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जसपाल भट्टी मेरे द्रोणाचार्य थे

सटीक+ मर्यादित व्यंगों के माध्यम से विसंगतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले जसपाल भट्टी के आकस्मिक निधन से हास्य और व्यंग की दुनिया से जुड़े लोगों को गहरा आघात लगा है|में भी उनमे से एक हूँ|में उन्हें द्रोणाचार्य मानकर एकलव्य बन कर उनसे दूर रह कर उनके स्टाईल में लिखने का प्रयास करता रहा हूँ|

जसपाल भट्टी मेरठ में एक फेशन शो में मुख्य अथिति के रूप में व्यंगों की बौछार करते हुए

जालंधर में पोस्टिंग के दौरान आठवें दशक के मध्य में मुझे दूरदर्शन पर भट्टी जी का उल्टा पुल्टा कार्यक्रम देखने का अवसर मिला |जिसे देख कर और लोगों की तरह में भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाया | उस समय जालंधर दूरदर्शन पर कोई विशेष कार्यक्रम नहीं आते थे इसीलिए यह उलटा पुल्टा कार्यक्रम आभाव के रेगिस्तान में मनोरंजन का एक झरना लगता था| शायद इसीलिए इसे एक बार देखा तो हमेशा इस कार्यक्रम की इंतेज़ार रहने लगी| विषय की गहरी सोच+उसमे विसंगती तलाश कर +उसे व्यंग के माध्यम से प्रस्तुत करके विषय में हास्य पैदा करने के उनकी अनूठी कला थी इसका में आज भी कायल हूँ| मेरठ आ कर मैंने लिखना जारी रखा मगर मैंने भी भट्टी जी की तरह विसंगतियों को विषय बनाया और उनमे व्यंग का पुट देना शुरू कर दिया|मेरे व्यंग को नाम दिया गया| हिंदी में लिखे इस व्यंग में पंजाबी तड़का लग ही जाता था इस कालम को नाम दिया गया झल्ले दी गल्लां \यह लोक प्रिय हुआ | लगभग २० साल पहले भट्टी जी एक फेशन शो में मुख्य अथिति के रूप में मेरठ आये \उस समय में यह सोच कर हैरान था कि भट्टी जी जैसी शख्सियत का फेशन शो में क्या काम मगर यहाँ भी उन्होंने अपना स्टाईल दिखा कर सबका भरपूर मनोरंजन किया|यूं तो उन्होंने अपने मुख्य अथिति के भाषण में अपने तमाम सीरियलों के नामो को जोड़ा मगर आदतन एक डायलाग भी बोल गए ” लगता है कि अब गली मोहल्लों और गावों में भी फेशन शो हुआ करेंगे” दरअसल उस समय फेशन शो बड़े शहरों में ही हुआ करते थे मेरठ जैसा[ उस समय] छोटा शहर फेशन शो के आयोजकों को आकर्षित करने में सक्षम नहीं था|ऐसे में भट्टी जी को भी आश्चर्य हुआ होगा कि मेरठ में फेशन टेक्नालोजी का स्कूल चलाने वाली श्रीमती मालिक ने इतना बड़ा फेशन शो कैसे आयोजित कर डाला सो उन्होंने फेशन शो की बड़ती लोक प्रियता को निशाना बना ही दिया|

Comments

  1. Tillie says:

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