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लाल कृष्ण अडवाणी ने भारत को चौथे स्तम्भ के लिए सर्वाधिक खतरनाक स्थान बताया

लाल कृष्ण अडवाणी ने भारतीय पत्रकारों पर मंडरा रहे खतरे के बादलों पर चिंता व्यक्त करते हुए देश को चौथे स्तम्भ के लिए सर्वाधिक खतरनाक स्थान बताया अडवाणी के अनुसार सन् 2013 के पहले 6 महीने में, भारत पत्रकारों के लिए विश्व में सर्वाधिक खतरनाक स्थान बन गया।
भाजपा के वयोवृद्ध नेता और वरिष्ठ पत्रकार अडवाणी ने अपने ब्लॉग के टेल पीस में लिखा है कि पहले स्थान पर सीरिया था जो बशहार-अल-असद के सरकारी बलों तथा विद्रोहियों के बीच छिड़े भीषण गृहयुध्द में फंसा है।
लंदन स्थित इंटरनेशनल न्यूज सेफ्टी इंस्टीटयूट के मुताबिक इस अवधि में सीरिया में आठ पत्रकार मारे गए जबकि भारत में 6।इनका विवरण देते हुए बताया कि
छत्तीसगढ़ के एक पत्रकार नेमीचन्द जैन का गला रेंता गया और उसके पास एक ‘नोट‘ पड़ा था। जिसमें उन्हें पुलिस का मुखबिर करार दिया गया था।
एक बंगला समाचार पत्र के तीन कर्मचारी-एक प्रूफ रीडर, समाचार पत्र मैनेजर और एक ड्राइवर की हत्या की गई। बाद में समाचार पत्र के सम्पादक ने बताया कि दरअसल वह निशाने पर थे और उनके बदले यह लोग मारे गए।
दो अन्य पत्रकार दुर्घटना में मारे गए।
यदि हम बाद के दो को छोड़ भी दें, तो शेष चार मामलों मेें समाचार पत्रों में काम करने वाले सीधे तौर पर लक्षित कर मारे गए। यह भारत को सोमालिया के समकक्ष खड़ा करता है जहां उसी अवधि में चार पत्रकार मारे गए और पाकिस्तान से एक स्थान नीचे, जहां पांच पत्रकार मारे गए।
यह पहला मौका नहीं है जब भारत पत्रकारों के लिए एक खराब स्थान सिध्द हुआ है। सन् 2010 में हम ऐसे शीर्ष पांच देशों में एक थे।
इस विषय में अपनी सरकार की उपलब्धियों का वर्णन करते हुए बताया ” 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में मैंने अपने मंत्रालय में एक पूर्व सचिव की अध्यक्षता में एक विशेष समिति नियुक्त की जिसका काम प्रेस सेंसरशिप की आड़ में मीडिया पर की गई ज्यादतियों के बारे में एक श्वेतपत्र तैयार करना था। समिति ने रिकार्ड समय में अपना काम पूरा किया और मैं अगस्त, 1977 में श्वेतपत्र संसद में रख सका।इस श्वेत पत्र के माध्यम से अडवाणी ने कांग्रेस की सरकार पर प्रहार करते हुए सबको चौंकाने वाले तथ्य बताये उन्होंने आपातकाल के दौरान पत्रकारों पर हुए सरकारी हमलों का विवरण देते हुए बताया कि आपातकाल के दौरान 253 पत्रकार पकड़े गये। इनमें से 110 मीसा के तहत, 110 डा. आई. आर. और 33 अन्य कानूनों के तहत। बीबीसी के सर्वाधिक लोकप्रिय पत्रकार मार्क टुली सहित 29 विदेशी पत्रकारों का भारत में प्रवेश प्रतिबंधित था। सरकार ने 51 विदेशी पत्रकारों की मान्यता समाप्त कर दी थी और उनमें से सात को निष्कासित कर दिया था।