[पुणे,मुंबई]यरवदा जेल के कैदी न १६६५६ संजयदत्त अच्छे चाल चलन के फलस्वरूप आज सुबह रिहा हो गए
फ़िल्मी मुन्ना भाई और यरवदा जेल के कैदी न १६६५६ अपने अच्छे चाल चलन के फलस्वरूप आज सुबह रिहा हो गए
वर्ष 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के दोषी के तौर पर अपने विवादास्पद अतीत को पीछे छोड़ते हुए आज यरवदा जेल से बाहर आए गए।
बॉलीवुड स्टार और सांसद सुनील दत्त के पुत्र संजय दत्त नीली कमीज और जीन्स पहनकर मुस्कुराते हुए जेल से बाहर आये एक कार में बैठे, जिसे चलाकर वह सीधे लोहेगांव हवाईअड्डे चले गए जहां उन्हें मुंबई जाने के लिए चार्टेड विमान की व्यवस्था थी
बड़े पर्दे के 56 वर्षीय ‘खलनायक’ ने जेल के शीर्ष पर फहर रहे तिरंगे को सलाम किया। अपने साथ वह अपने सामान का बैग और अपनी फाइल लेकर निकले थे।संजय दत्त ने आर्म्स एक्ट में टाडा कोर्ट के समक्ष सरेंडर किया था |
संजय की पत्नी मान्यता और जाने माने फिल्मकार राजकुमार हिरानी शहर के हवाईअड्डे तक उनके साथ गए
फाइल फोटो
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यरवदा जेल के कैदी न १६६५६ संजयदत्त अच्छे चाल चलन के फलस्वरूप आज सुबह रिहा हो गए
फिल्म अभिनेता संजय दत्त अच्छे बर्ताव के फलस्वरूप27फरवरी को जेल से रिहा होंगे
[मुंबई] फिल्म अभिनेता संजय दत्त अच्छे बर्ताव के फलस्वरूप 27 फरवरी को रिहा किए जाएंगे
महाराष्ट्र सरकार ने संजय दत्त की सजा कम करने वाले एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है जिसके फलस्वरूप पुणे की अतिसुरक्षित यरवडा केंद्रीय जेल में बंद दत्त को 27 फरवरी को रिहा किया जाएगा, |वर्ष 2013 में उच्चतम न्यायालय ने जुर्म के लिए उन्हें पांच साल जेल की सजा सुनाई थी। दत्त अब 42 महीने की बची हुई जेल की सजा पूरी कर रहे हैं।
मई 2013 में उन्हें यरवडा जेल भेजने के बाद, दत्त दो बार पेरोल पर और दो बार ही छुट्टी पर बाहर चुके हैं।
56 वर्षीय अभिनेता को 1996 में गिरफ्तार किया गया था तब उन्होंने 18 महीने जेल में गुजारे थे।
दत्त मुंबई में 1993 में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों से जुड़े एक मामले में दोषी हैं।
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार गृह विभाग से मंजूरी मिलने के बाद दत्त को माफी जेल मैन्युल के मुताबिक दी जा रही है।
जनवरी 2015 में तय छुट्टी से देर से रिपोर्ट करने के लिए दत्त को दंडित किए बिना प्रदेश के गृह राज्य मंत्री रंजीत पाटिल ने उनको रिहा करने वाली फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए।
दत्त को अवैध हथियार रखने के जुर्म में पांच साल की सजा सुनाई गई थी। हथियारों के इस जखीरे का इस्तेमाल 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार विस्फोटों के हिस्से के तौर पर किया जाना था, जिनमें 257 लोगों की मौत हुई।
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