Ad

सांसारिक तुच्छ महत्वाकांक्षाओं की प्राप्ति में ही लिप्त रहने पर दिव्य ज्योति का असीमित खजाना नही मिलता

यह संसार हाट कौ लेखा , सब कोई बणजही आया ।
जिस -जिस लाधा , तिन – तिन पाया , मूरख मूल गँवाया ।

Rakesh Khurana

भाव : यहाँ पर संत नामदेव जी इंसानी जीवन की तुलना बाज़ार से कर रहे हैं । हम अपने जीवन का सौदा करने आये हैं । ईश्वर ने हरेक को स्वांसों की पूँजी दी है । अगर हमने दिव्य ज्योति के असीमित खजाने को हासिल करना है तो हमें अपने जीवन का लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति तथा उसके ध्यान , सिमरन में बिताकर वापस निज घर के लिए ही रखना है । अगर हम इसमें असफल होकर सिर्फ सांसारिक महत्वाकांक्षाओं की प्राप्ति तथा सांसारिक सफलताओं की अभिव्यक्ति में ही लिप्त रहेंगे ,तो हम अपने छोटे से बहुमूल्य खजाने को गवां देंगे , जो हमें मनुष्य जीवन के रूप में शुरुआत करने को मिला है ।
संत नामदेव जी
प्रस्तुति राकेश खुराना