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सिर्फ भगवान ही हमारी अर्थव्यवस्था की सहायता कर सकता है; सीधे एल के अडवाणी के ब्लाग से

एन डी ऐ के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृषण आडवाणी ने अपने नए ब्लॉग में भारत की बिगड़ी अर्थव्यवस्था पर नेताओं की अकर्मण्यता पर निशाना साधा और अर्थ व्यवस्था को बहग्वान के भरोसे बताया | ब्लागर अडवाणी ने स्तम्भकार तवलीन सिंह के लेख (आइए, सोनिया के बारे में बात करें) का हवाला दिया और यूं पी ऐ की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी को असली प्रधान मंत्री बताते हुए समृध्द भारत के सपने के धवस्तीकरण के लिए श्रीमती गाँधी को जिम्मेदार ठहराया|
”निराशा के इतने घने बादल छाए हुए हैं इन दिनों दिल्ली के राजनीतिक आकाश में कि याद करना मुश्किल है कि सोनिया गांधी की सरकार जब बनी थी एक दशक पहले तो मौसम बहारों का था….
उस समृध्द भारत के सपने को सोनिया गांधी की आर्थिक नीतियों ने खत्म कर दिया है, प्रधानमंत्री को दोष देना बेकार है क्योंकि पिछले दशक से इस देश का असली प्रधानमंत्री कौन रहा है, हम सब जानते हैं।”इसी समाचारपत्र के उसी पृष्ठ पर एक और अन्य स्तम्भकार मेघनाद देसाई की टिपण्णी का उल्लेख किया जिसमे कहा गया है के” गरीबी और भ्रष्टाचार भारतीय लोकतंत्र के दो स्तम्भ हैं। ये पवित्र हैं। यदि इन्हें धन्यवाद दिया जाए तो अर्थव्यवस्था ठप्प होती है, कठिन भविष्य कठिनाइयों है।
प्रस्तुत है सीधे एल के अडवाणी के ब्लॉग से :
संसद और मीडिया में पिछले एक महीने से देश के सम्मुख मौजूद गंभीर आर्थिक संकट की चर्चा मुख्य रुप से हो रही है। डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत भयावह गति से नीचे जा रही है! इन दिनों टिप्पणीकार बार-बार सन् 1991 के उस संकट की तुलना वर्तमान स्थिति से कर रहे हैं जब पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार को अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भारत को 67 टन सोना गिरवी रख 2.2 बिलियन डॉलर का आपात कर्जा लेने को बाध्य होना पड़ा था।
दो दिन पूर्व दि इक्नॉमोक्सि टाइम्स (31 अगस्त) ने प्रकाशित किया है: ”सभी प्रयासों के बावजूद रुपए की गिरावट को रोकने में असफल रहने के बाद, अब नीतिनिर्माताओं ने मंदिरों के द्वार खटखटाने की योजना बनाई है।
आंध्र का तिरुपति मंदिर, महाराष्ट्र में शिरडी मंदिर, मुंबई में सिध्दिविनायक और केरल में पद्मानाभास्वामी मंदिर, देश के उन सर्वाधिक अमीर मंदिरों में से हैंजिनके पास सोने का अकूत भण्डार है, से केंद्रीय रिजर्व बैंक उनसे उनके सोने को नकद में परिवर्तित करने को कहेंगे।
arun-jaitleysushma-swarajदोनों सदनों में विपक्ष के नेताओं सहित संसद में भाजपा के दस नेताओं और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष 30 अगस्त को राष्ट्रपति से मिले और उन्हें, वर्तमान आर्थिक संकट के बारे में एक ज्ञापन सौंपा जिसमें हमने कहा है:
”सदैव की भांति भारत सरकार सच्चाई से मुंह मोड़ रही है। इतने भर से वह संतुष्ट नहीं है और वर्तमान संकट के लिए खुद को छोड़कर बाकी सभी पर आरोप लगा रही है। यह विपक्ष, राज्य सरकारों, भारत के रिजर्व बैंक और वैश्विक कारणों पर दोषारोपण कर रही है। गैर-जिम्मेदारी की हद तब पार हो गई जब वित्त मंत्री ने इसका ठीकरा अपने पूर्ववर्ती (वित्त मंत्री) पर थोप दिया और प्रधानमंत्री मौन साधे रहे। महोदय, अर्थव्यवस्था और देश पर छाया वर्तमान संकट मुख्य रुप से विश्वास का संकट है। यहां एक ऐसी सरकार है जो निर्णय लेने, नेतृत्व प्रदान करने या भविष्य के लिए आशा की एक किरण दिखाने में अक्षम है। यह भयंकर भ्रष्टाचार में फंसी है। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय को भी अब संदेह है कि सरकार महत्वपूर्ण फाइलों को गायब कर साक्ष्यों को नष्ट करने का प्रयास कर रही है।
rajnath_singसंकट के इस मौके पर एक लकवाग्रस्त सरकार है, जो कभी नहीं बोलने वाले प्रधानमंत्री, एक ऐसा वित्त मंत्री जो गलत तरीके से अपने उस पूर्ववर्ती पर दोषारोपण करता है जो अपना बचाव नहीं कर सकता, एक ऐसी सर्र्वोच्च नेता जिसे इसकी चिंता नहीं है कि पैसा कहां से आएगा और एक जड़वत नौकरशाही जो अक्षम है, को देश वहन नहीं कर सकता। इस सरकार के मंत्री बेलगाम हैं और परस्पर विरोधी उद्देश्यों के लिए काम कर रहे हैं। भारत सरकार का राज्य सरकारों, विशेष रुप से गैर-यूपीए शासित राज्यों तथा विपक्षी दलों वाले राज्यों से सम्बन्ध निचले स्तर पर है। इसलिए, हम आप से अनुरोध करने आए हैं कि इस अनिश्चितता को समाप्त करने के लिए इस सरकार को शीघ्रातिशीघ्र नया जनादेश लेने की सलाह दें और अगामी तीन महीनों में होने वाले राज्य विधानसभाई चुनावों के सा