गन्ना किसानो के बकाये के भुगतान के लिए राष्ट्रीय लोकदल [रालोद]ने एक दिसंबर से गन्ना प्रधान जिलों में चक्का जाम करने की चेतावनी दी है
राष्ट्रीय लोकदल महासचिव एवं लोकसभा सांसद जयन्त चौधरी ने एक बयान में कहा है कि राज्य सरकार जल्द से जल्द गन्ना किसानों का बकाया भुगतान करे। यदि ऐसा नहीं होता है तो रालोद 1 दिसम्बर को राज्य के गन्ना प्रधान जिलों में चक्का जाम करेगा। उन्होंने किसानों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में इस आन्दोलन शामिल होने का आवाहन किया है। उन्होंने कहा है कि आम लोगों, व्यापारियों तथा विद्यार्थियों को परेशानी न हो इसलिए यह आन्दोलन दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक होगा तथा आपातकालीन सेवाओं तथा रेल यातायात में बाधा नहीं पहुंचाई जाएगी।
श्री जयन्त ने राज्य सरकार से मांग की है कि प्रदेश में चीनी मिलें समय पर चालू हों जिससे गन्ना किसानों को समय से गन्ने का मूल्य मिल सके और वे गेहूं की बुवाई शुरू कर सकें। इसके अलावा उन्होंने राज्य सरकार से उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के ब्याज सहित बकाया भुगतान के आदेश का पालन करने की भी मांग की है।
रालोद राष्ट्रीय महासचिव ने कहा है कि प्रदेश की 90 चीनी मिलों में से 66 चीनी मिलों ने राज्य सरकार को लिखकर दिया है कि वे किसानों का बकाया भुगतान करने में असमर्थ हैं तथा सरकारी मिलें भी सुचारू रूप से नहीं चल रही हैं। अतः राज्य सरकार को इस समस्या का समाधान जल्द से जल्द करने की भी मांग की है। गन्ना शोध संस्थान, शाहजहांपुर की रिपोर्ट के अनुसार इस बार गन्ने की फसल लागत में 23 रुपए प्रति क्विंटल की बढोत्तरी हुई है। अतः सांसद जयन्त चौधरी ने राज्य सरकार से गन्ना किसानों को लाभकारी मूल्य देने की मांग करते हुए बताया की
उन्होंने बताया कि हरियाणा और पंजाब में गन्ने का मूल्य क्रमशः 301 और 300 रुपए प्रति क्विंटल है। युवा सांसद ने केन्द्र सरकार से चीनी के आयात पर रोक लगाने तथा एथेनाॅल के उत्पादन में 5 से 10 % गन्ने के उपयोग की मांग की है।
रालोद ने २४ नवम्बर को मेरठ आगमन पर मुख्य मंत्री का विरोध करते हुए गिरफ्तारी दी थी इसके अलावा 21 नवम्बर को गन्ना किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए लखनऊ में गन्ना आयुक्त का घेराव किया था। इससे पहले रालोद ने 19 नवम्बर 2009 को जन्तर मन्तर पर आन्दोलन करके गन्ना नियंत्रण संशोधन आदेश, 2009 का विरोध किया था। इस आदेश के तहत केन्द्र सरकार एसएपी और एफआरपी के अन्तर का भुगतान राज्य सरकार पर डालना चाहती थी जबकि पहले इस अंतर का भुगतान सरकारी और निजी सुगर मिलों द्वारा किया जाता था।