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साच कहूँ सुन लेहो सबै जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो

साच कहूँ सुन लेहो सबै जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो

साच कहूँ सुन लेहो सबै जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो

हमारे जीवन में प्रेम का विशेष महत्त्व है मन मंदिर में प्रेम भाव उत्पन्न करके ही प्रभु को पाया जा सकता है|इस विषय पर हमारे महा पुरुषों ने भी कहा है कि हमारी आत्मा प्रेम का स्वरूप है और प्रभु को पाने का साधन भी प्रेम है । जितने साधन , पूजा – पाठ आदि हम करते हैं , इसीलिए करते हैं कि हमारे अंतर में प्रभु के लिए प्यार बने। यह सब करते हुए प्रभु का प्यार नहीं जागा तो क्या फायदा ?
” सद साल इबादत कुनद नमाज़ी नेस्त
कसे को इश्क नदारद खुद राज़ी नेस्त ”
अर्थात सौ साल इबादत करता रहे , वह सही मायनों में नमाजी नहीं बन सकता । जिसके अंतर में प्रभु का प्रेम नहीं उभरा , वह प्रभु के भेद को कैसे पा सकता है ?
दसम गुरु साहब ने फ़रमाया –
” साच कहूँ सुन लेहो सबै जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो ।
गुरु गोबिंद सिंह जी की वाणी ,
प्रस्तुति राकेश खुराना