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डॉ.मनमोहन सिंह ने एसोचेम की बैठक में, चालू खाता घाटे को नियंत्रित करने के लिए, प्रतिबद्धता जताई

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने एसोचेम की 92वीं वार्षिक आम बैठक को संबोधित किया। उन्होंने समस्‍या के मांग पक्ष और आपूर्ति पक्ष दोनों का समाधान करके चालू खाता घाटे को नियंत्रित करने के लिए प्रतिबद्धता जताई | विश्व के प्रसिद्द अर्थ शास्त्री डॉ सिंह ने ऐसे मुद्दों को छुआ जिन्हें लेकर औद्योगिक घराने चिंतित है और ऐसे छेत्रों कि चर्चा की जहां कार्रवाई किए जाने की आवश्‍यकता है|उन्होंने ईमान दारी से समस्याओं को स्वीकार किया लेकिन इसके साथ ही उज्जवल अर्थ व्यवस्था का भरोसा भी दिलाया |
उन्होंने कहा कि वर्तमान में चिंता का सर्वाधिक तात्‍कालिक कारण विदेशी मुद्रा बाजार में हाल का उतार-चढाव है। इसमें से अधिकांश अमरीका द्वारा फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा क्‍वांटिटेटिव ईजिंग थर्ड (Quantitative Easing III) को वापस लेने की संभावना को देखते हुए विश्‍व के बाजारों की प्रतिक्रिया के रूप में है। विकासशील बाजारों से बड़ी मात्रा में राशि हटा ली गई और तुर्की, ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका सहित अनेक विकासशील देशों की मुद्राओं की कीमतों में गिरावट आई । हमने भी रूपये के विनिमय मूल्‍य में उल्‍लेखनीय गिरावट देखी है। हमारे मामले में संभवत: यह स्थिति इस कारण बिगड़ गई कि अदायगी संतुलन में हमारा चालू खाता घाटा 2012-13 में सकल घरेलू उत्‍पाद के 4.7 प्रतिशत के कारण बढ़ा ।
उन्होंने उपाय के रूप में सोने और पैट्रोलियम उत्‍पादों की मांग को कम करने की आवश्‍यकता पर बल दिया |
उन्होंने बताया कि सोने की मांग को नियंत्रित करने के उपाय किए गए हैं जिनके सकर्ताअमक नतीजे प्राप्त हुए हैं लेकिन पैट्रोलियम उत्‍पादों के छेत्रों में किये प्रयास अभी आशाजनक परिणाम नही दे पाए हैं क्योंकि अमेरिकी डॉलर के मुकाबिले भारतीय रुपये की कीमत गिरी है|हमने पिछले साल पैट्रोलियम उत्‍पादों की कीमतों को सही करने की प्रक्रिया शुरू की थी। डीजल की कीमतों में धीरे-धीरे हो रहे सुधार ने कम वसूलियों के अंतर को लगभग 13 रूपया प्रति लीटर से घटाकर 2 रूपये प्रति लीटर ला दिया है। दुर्भाग्‍य से इस उपलब्धि के कुछ अंश को रूपये के मूल्‍य में गिरावट ने निरस्‍त कर दिया है। तथापि, कम वसूलियों को धीरे-धीरे समाप्‍त करने के लिए मूल्‍यों को समायोजित करने की हमारी नीति जारी है। जहां तक आपूर्ति का संबंध है हमें, अपने निर्यात को बढावा देने की आवश्यकता है। रूपये के मूल्‍य में गिरावट इसमें सहायक होगी। निस्‍संदेह निर्यात के आकार के रूप में इसका लाभ मिलने में समय लगेगा, लेकिन जो अनुबंध अब से किए जाएंगे, उनका निश्चित रूप से लाभ होगा। हम भी लौह-अयस्‍क और अन्‍य अयस्‍कों के निर्यात में बाधाओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। इनके निर्यात में पिछले एक साल के दौरान विशेष गिरावट आई है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने रूपये के मूल्‍य में गिरावट को रोकने के कई उपाय किये हैं। शुरू में उसने डॉलरों को बाजार में फैंका। इससे किसी हद तक सहायता मिली। अभी हाल में उसने अल्‍पकालिक ब्याज दरें बढ़ाने के अन्‍य उपाए किए हैं। ये उपाय दीर्घकालिक ब्याज दरों में वृद्धि के संकेतक नहीं हैं। इनका उद्देश्‍य मुद्रा में वायदे के दबाव को रोकना है। मुझे आशा है कि एक बार इन अल्‍पकालिक दबावों के नियंत्रण में आने पर रिजर्व बैंक इन उपायों को वापस लेने पर भी विचार कर सकता है।
।उन्होंने नकारात्‍मक भावनाओं को हावी न होने देने का अनुरोध भी किया ।

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Dr. Man mohan Singh lighting the lamp to inaugurate the 92nd Annual General Meeting of ASSOCHAM, in New Delhi on July 19, 2013.