कुछ सही सलाह दें।
श्री एम. हिदायतुल्ला द्वारा सम्पादित दो खण्डों वाले कांस्टीटयूशल लॉ ऑफ इण्डिया में मुझे 1953 में डा. भीमराव अम्बेडकर द्वारा संसद में दिए गए भाषण को पढ़ने का मौका मिला, जिसमें उन्होंने न केवल नियंत्रक और महालेखाकार को ”भारत के संविधान में संभवतया सर्वाधिक महत्वपूर्ण अधिकारी” वर्णित किया है अपितु इस पर भी खेद प्रकट किया है कि उन्होंने उसे अपना दायित्व ढंग से निभाने के लिए पर्याप्त अधिकार नहीं दिए हैं।
डा. अम्बेडकर कहते हैं:
”यदि इस अधिकारी को अपनी डयूटी निभानी हो-और उनकी डयूटी, मैं मानता हूं कि न्यायपालिका से भी किसी भी हालत में कम नहीं है, वह भी न्यायपालिका की तरह निश्चित रुप से स्वतंत्र होना चाहिए। लेकिन, सर्वोत्तम न्यायलय सम्बन्धी अनुच्छेदों और महालेखाकार सम्बन्धी अनुच्छेदों की तुलना करें, तो मैं यही कह सकता हूं कि हमने उसे वैसी स्वतंत्रता नहीं दी है जैसी न्यायपालिका को दी है, यद्यपि मैं व्यक्तिगत रुप से महसूस करता हूं कि उसे न्यायपालिका की तुलना में ज्यादा स्वतंत्रता देने की जरुरत है।”
***जब मैं विगत् साठ वर्षों के अपने राजनीतिक जीवन पद दृष्टि डालता हूं और यह अनुमान लगाने का प्रयास करता हूं कि

जनसंघ और भाजपा की भारतीय राजनीति को दूसरी उपलब्धि क्या रही, तो मैं कह सकता हूं कि त्रासद आपातकाल के विरुध्द लड़ने और लोकनायक जयप्रकाश का सहयोग करना। इस संदर्भ में भाजपा की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही।

देश की राजनीतिक आज एक ऐसे बिन्दु पर पहुंची है जहां ‘कोलगेट‘ के मुद्दे को एनडीए ने संसद में सशक्त ढंग से उठाया और अब सर्वोच्च न्यायलय ने इस पर गंभीर रुख लिया है।
‘कोलगेट‘ एक ऐसा घोटला है, जिसके बारे में सीएजी ने कहा है कि इससे सरकार को 1.86 लाख करोड़ का नुक्सान हुआ है। यह तथ्य है कि सीएजी ने जिस अवधि के कोयला मंत्रालय की समीक्षा की है उस काल में यह मंत्रालय प्रधानमंत्री के पास था और जिसके चलते 2जी और 2008 के कॉमनवेल्थ घोटाले से शुरु हुई घोटालों की श्रृंखला अपनी अति पर पहुंची है।
***जिस दिन सर्वोच्च न्यायलय ने इस ‘कोलगेट‘ घोटाले से सम्बन्धित छ: मुख्य सवाल सरकार से पूछे हैं, उसी दिन सरकार ने मल्टीब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सम्बन्धी निर्णय घोषित किया-इसे कुछ क्षेत्रों में भ्रष्टाचार से सुधारों पर ध्यान केंद्रित करने के हताशा भरे प्रयास के रुप में लिया गया। यदि वास्तव में सरकार ऐसा सोचती है तो यह उसकी गंभर गलती होगी।

न्यायपालिका, सीएजी और संसद में विपक्ष ने मीडिया के साथ जुटकर यह सुनिश्चित कर दिया है कि भ्रष्टाचार का मुद्दा आगामी लोकसभाई चुनावों तक लोगों के दिमाग में बना रहेगा। खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का मुद्दा वास्तव में यूपीए के लिए हराकरी के सिवाय और कुछ सिध्द नहीं होगा।

मैं गंभीरता से आशा करता हूं कि जिस प्रकार 1977 के चुनाव परिणामों ने यह सुनिश्चित कर दिया कि इसके बाद कोई भी सरकार अनुच्छेद 352 के आपातकाल प्रावधान का हल्के दुरुपयोग के बारे में सोचेगी भी नहीं, उसी प्रकार आने वाले विधानसभाई और लोकसभाई चुनाव भी राजनीतिज्ञों का इसका अहसास कराएंगे कि यदि मतदाता उनके हाथों को भ्रष्टाचार से सना देखेगा तो उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
अपने पूर्ववर्ती एक ब्लॉग में मैंने कहा था कि कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि आने वाले लोकसभाई चुनावों में कांग्रेस पार्टी का आंकड़ा मात्र दो अंकों में सिमट जाए और इससे सबसे ज्यादा फायदे में भाजपा रहेगी। यदि और जब भी ऐसा होता है तो भाजपा इसे अपनी तीसरी उपलब्धि का दावा कर सकती है: एक भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहला कदम।

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