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Tag: पूजा

सतगुरु मेलों में नहीं जाता,पूजा नहीं करवाता ,भेंट नहीं लेता फिर भी प्रभु देन बांटता ही रहता है

साधो सो सतगुरु मोहिं भावै ।
सतनाम का भरि – भरि प्याला , आप पिवै मोहिं प्यावै ।
मेले जाय न महंत कहावै , पूजा भेंट न लावै ।
परदा दूरि करै आँखिन को , निज दरसन दिखलावै ।

Rakesh khurana on Sant kabir das ji

भाव : संत कबीर दास जी कहते हैं – हे साधु ! जो मेरा सतगुरु है , वो मुझे बहुत ही प्यारा लगता है , बहुत ही अच्छा लगता है ।सतगुरु मुझे इसलिए अच्छा लगता है, कि जो नाम का अमृत है , उसके प्याले भर – भर कर , एक तो वह खुद पीता है अर्थात वह खुद प्रभु में लीन हो जाता है और फिर यही नहीं वह मुझे भी पिलाता है , मुझे भी ईश्वर के नाम के साथ जोड़ता है ।
ऐसा सतगुरु मेलों में नहीं जाता , क्योंकि वह तो खुद परमात्मा के साथ जुड़ा हुआ है , बाहर की दुनिया की उसे कोई परवाह नहीं होती और न ही वह महंत की तरह से, पंडित की तरह से जीता है । न ही वह अपनी पूजा करवाता है , न ही भेंट में कुछ लेता है । ऐसा सतगुरु अपनी ही कमाई पर जीता है । वह प्रभु की देन को बिना किसी कीमत के औरों में बाँटता रहता है ।वह हमारी आँखों पर पड़े माया के परदे को हटाता है ।वह अपने दर्शन हमें अन्दर देते हैं । उस नूरी स्वरूप को हमारे साथ मिला देते हैं और इसी तरह हमें सचखंड तक पहुंचा देते हैं ।
संत कबीर दास जी
प्रस्तुती राकेश खुराना