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यूपी में सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना करके जनोपयोगी योजनाओ मे भ्रष्टाचार :ट्रैप

[अलीगढ,यूपी ] सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना करके जनोपयोगी योजनाओ मे भ्रष्टाचार :ट्रैप सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की फ़ूड सिक्योरिटी संबंधी प्रोग्राम की १६ साल बाद भी अवहेलना का आरोप लगाते हुए यूपी में नौकरशाही पर निरंकुश की मांग की गई है| आर टी आई एक्टिविस्ट्स की संस्था ट्रैप के सरंक्षक बिमल कुमार खेमानी ने रजिस्ट्रार ,सर्वोच्च न्यायालय ,नई दिल्ली को लिखे पत्र में यह आरोप लगाये हैं |जनोपयोगी योजनाओ मे जम कर धांधली तथा भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया है|
श्री खेमानी ने आरोप लगाया है के सुप्रीम कोर्ट के रीट पिटीशन 196/2001 दिनांक 8 मई 2002 आदेश के परिपेक्ष्य मे हमने सूचना कानून के अंतर्गत उत्तर प्रदेश के न्याय विभाग से निम्न सूचना दिनांक 30-09-2013 को मांगी
१]सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त आदेश के परिपेक्ष्य में राज्य सरकार द्वारा PDS, MDM, ICDS के सामाजिक ऑडिट हेतु जारी किये गए शासनादेश एवं नियामावली की सत्यापित प्रतिलिपि प्रदान करे
२]उपरोक्त आदेश के परिपेक्ष्य में राज्य सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गई compliance report की सत्यापित प्रतिलिपि प्रदान करे
३] सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में अलीगढ जिले में की गई PDS, MDM, ICDS की सामाजिक आडिट रिपोर्ट सन २००३ से २०१२ की सत्यापित प्रतिलिपि प्रदान करे
श्री खेमानी ने बताया के उनके आवेदन के पश्चात काफी हिल हवाली करते हुवे , माननीय राज्य सूचना आयोग के आदेश के उपरांत सूचना उत्तर प्रदेश शासन के खाद्य एवम रसद अनुभाग -6 के पत्रांक संख्या सु अ 21/29-6-2016-31 सु अ /14(2) दिनांक 21 जनवरी 2016 के माध्यम से प्राप्त हुई
जिसके अनुसार उत्तरप्रदेश सरकार ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के क्रम मे एक प्रारूप “ उत्तर प्रदेश खाद्य सुरक्षा नियमावली 2015 “ बनाकर असाधारण सरकारी गज़ट मे प्रकाशित करवाई है
खेमानी ने आरोप लगाया के इस नियमावली को पारित करते हुवे अंतिम रूप देने की कोई भी कार्यवाही नहीं की गई
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 8 मई 2002 के अनुपालन मे नियमावली बनाने का काम 14 वर्षो तक भी पूर्ण नहीं हो पाया है , अतः PDS, MDM, ICDS के सामाजिक ऑडिट करवाने का कही प्रश्न ही पैदा नहीं होता , और आज भी प्रदेश की नौकर शाही , उनको संविधान द्वारा प्रदत्त सुरक्षा कवच का सहारा लेते हुवे, इन जनोपयोगी योजनाओ मे जम कर धांधली तथा भ्रष्टाचार करने मे लिप्त है ।
रजिस्ट्रार से हस्तक्षेप की मांग करते हुए खेमानी ने कहा
हमारा संगठन TRAP विशुद्ध रूप से गैर राजनैतिक , सेवा निवृत्त जागरूक नागरिकों को गैर पंजीकृत संगठन है जो कि स्वयं के आर्थिक अंशदान से संचालित है , अतः उक्त मामले मे अवमानना कि कोई कार्यवाही करने मे असमर्थ है हम आपसे अनुरोध करते है कि हमारे इसी पत्र को आधार बनाकर उत्तरप्रदेश सरकार के विरुद्ध अपेक्षित न्यायिक प्रक्रिया करने कि कृपा करे , जिससे इस बेलगाम नौकरशाही पर कुछ तो अंकुश लग सके एवम जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियो का सही से निर्वहन कर सके ।
धन्यवाद सहित ,भवदीय ,

मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी को कानूनी दायरे में रखे जाने की मांग उठी

[अलीगढ,यूं पी]नवनियुक्त मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी को कानूनी दायरे में रखे जाने की मांग उठी |
आरटीआई एक्टिविस्ट ग्रुप ट्रैप ने प्रदेश के राज्यपाल को लिखे पत्र में यह मांग की है |ट्रैप के संरक्षक बिमल कुमार खेमानी और अध्यक्ष ई. विक्रम सिंह द्वारा प्रेषित इस पत्र में कहा गया है कि :
१] नवनियुक्त मुख्य सूचना आयुक्त उत्तर प्रदेश , श्री जावेद उस्मानी , ने विभिन्न शहरों के ८ आर टी आई आवेदकों पर जांच के आदेश दिए है I
२]सूचना अधिकार कानून के अंतर्गत सभी सूचना आयुक्तों का दायित्व इस कानून के अंतर्गत आवेदकों द्वारा दायर की गई अपील एवम शिकायत की सुनवाई करते हुए जन सूचना अधिकारी पर आवश्यक कार्यवाही करते हुए आवेदक [पीड़ित]को सूचना दिलाना है I
३] केंद्रीय सूचना आयुक्त हो या राज्य के सूचना आयुक्त सभी का दायरा सूचना अधिकार कानून के अंतर्गत है तथा उन्हें उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशो के अनुसार सभी तरह के दीवानी +फौजदारी या अन्य सभी प्रचलित कानून के अंतर्गत न्याय करने का कोई भी अधिकार इस कानून में कही भी नहीं दिया गया I
४] जावेद उस्मानी , का ऐसा मनमाना कृत्य सूचना अधिकार कानून के प्रावधानों की परिधि से बाहर जाकर अपने पूर्वाग्रहों से ग्रसित ही नहीं बल्कि उक्त कानून का उल्लंघन करने के साथ साथ , देश में प्रचलित न्याय प्रणाली का अतिक्रमण एवम संविधान की मूल भावनाओ के विपरीत भी है I
५]जो मामले श्री उस्मानी ने ब्लेक मेल करना बताया है उसे सम्बंधित अधिकारीगण देश में प्रचलित कानून के अनुसार कार्यवाही करने में सक्षम है किन्तु सूचना कानून या मुख्य सूचना आयुक्त इसपर किसी भी तरह की कार्यवाही के लिए न तो अधिकृत है न ही सक्षम I