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कपिल सिब्बल ने , साइबर हमलों को रोकने के लिए, राष्‍ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति जारी की

केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्‍बल ने आज, बहु प्रतीक्षित, राष्‍ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति जारी की।इसका उद्देश्य देश पर साइबर हमलों को रोकने के लिए , वैश्विक माहौल के अनुरूप ,साइबर सिक्योरिटी सिस्टम तैयार करना है|
इस अवसर पर श्री सिब्‍बल ने कहा कि यह नीति निजी जानकारी, वित्‍तीय /बैंकिंग जानकारी, महत्‍वपूर्ण डाटा जैसी सूचना के संरक्षण के रूप में देखी जानी चाहिए । उन्‍होंने कहा कि सूचना सशक्‍त बनाती है तथा लोगों को सूचना से सशक्‍त बनाने के क्रम में हमें सूचना और डाटा को सुरक्षित बनाने की जरूरत है।
श्री सिब्‍बल ने ऐसे डाटा के बीच अंतर करने की आवश्‍यकता पर भी बल दिया जो मुक्‍त रूप से उपलब्‍ध कराया जा सकता है तथा जिसे सुरक्षित करने की आवश्‍यकता होती है।
श्री सिब्‍बल ने कहा कि इस नीति को लागू करना ही असली चुनौती है। उन्‍होंने कहा कि सरकार को विभिन्‍न प्रोत्‍साहनों एवं सब्सिडी के जरिए छोटे और मझौले उद्यमियों की प्रणाली को सुरक्षित बनाने के लिए प्रौद्योगिकी सुलभ कराने के वास्‍ते उन्‍हें सहायता देनी होगी।
उन्‍होंने व्‍यवसायियों से कहा कि साइबर जगत में अपने आप को सुरक्षित बनाने के लिए उन्‍हें अलग से धन की व्‍यवस्‍था करनी चाहिए।
इस अवसर पर संचार और सूचना प्रौद्योगिकी राज्‍य मंत्री श्री मिलिंद देवड़ा ने सभी हितधारकों और खासतौर से विभाग के उन अधिकारियों को बधाई दी जिन्‍होंने यह नीति तैयार करने में मदद की। उन्‍होंने कहा कि इस नीति से हमें अपने महत्‍वपूर्ण डाटा को सुरक्षित बनाने में मदद मिलेगी।

इसकी मुख्‍य विशेषताएं इस प्रकार हैं –

[१] इस नीति का लक्ष्‍य इलेक्‍ट्रानिक लेनदेन का सुरक्षित माहौल तैयार करना, विश्‍वास और भरोसा कायम करना तथा साइबर जगत की सुरक्षा के लिए हितधारकों के कार्यों में मार्गदर्शन करना है।
[२] देश में सभी स्‍तरों पर साइबर सुरक्षा के मुद्दों से निपटने के लिए व्‍यापक, सहयोगात्‍मक और सामूहिक कार्रवाई के लिए रूपरेखा तैयार की गई है।
[३]इस नीति में ऐसे उद्देश्‍यों और रणनीतियों की आवश्‍यकता को मान्‍यता दी गई है जो राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपनाए जाने की आवश्‍यकता है।
इस नीति का विजन और मिशन नागरिकों, व्‍यवसायियों और सरकार के लिए साइबर जगत को सुरक्षित और लचीला बनाना है।
[४] इसका उद्देश्‍य साइबर हमलों से राष्‍ट्र को सुरक्षित बनाने और खामियां दूर करने के लक्ष्‍य तय करना है।
[५]इसका लक्ष्‍य देश के अंदर सभी हितधारकों के बीच सहयोग और समन्‍वय बढ़ाना है।
[६]राष्‍ट्रीय साइबर सुरक्षा विजन और मिशन के समर्थन में उद्देश्‍य एवं रणनीति तय की गई हैं।
[७] ऐसी रूपरेखा और पहल तैयार की गई हैं जो सरकार के स्‍तर , क्षेत्र स्‍तर पर और सरकारी-निजी भागीदारी के माध्‍यम से आगे बढ़ाई जा सकती हैं।
[८] इससे साइबर सुरक्षा अनुपालन, साइबर हमलों, साइबर अपराध और साइबर बुनियादी ढांचा वृद्धि जैसे रुझानों की राष्‍ट्रीय स्‍तर पर निगरानी की जा सकेगी।

श्रीमती सुजाता सिंह को विदेश सचिव के पद के लिए सलेक्ट किया गया :MEA

५९ वर्षीय श्रीमती सुजाता सिंह[१९७६] को विदेश मंत्रालय में [ M E A ]देश की अगली विदेश सचिव सलेक्ट किया गया है| उनकी नियुक्ति को प्रधानमंत्री डॉ .मनमोहन सिंह ने मंजूरी दे दी है। श्रीमती सुजाता वर्तमान में जर्मनी में भारत की राजदूत हैं|
भारतीय विदेश सेवा अधिकारी [ IFS] श्रीमति सुजाता वर्तमान विदेश सचिव रंजन मथाई की जगह लेंगी। मथाई 31 जुलाई को अपने पद से सेवानिवृत [ Superannuate ] होंगे पूर्व आईबी प्रमुख टीवी राजेश्वर की बेटी सुजाता के पति संजय सिंह इसी साल अप्रैल में सचिव (पूर्व) के पद से रिटायर हुए हैं।

जेट एतिहाद पर एक माह में छह शिकायतों पर अभी विचार किया जा रहा है ,पीछे हटने का सवाल नहीं उठता PMO

प्रधान मंत्री कार्यालय[पी एम् ओ]ने जेट -एतिहाद एयर लाइन्स को लेकर हुए भारत -और यूएई में हवाई सेवाएं समझौते पर देश की स्थिति स्पष्ट की है|इसे मीडिया में आ रही खबरों के जवाब के रूप में भी देखा जा रहा है|
पी एम् ओ कार्यालय द्वारा कहागया है कि इस समझौते के विरोध में मात्र एक माह में छह शिकायतें मिलने के फलस्वरूप इस पर केवल विचार किया जा रहा है| इसलिए इससे पीछे हटने या प्रस्‍ताव का सम्‍मान न करने का कोई सवाल ही नहीं उठता|
कहा गया है कि पिछले कुछ दिन से भारत – यूएई (आबू धाबी)द्विपक्षीय हवाई सेवाएं समझौते और जेट एयरवेज-एतिहाद इक्विटी स्‍टेक प्रस्‍ताव पर मीडिया में खबर आ रही है। इनमें से कुछ खबर में कहा गया है कि प्राधानमंत्री कार्यालय जेट एयरवेज-एतिहाद प्रस्‍ताव में भूमिका निभा रहा है।
[2] मीडिया के कुछ समाचारों में लगाए जा रहे आरोप तथ्‍यात्‍मक रूप से गलत तथा आधारहीन हैं। सरकार में या मंत्रालयों और प्रधानमंत्री के बीच इस बारे में कोई असहमति नहीं है। प्रधानमंत्री ने द्विपक्षीय हवाई सेवाएं समझौते हाथ नहीं खींचा है और न ही प्रधानमंत्री कार्यालय इस मुद्दे पर पीछे हटने की तैयारी कर रहा है।
[३]मीडिया में दो अलग-अलग मामले उठाए जा रहे हैं। पहला भारत और आबू धाबी के बीच द्विपक्षीय हवाई सेवाएं समझौते के तहत सीट बढ़ाने के हक के बारे में है। यह द्विपक्षीय हवाई यातायात सीटों के हक के बारे में दो सरकारों के बीच समझौता है और दोनों देशों की सरकारों से संबंधित है।
[अ] दूसरा जेट एयरवेज और एतिहाद के बीच इक्विटी की हिस्‍सेदारी के प्रस्‍ताव के बारे में है जो निजी क्षेत्र की दो कंपनियों के बीच समझौता है। ऐसे समझौते में विदेशी निवेश होता है तथा इसलिए ये इस संबंध में किसी सरकार की नीति एवं कानून के अनुसार होने चाहिए। अलग-अलग मुद्दे होने और विभिन्‍न श्रेणी के निकायों के बीच के मुद्दे होने के नाते इन दोनों मामलों को अलग-अलग देखा जाना चाहिए
[४]जहां तक द्विपक्षीय हवाई सेवाएं समझौते की बात है, तथ्‍य सरल हैं। द्विपक्षीय हवाई सेवाएं समझौतों के तहत सीटों के हक में बदलाव आमतौर पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय और दूसरे देश के संबंधित मंत्रालय करते हैं। यह परिवर्तन सहमति ज्ञापन के तहत किए जाते हैं तथा इनके लिए उच्‍च स्‍तर पर अनुमोदन की जरूरत नहीं होती।

यह केस प्रधान मंत्री तक क्यूं आया

[५] 22-04-2013 को नागरिक उड्डयन मंत्री ने सीट के हक के बारे में आबू धाबी के साथ सहमति ज्ञापन सम्‍पन्‍न करने के लिए प्रधानमंत्री की अनुमति मांगी थी जो अंतर-मंत्रालय समूह की सिफारिश से भिन्‍न थी। इसलिए यह मामला प्रधानमंत्री के स्‍तर तक आया। प्रधानमंत्री ने वित्‍त मंत्री को निर्देश दिया कि मामले पर विस्‍तार से विचार करने के लिए नागरिक उड्डयन मंत्री, विदेश मंत्री और वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्री की बैठक बुलाए। मंत्री मिले और द्विपक्षीय विचार विमर्श के लिए प्रस्‍ताव पर सहमत हुए। इस बैठक का कार्यवृत्‍त वित्‍त मंत्रालय ने जारी कर दिया है।
[६] उसी दिन मंत्री मामले पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री से मिले। इस बैठक में राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव भी शामिल हुए। बैठक में पिछली बैठक के कार्यवृत्‍त में उल्‍लेखित फार्मूले के अनुसार वार्ता में आगे बढ़ने पर सैद्धांतिक सहमति बनी।
[७] इसके बाद 26-04-2013 को प्रधानमंत्री ने यह मामला मंत्रिमंडल के समक्ष लाने को कहा। इस संबंध में उन्‍होंने नागरिक उड्डयन मंत्री से भी बात की। प्रधानमंत्री कार्यालय ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय को औपचारिक रूप से यह मामला मंत्रिमंडल के समक्ष लाने को कहा। इस सम्बन्ध में नोट जारी कर दिया गया |
[८] इसके बाद हमारे विमानन क्षेत्र पर मध्‍य पूर्व की विमानन कंपनी के असर के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय में एक नोट प्राप्‍त हुआ। इसे विचार के लिए 22-05-2013 को नागरिक उड्डयन मंत्रालय को भेज दिया गया।
[९]मंत्रिमंडल ने जब इस नोट की समीक्षा की तो महसूस किया गया कि इसे सिलसिलेवार ढंग से पुन- तैयार करना चाहिए। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री कार्यालय ने 13-6-13 को नागरिक उड्डयन मंत्रालय को कैबिनेट नोट को फिर से तैयार करने के लिए नोट भेजा। प्रधानमंत्री कार्यालय से भेजा गया यह नोट जारी कर दिया गया है।
[१०]यह निजी कंपनियों के बीच का मामला है जिसके लिए वर्तमान नीतियों और कानून के अनुसार संबंधित एजेंट के अनुमोदन की जरूरत है। यह सरकारों के बीच समझौता नहीं है तथा इस मामले में पीछे हटने या प्रस्‍ताव का सम्‍मान न करने का सवाल ही नहीं उठता।
समझौते के बारे में शिकायत
इस मामले में प्रधानमंत्री को निम्‍नलिखित शिकायतें मिलीं –
1- प्रधानमंत्री ने 1-5-2013 को श्री गुरूदास दासगुप्‍ता का पत्र प्राप्‍त हुआ ।
2- 2-5-2013 को श्री प्रबोध पांडा का पत्र प्राप्‍त हुआ ।
3- 3-5-2013 को श्री सुचारू रंजन हलदर, सांसद का पत्र प्राप्‍त हुआ ।
4- 29-5-2013 को डॉ सुब्रह्मण्‍यम स्‍वामी का पत्र प्राप्‍त हुआ ।
5- 13-6-2013 को श्री अजय संचेती का पत्र प्राप्‍त हुआ ।
6- 21-6-2013 को श्री अजय संचेती का पत्र प्राप्‍त हुआ ।
इस मामले पर अभी विचार किया जा रहा है तथा इसलिए पीछे हटने या प्रस्‍ताव का सम्‍मान न करने का कोई सवाल ही नहीं उठता।

बराक ओबामा ने तंज़ानिया में जन संपर्क किया

प्रेजिडेंट बराक ओबामा ने अपनी अफ्रीका के तीन देशों की यात्रा के अंतिम पडाव में तंजानिया के राष्ट्रपति जकाया क्ल्क्वेते [ Jakaya Kikwete ] से मुलाक़ात की और गार्ड आफ आनर का सम्मान प्राप्त किया| सम्मान समारोह का आयोजन डार एस सलाम [ Dar es Salaam ]जूलियस न्येरेरे एयर पोर्ट[ Julius Nyerere International Airport ] पर किया गया|फर्स्ट लेडी मिशेल[ Michelle ] ओबामा और सलमा[ Salma ] क्ल्क्वेते भी इस एतिहासिक समारोह में गवाह बनी | इस अवसर पर ओबामा ने अपने काउंटर पार्ट के साथ प्रेस को भी संबोधित किया| इसके पश्चात राष्ट्रपति ने वहां के व्यापारिक लीडर्स [सी ई ओ ]से भी संपर्क किया|
Courtesy White house

कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए नेहरू ने ही ,सेना का उपयोग करने के बजाय, यूं.एन का रुख किया था

भाजपा के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृष्ण आडवाणी ने स्वतंत्र भारत के इतिहास में जम्मू &काश्मीर के पन्नो को पलटते हुए एक बार फिर कश्मीर समस्या के लिए कांग्रेस को कटघरे में खडा करने का प्रयास किया है|
अपने नए ब्लॉग के पश्च्यलेख [ TAILPIECE] में ब्लॉगर अडवाणी ने आई ऐ एस अधिकारी [१९४७]एम् के के नायर की पुस्तक विद नो इल फीलिंग टू एनीबडी [ With No Ill Feeling to Anybody”] और पायनियर [ Pioneer ] के हवाले से कहा है कि तत्कालीन केबिनेट मीटिंग के दौरान लोह पुरुष भारतीय बिस्मार्क सरदार वल्लभ भाई पटेल , प्रथम पी एम् की आपत्तिजनक टिपण्णी पर ,मीटिंग छोड़ कर चले गए थे| उन्होंने आगे कहा है कि पुस्तक में लिखा गया है कि कांग्रेस के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर में पटेल के सैनिक अभियान के सुझाव का हमेशा विरोध किया और संयुक्त राष्ट्र की और रुख किया|

राजनेता आज कल अपनी पार्टी की वेब साईट के बजाय विदेशी[ट्विटर] साइट्स पर राजनीति कर रहे हैं

sushma swaaraj
[1]Those who cannot govern in crisis do not deserve to be in the Government even for a day.==हिंदी में कहा जाये तो सुषमा स्वराज ने उत्तराखंड के मुख्य मंत्री से नाकामी के लिए इस्तीफा माँगा है|
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[2]What has your state Government done ? Nothing. The living are starving. The dead are being robbed. And you are patting your back.आपकी सरकार ने क्या किया है ?कुछ नहीं |लोग भूख से मर रहे हैं|लाशों के कफ़न तक चुराए जा रहे हैं|और आप लोगअपनी पीठ थपथपा रहे हैं|
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[3] Ajay Maken‏@ajaymaken
Instead of helping in relief works in U’khand, don’t try to use this calamity as a Political Opportunity! #NoPoliticsOverCalamity
45 retweet 6 FAVORITES उत्तराखंड में राहत कार्य में सहयोग करने के बजाय आपदा कोलेकर राजनीती कि जा रही है |आपदा पर पॉलिटिक्स नही होनी चाहिए
उत्तराखंड में आई प्राकृतिक विपदा में मारे गए लोगों की[१] चिताएं अभी ठंडी नहीं हुई
+[२]हज़ारों लापता लोगों के लिए तलाश भी शुरू नही हुई
[३]विपदा ग्रस्तों के पुनर्वास के लिए नीवं त़क नही रखी गई
दूसरे शब्दों में ये दर्द अभी कम नही हुआ कि राजनीतिको ने राजनीती करने के लिए सब्र का बाँध तोड़ ही दिया और शाब्दिक बम्ब बारी शुरू कर दी है| यह इनके डी एन ऐ की देन हो सकता है लेकिन इसके लिए नेताओं ने अपनी पार्टी की वेब साईट के बजाय ट्विटर जैसे सोशल साईट को मैदान बना लिया है|कांग्रेस और भाजपा की अपनी अपनी विशाल +आकर्षक +महंगी वेब साइट्स हैं और इन पर यदा कदा कुछ अप लोड किया जाता है लेकिन ज्यादा तर दूसरी प्राइवेट वेब साईट का ही इस्तेमाल किया जाता हैं |इससे एक संभावना पैदा होती है कि क्या इन वरिष्ठ नेताओं को अपनी बात कहने के लिए अपनी पार्टी की ही वेब साईट नही मिलती या फिर घर का जोगी जोगना और बाहर का जोगी सिद्ध वाली कहावत को चरितार्थ किया जा रहा है|इस सबसे एक बात तो तय है कि पार्टीकी वेब साइट्स के बजाय दूसरों की वेब साइट्स में ही खाद पानी डाला जा रहा है|
इन ट्विट्स पर नजर डाली जाए तो भाजपा की लोक सभा में नेता श्रीमती सुषमा स्वराज ने दो ट्विट्स किये हैं और दोनों ट्विट्स में रीत्विट्स और फेवरेट की संख्या क्रमश २४९+१७९+और ११० +४९ ही हैं|इसके बाद कांग्रेस के नए बने संचार मंत्री अजय माकन के ट्विट पर यह संख्या ४५ और ६ है| सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी के लिए मीडिया उपलब्ध रहता है इसीलिए उनके ट्विटर पेज पर ताला ही लगा रहता है|

बराक ओबामा ने अफ्रीकन प्रतिभाओं को विकास के लिए वाशिंगटन फेलो शिप की जानकारी दी

राष्ट्रपति बारक ओबामा ने साउथ अफ्रीका की अपनी सदभावना यात्रा के दौरान युवा अफ्रीकन लीडरों का दिल जीता|शनिवार कोओबामा ने जोहानसबर्ग यूनिवर्सिटी[ सोवेटो ] के टाउन हाल में कार्यक्रम में पब्लिक+प्राइवेट+सिविक[ public, private and civic ] छेत्रों से १८ से ३५ वर्ष के . ६०० यंग लीडर्स ने भाग लिया |केन्या +नाइजीरिया+यूगांडा+के युवा भी सेटेलाईट के माध्यम से जुड़े|
टाउन हॉल के प्रारम्भ में ओबामा ने यंग अफ्रीकन लीडर्स के लिए वाशिंगटन फेलो शिप नामक नए कार्यक्रम की जानकारी दी|इस नए कार्यक्रम के माध्यम से हज़ारों अफ्रीकन प्रतिभाओं को अपने विकास के लिए अमेरिकन विश्व विद्यालयों में विकास के अवसर मिल सकेंगे और अमेरिकन युवा को भी अफ्रीकन प्रतिभाओं से सीखने का अवसर मिलेगा|
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अडवाणी ने धारा ३७० के लिए कांग्रेस और उमर अब्दुल्लाह के दादा की गलतियों का इतिहास पढाया ;सीधे एल के अडवाणी के ब्लाग से

भाजपा के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृषण अडवाणी ने कभी अपने सहयोगी रहे जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को धारा ३७० पर सलाह देते हुए कहा कि उन्हें ‘धोखाधड़ी‘ और ‘विश्वासघात‘ जैसे शब्दों से भरी आक्रामक भाषा का उपयोग कभी नहीं करना चाहिए। अपने ब्लाग के माध्यम से अडवाणी ने कहा कि उन्हें[उमर] पता होना चाहिए कि संविधान सभा में धारा-370 जो जम्मू एवं कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करती, को जब स्वीकृति दी गई तब तक जनसंघ का जन्म भी नहीं हुआ था। हालांकि संविधान के प्रारूप में यदि कोई ऐसा प्रावधान था जिसका विरोध लगभग समूची कांग्रेस पार्टी कर रही थी तो वह यही प्रावधान था। इस मुद्दे पर नवम्बर, 1946 में संविधान सभा द्वारा संविधान को औपचारिक रूप से अंगीकृत करने से दो महीने पूर्व ही विचार किया गया।
इस विषय को लेकर इतिहास के पन्नो को पलटते हुए अडवाणी ने कहा कि सरदार पटेल के तत्कालीन निजी सचिव वी. शंकर द्वारा लिखित दो खंडों में प्रकाशित पुस्तक ‘माई रेमिनीसेंसेज ऑफ सरदार पटेल” के अनुसार विदेश जाने से पहले नेहरू ने जम्मू व कश्मीर राज्य से संबंधित प्रावधानों को शेख अब्दुल्ला के साथ बैठकर अंतिम रूप दिया और संविधान सभा के माध्यम से उन प्रावधानों को आगे बढ़ाने का काम अपने रक्षामंत्री गोपालस्वामी अयंगार को सौंप दिया। प्रस्तुतु है सीधे एल के अडवाणी के ब्लाग से :
अयंगार ने अपने प्रस्तावों को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में प्रस्तुत किया। शंकर के अनुसार इससे चारों ओर से रोषपूर्ण विरोध के स्वर उठने लगे और अयंगार स्वयं को बिल्कुल अकेला महसूस कर रहे थे, एक अप्रभावी समर्थक के रूप में मौलाना आजाद को छोड़कर।
शंकर के अनुसार, ‘पार्टी में एक बड़ा वर्ग था, जो जम्मू व कश्मीर और भारत अन्य तिरस्कृत राज्यों के बीच भेदभाव के किसी भी सुझाव को भावी दृष्टि से देख रहा था और जम्मू व कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के संबंध में एक निश्चित सीमा से आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं था।
सरदार पटेल स्वयं इसी मत के पक्ष में थे; लेकिन नेहरू और गोपालस्वामी अयंगार के निर्णयों में दखलंदाजी न करने की अपनी स्वाभाविक नीति के चलते उन्होंने अपने विचार प्रस्तुत नहीं किए और इस प्रकार, नेहरू और अयंगार ने अपने अनुसार ही सारा मामला निपटाया था। सच तो यह है कि प्रस्ताव का प्रारूप तैयार करने में सरदार पटेल ने भाग नहीं लिया था। इनके बारे में उन्हें तभी पता चला, जब गोपालस्वामी अयंगार ने कांग्रेस संसदीय दल के सामने उसे पढ़कर सुनाया।‘
कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में अपने साथ हुए कठोर बरताव से निराश होकर अयंगार अंतत: सरदार पटेल के पास पहुंचे और उन्हें इस स्थिति से बचाने का अनुरोध किया। सरदार पटेल ने कांग्रेस संसदीय ल की एक और बैठक बुलाई।
शंकर लिखते हैं कि: ”मैंने कभी भी ऐसी तूफानी और कोलाहलपूर्ण बैठक नहीं देखी। मौलाना आजाद को भी शोर मचाकर चुप करा दिया गया। अंत में चर्चा को सामान्य व व्यावहारिक स्थिति में लाने और बैठक में उपस्थित लोगों को यह समझाने-कि अंतरराष्ट्रीय जटिलताओं के कारण एक कामचलाऊ व्यवस्था ही की जा सकती है-का काम सरदार पटेल पर छोड़ा गया।‘
”ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस पार्टी अनिच्छापूर्वक ही सरदार पटेल की इच्छाओं के सामने झुकी। वस्तुत: इसी से स्पष्ट हो जाता है कि संविधान सभा में इस प्रावधान पर हुई चर्चा इतनी सतही और नीरस क्यों थी। अयंगार के अलावा और किसी ने कुछ नहीं कहा-न विरोध में, और न ही समर्थन में।”
यह ज्ञात हुआ, यहां तक कि सरदार पटेल और अयंगार को भी उन प्रारूप प्रावधानों को कांग्रेस पार्टी को सहमत कराना मुश्किल रहा जो विदेश जाने से पूर्व अयंगार और शेख अब्दुल्ला ने पण्डित नेहरू के साथ बैठकर तैयार किए थे; शेख अब्दुल्ला इन स्वीकृत प्रारूप् पर भी पुनर्विचार के संकेत देने लगे थे।
14 अक्तूबर, 1949 को गृह मंत्रालय में कश्मीर मामलों के सचिव विष्णु सहाय ने वी. शंकर को लिखा कि शेख अब्दुल्ला ने प्रारूप पर अपना रूख इस दलील पर बदला है कि नेशनल कांफ्रेंस की वर्किंग कमेटी ने इसे स्वीकृति नहीं दी है।
सहाय लिखते हैं कि अब्दुल्ला ने एक वैकल्िपिक प्रारूप भेजा है जिसमें प्रावधान है कि भारतीय संविधान जम्मू एवं कश्मीर में केवल माने गए विषयों पर ही लागू होगा। शेख ने इस तथ्य पर भी आपत्ति की कि प्रस्तावित अनुच्छेद को अस्थायी वर्णित किया गया है और राज्य की संविधान सभा इसे समाप्त करने हेतु सशक्त है।
15 अक्तूबर, 1949 को शेख अब्दुल्ला और उनके दो साथी अयंगार से मिले तथा उन पर प्रारूप बदलने को दवाब डाला। उसी दिन अयंगार ने सरदार पटेल कोइसकी जानकारी दी। 15 अक्तूबर को सरदार पटेल को लिखे अपने पत्र में अयंगार ने लिखा कि ”उनके (अब्दुल्ला और उनके दो साथियों) द्वारा की गई आपत्तियों में कोई ठोस मुद्दा नहीं था।” उन्होंने आगे जोड़ा ”अंत में मैंने उन्हें कहा कि मुझे उम्मीद नहीं थी कि आपके घर (पटेल) और पार्टी बैठक में हमारे प्रारूप के प्रावधानों पर सहमत होने के बाद, वे मुझे और पण्डितजी को इस तरह से शर्मिंदा करेंगे जिसका वे प्रयास कर रहे थे। उत्तर में, शेख अब्दुल्ला ने कहा कि ऐसा सोचने पर वह भी काफी दु:ख महसूस कर रहे हैं। लेकिन अपने लोगों के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए मुझे इस रूप में प्रारूप स्वीकार करना असम्भव है…….. उसके पश्चात् मैंने उन्हें कहा कि आप वापस जाइए और इस सब पर विचार कीजिए जो मैंने आपको कहा है और आशा है कि वह सही दिमागी दशा में आज या कल मेरे पास वापस आएंगे। तत्पश्चात् मैंने मामले पर आगे विचार किया तथा एक प्रारूप लिखा जिसमें मुख्य दृष्टिकोण को बदले बिना जोकि हमने हमारे प्रारूप में उल्लिखित किया है, में मामूली सा बदलाव किया है जिसे मैं उम्मीद करता हूं कि शेख अब्दुल्ला राजी हो जाएंगे।”
16 अक्तूबर, 1949 को सरदार पटेल का अयंगार को जवाब संक्षिप्त और कठोर था। वह अयंगार से इस पर सहमत नहीं थे कि बदलाव मामूली हैं। पटेल लिखते हैं: ”मैंने पाया कि मूल प्रारूप में ठोस बदलाव किए गए हैं, विशेष रूप से राज्य नीति के मूलभूत अधिकारों और नीति निदेशक सिध्दान्तों की प्रयोजनीयता को लेकर। आप स्वयं इस विसंगति को महसूस कर सकते हैं कि राज्य भारत का हिस्सा बन रहा है और उसी समय इन प्रावधानों में से किसी को भी स्वीकार नहीं कर रहा।”
पटेल ने आगे लिखा: ”शेख साहब की उपस्थिति में हमारी पार्टी द्वारा समूचे प्रस्ताओं को स्वीकृत करने के पश्चात् इसमें किसी भी बदलाव को मैं पसंद नहीं करता। जब चाहे शेख साहब लोगों के प्रति अपने कर्तव्य की दलील पर सदैव हमसे टकराव करते रहते हैं। मान लिया कि उनकी भारत या भारतीय सरकार या आपके और प्रधानमंत्री के जिन्होंने उनकी बात मानने में कोई कोताही नहीं बरती, के प्रति भी निजी आधार पर कोई कर्तव्य नहीं बनता।
अपनी कसी हुई टिप्पणियों में उन्होंने कहा: ”इन परिस्थितियों में मेरी स्वीकृति का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। यदि आपको यह करना सही लगता है तो आप आगे बढ़ सकते हैं।”
इस बीच शेख अब्दुल्ला ने अयंगार का संशोधित प्रारूप भी रद्द कर दिया और 17 अक्तूबर को अयंगार को लिखे एक पत्र में संविधान सभा से त्यागपत्र देने की धमकी भी दे दी।
17 अक्तूबर, 1949 को संविधान सभा ने बगैर ज्यादा बहस के अयंगार के मूल प्रारूप को स्वीकर कर लिया। शेख अब्दुल्ला से आशा थी कि वह बोलेंगे, लेकिन वह खिन्न और मौन रहे।
नेहरूजी के विदेश से लौटने के बाद सरदार पटेल ने उन्हें उनकी अनुपस्थिति में हुए घटनाक्रम को निम्न शब्दों में लिखा (3 नवम्बर, 1949):
”प्रिय जवाहरलाल,
कश्मीर सम्बन्धी प्रावधान के बारे में कुछ कठिनाईयां थी। शेख साहब उस समझौते से मुकर गए जो कश्मीर सम्बन्धी प्रावधान के सम्बन्ध में वह आपके साथ सहमत हुए थे। वह मूलभूत चरित्र में कुछ निश्चित बदलावों पर जोर दे रहे थे जो नागरिकता और मौलिक अधिकारों सम्बन्धी प्रावधानों को कश्मीर में लागू नहीं होने देने और इन सब मामलों सहित अन्य में भी वे हैं जो राज्य सरकार द्वारा एकीकरण के तीन विषयों जोकि इस रूप में वर्णित हैं कि महाराजा 8 मार्च, 1948 की उद्धोषणा के तहत नियुक्त मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम कर रहे हैं। काफी विचार विमर्श के बाद मैं पार्टी को इन सब बदलावों पर सहमत कर सका सिवाय अंतिम को छोड़कर, जोकि संशोधित किया गया जिससे न केवल पहला मंत्रिमण्डल कॅवर हो सके अपितु इस उद्धोषणा के तहत तत्पश्चात् भी मंत्रिमण्डल नियुक्त हो सकें।
शेख साहब अपने आपको इन बदलावों से नहीं जोड़ सके, लेकिन हम इस मामले में उनके विचारों को नहीं मान सके और प्रावधान सदन ने जैसाकि हमने बदले थे, को पारित कर दिया। इसके पश्चात् उन्होंने गोपालास्वामी अयंगार को पत्र लिखकर संविधान सभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने की धमकी दी है। गोपालस्वामी ने उनको जवाब दिया है कि वह आपके आने तक अपना निर्णय स्थगित रखें।
आपका
वल्लभभाई पटेल
जैसाकि इस ब्लॉग के शुरू में ही मैंने लिखा कि जम्मू एवं कश्मीर के संदर्भ में भाजपा के रूख पर ‘धोखाधड़ी‘ जैसे अपमानजनक शब्दों का उपयोग करना किसी के लिए भी शोभनीय नहीं है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर 1951 में जनसंघ के जन्म से लेकर आज तक हम न केवल सुस्पष्ट, स्पष्टवादी और सतत् दृष्टिकोण बनाए हुए हैं, अपितु यही एक ऐसा मुद्दा है जिसे लेकर हमारे संस्थापक-अध्यक्ष ने अपना जीवन बलिदान कर दिया और जिसके लिए लाखों पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपनी गिरफ्तारियां दी तथा अनेक तरह के कष्ट सहे। कानपुर में हमारे पहले अखिल भारतीय सम्मेलन के समय से लेकर हम जम्मू एवं कश्मीर के भारत में पूर्ण एकीकरण के लिए कटिबध्द हैं।

भाजपा ने निजी सुरक्षा एजेंसियों के लिए विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने का विरोध किया

भाजपा ने निजी सुरक्षा एजेंसियों के लिए विदेशी निवेश [एफडीआई] की सीमा बढ़ाने का विरोध किया है। रिटेल में एफडीआई का भी पार्टी विरोध करती आ रही है|
भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि निजी सुरक्षा एजेंसियों के लिए ऍफ़ डी आई की सीमा बढाने का प्रस्ताव देश की सुरक्षा के हिसाब से उचित नहीं है। उन्होंने सुरक्षा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा बढ़ाने वाली शमायाराम कमेटी की सिफारिशों पर कड़ी आपत्ति जताई है।
श्री जोशी ने कहा कि भाजपा खासतौर पर निजी सुरक्षा एजेंसियों में एफडीआई की सीमा 49 से बढ़ाकर 100 फीसदी करने के सख्त खिलाफ है।
उन्होंने बताया कि लगभग 50 लाख लोग निजी सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े हैं और ये सुरक्षा गार्ड निजी व सरकारी कार्यालयों की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे हैं।
लाल किला से लेकर कुतुब मीनार जैसी ऐतिहासिक भवनों की सुरक्षा भी निजी सुरक्षा गार्डों के पास है।
इसके बावजूद यह बात समझ में नहीं आ रही है कि सरकार निजी सुरक्षा एजेंसियों के लिए एफडीआई की सीमा 100 फीसदी क्यों करने जा रही है। ऐसे में विदेशी मालिक होंगे जोकि देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है।

कश्मीर में धारा ३७० के लिए पटेल नही वरन नेहरू जिम्मेदार हैं :एल के आडवाणी

भाजपा के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार एल के अडवाणी ने अपने नए ब्लॉग के पश्च्य लेख (टेलपीस)में कश्मीर में धारा ३७० के लिए पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराते हुए लोह पुरुष +इंडियन बिस्मार्क पटेल का बचाव किया है| श्री आडवाणी ने स्वतंत्र भारत के इतिहास के प्रारम्भिक पन्नो को खोलते हुए कहा है कि पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के दबाब में आ कर कश्मीर नीति में अपने स्वयम के निर्णय को त्याग कर सरेंडर कर दिया था|आडवाणी ने बताया कि सरदार पटेल की मृत्यु दिसम्बर, 1950 में हो गई थी।
24 जुलाई 1952 को पण्डित नेहरू ने जम्मू एवं कश्मीर से जुड़े मुद्दों पर लोकसभा में एक विस्तृत वक्तव्य दिया। इसमें उन्होंने मजबूती से अनुच्छेद 370 का बचाव किया। उन्होंने यह भी कहा कि सरदार पटेल ही जम्मू एवं कश्मीर के मामले को देख रहे थे। वी. शंकर जो 1952 में आयंगार के मंत्रालय में संयुक्त सचिव थे, अपने मंत्री के पास गए और जो हुआ था उस पर परस्पर जानकारी साझा की। गोपालस्वामी आयंगार की टिप्पणी थी: ”यह सरदार पटेल की उस उदारता का गलत और दुर्भावनापूर्ण प्रतिफल है, जो उन्होंने अपने उत्कृष्ट निर्णय को छोड़कर पण्डित नेहरू के दृष्टिकोण को स्वीकार करने में दिखाई।”