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Tag: संत रवि दास वाणी

सद्गुरु की मूर्ति को घट मंदिर में प्रतिष्ठित करके उसकी आराधना करो

हमारे संत सूफियों ने परमात्मा को अपने अन्दर ही तलाश कर उसकी पूजा को ही असली धर्म बताया है|इसीलिए दर दर भटकने के स्थान पर अपने मन में प्रभु को ढूँढना चाहिए | सूफी संत बुल्ले शाह +संत रवि दास और संत कबीर दास जी ने अपनी वाणी में जीवन के यही सत्य उजागर किये हैं|
[१]अपने ही घर में खुदाई है,तो काबे में सजदा कौन करे,
जब दिल में ख्याले सनम हो बसा , तो गैर की पूजा कौन करे.
भावार्थ: सूफी संत बुल्लेशाह कहते हैं कि
मंदिर, मस्जिद और गुरूद्वारे में भगवान कहाँ मिलता है, परमात्मा तो तेरे अन्दर समाया हुआ है पहले उसे तो जान ले पहचान ले, जब सच्चे संत की शरण में जाओगे तभी वास्तविक तथ्य का पता चल पाएगा और सद्गुरु की मूर्ति को घट मंदिर में विराजमान करके उसकी आराधना करो फिर कहीं और जाने की जरूरत नहीं है.

सद्गुरु की मूर्ति को घट मंदिर में प्रतिष्ठित करके उसकी आराधना करो

सद्गुरु की मूर्ति को घट मंदिर में प्रतिष्ठित करके उसकी आराधना करो


[२]इसी सन्दर्भ में संत कबीर दास जी भी दर दर भटकने को गैर जरुरी बता रहे हैं
मन मक्का दिल दवारिका, काया काशी जान,
दश द्वारे का देहरा, तामें ज्योति पिछान.
प्रस्तुती राकेश खुराना
[१] सूफी संत बुल्ले शाह
[२]संत कबीर दास [
[३]संत रवि दास जी ने भी यह कह कर कठौती में गंगा के दर्शन कराये हैं कि मन चंगा तो कठौती में गंगा

प्रभु आप मुझ सेवक को एक पूर्ण इन्सान बना दीजिए

[१]हमसरि दीनु दइआलु न तुमसरि|
अब पतीआरू किया कीजै ||

भावार्थ

संत रविदास जी मनुष्य की दयनीय हालत को बयां कर रहे हैं कि हम तो दीन हैं , लेकिन आप
(प्रभु , गुरु ) दया के महासागर हैं | आप हमारी दीन – हीन हालत पर इतनी कृपा कीजिए ताकि
जो जिंदगी और मौत का रहस्य है वह हमें समझ आ जाए|
[२]बचनी तोर मोर मनु मानै|
जन कउ पूरनु दीजै||

भावार्थ

आपके वचनों को अब मेरा मन मान गया है , गुरु के वचनों पर मेरा विश्वास दृढ हो गया है | आप मुझ
सेवक को एक पूर्ण इन्सान बना दीजिए |

प्रभु आप मुझ सेवक को एक पूर्ण इन्सान बना दीजिए

[३]हउ बलि बलि जाउ रमईया कारने |
कारन कवन अबोल रहाउ ||

भावार्थ

हे सृष्टि कर्ता ! मैं तुम पर बलिहार जाता हूँ , अपने आपको तुम पर न्यौछावर करता हूँ | आप मुझे उस शब्द
से जोड़ सकते हो जो हमें शून्य अवस्था में पहुंचा देता है , जिसमें बोलने की जरुरत नहीं , जिसे हम तभी सुनते
हैं , जब हमारे अंतर के कान खुल जाते हैं |
[४]बहुत जनम बिछुरे माधउ |
इहु जनमु तुम्हारे लेखे |

भावार्थ

हे प्रभु ! आपसे बिछड़े बहुत जन्म बीत गए हैं | चौरासी लाख योनियों में भटकने के कारण जो यह मानव चोला मिला है
यह मुझे आपके चरणों में ही बिताना है |
[५]कहि रविदास आस लगि जीवउ |
चिर भइओ दरसनु देखे ||
यह प्रार्थना संत रविदास जी महाराज प्रभु से कर रहे हैं कि मेरी आप से बहुत आशा है कि इस जीवन में ही मुझे आपके दर्शन हो जाएँ
प्रस्तुति राकेश खुराना