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एल के आडवाणी के ब्लॉग से:न्यायपालिका की स्वतन्त्रता पर सात खतरे

एन डी ऐ के सर्वोच्च नेता एल के अडवाणी ने अपने ब्लॉग में न्यायपालिका और उसकी स्वतन्त्रता पर मंडरा रहे सात खतरों के प्रति आगाह किया है|
प्रस्तुत है उनके ब्लॉग के एक लेख के अंत में दिया गया टेलपीस (पश्च्यलेख)
सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रूमा पाल ने नवम्बर, 2011 में पांचवें वी.एम. ताराकुण्डे स्मृति व्याख्यान में ‘एक स्वतंत्र न्यायपालिका‘ विषय पर बोलते हुए कहा था कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायिक व्यवस्था अंतत: न्यायाधीशों की निजी ईमानदारी पर निर्भर करती है। उन्होंने न्यायपालिका और इसकी स्वतंत्रता पर खतरे के ‘सात पाप‘ गिनाए।
”पहला पाप, एक सहयोगी के अविवेकपूर्ण आचरण के प्रति ‘आखें मूंद लेना‘ और मामले को दबाना। उन्होंने कहा विरोधाभास है कि ये (लोग) न्यायपालिका की स्वतंत्रता को आलोचकों के विरूध्द अवमानना की कार्रवाई करने में उग्र रहते हैं जबकि इसी को अपनी ढाल के रूप में उपयोग करते हैं, वह भी अनेकविध पापों को, जिनमें से कुछ धन के लाभ से जुड़े होते हैं और कुछ इतने ज्यादा नहीं।
दूसरा पाप है पाखण्ड। तीसरा है गुप्तता। उदाहरण के लिए, जिस प्रक्रिया से उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त किए जाते हैं या सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत किए जाते हैं – ‘को देश में सर्वाधिक गुप्त रखा जाता है।‘
चौथा पाप है दूसरे के शब्दों की चोरी और उबाऊ शब्द बहुलता।अहंकार पांचवां पाप है। न्यायाधीश अक्सर स्वतंत्रता को न्यायिक और प्रशासनिक अनुशासनहीनता के रूप में परिभाषित कर लेते हैंबौध्दिक बेईमानी छठा पाप है।सातवां और अंतिम पाप भाई-भतीजावाद है।

एल के आडवाणी के ब्लॉग से:न्यायपालिका की स्वतन्त्रता पर सात खतरे

Comments

  1. Will not forget that quite a few other ALS groups contributed to the booth and had been there with the conference! Attending ended up: Simon Teat, Christine Beavers, James Holton and Scott Classen. Also represented at the booth although not attending the conference were: Carolyn Larabell and Mark LeGros (x-ray tomography), Alastair MacDowell and Jason Knight (higher pressure diffraction), and Martin Kunz (Laue Microdiffraction). Did I overlook anybody?