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मेरा मुझ में कुछ नहीं , जो कुछ है सब तोर

मेरा मुझ में कुछ नहीं , जो कुछ है सब तोर ।
तेरा तुझ को सोंपते , क्या लागत है मोर ।
भाव : शिष्य गुरु को दे ही क्या सकता है । यह तो कहने की बात है कि मैंने दे दिया । यह तन तो मैंने इसलिए वार दिया क्योंकि गुरु का करम है मुझ पर , जो आज मेरा तन कायम है । मन जब तक मेरा नहीं होता , मैं दे नहीं सकता और मन को काबू में करने के लिए गुरु की नजरे इनायत की जरुरत है । उसके करम की जरुरत है । जो धन है वह तो देन उसी की है , तो मैंने अपना क्या दिया ? मैं दे ही क्या सकता हूँ ?
प्रस्तुति राकेश खुराना

Comments

  1. Germaine says:

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  2. *laugh* Nice try out, fella!