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भृष्ट राजनीती के प्रश्रय में पनप रही प्रशासनिक मजबूरियों के चलते मेडिकल कालेज में मानवीय संवेदनाएं मृत्यु शैय्या को तरसी

[मेरठ,यूपी]भृष्ट राजनीती के प्रश्रय में पनप रही प्रशासनिक मजबूरियों के चलते चिकित्सा के छेत्र में मानवीय संवेदनाएं मृत्यु शैय्या को भी तरस रही हैं |
कहीं बुनियादी ढांचा चरमरा रहा है तो कही मूलभूत सुविधाओं का रोना रोया जा रहा है |अनेकों चिकित्सा केंद्र चिकित्सकों+नर्सों आदि की हड़ताल के श्राप से ग्रसित है |ऐसा ही एक अस्पताल हैं यूपी के मेरठ में |
कहने को तो यह मेडिकल कॉलेज हैं जिसे स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय लाला लाजपत राय का नाम दिया गया है लेकिन दुर्भाग्य से कुव्यवस्था के चलते लालाजी के नाम पर भी कलंक लगाया जा रहा है|
बीते एक सप्ताह से यहां दवाओं की तो छोड़िये डाक्टरों का अकाल पड़ा हुआ है |गंभीर रोगों से ग्रसित मरीजों को उनके ईस्टदेव के भरोसे छोड़ा गया है|ऐसे ही एक मरीज संजय[५०] को एमरजेंसी में भर्ती कराया गया था |शुगर के मरीज के पैरों में गंगेरियन बता कर उसके इलाज से किनारा कर लिया गया |इसके लिए चिकित्सकों+सुविधाओं+के आभाव का रोना रोया गया |सीनियर डॉक्टर्स कीक्या कहें जूनियर डॉक्टर्स भी मरीजों के पट्टी तक करवाने के लिए उपलब्ध नहीं हुए |इसी उपेक्षा के चलते मरीज को हार्ट अटैक आ गया इस पर भी इलाज करने के बजाय तुरंत फुरंत मरीज को दिल्ली के लिए रेफेर कर दिया गया |जीवन रक्षक उपकरणों से लेस एम्बुलेंस तक मुहैय्या नहीं करवाई गए |निर्धन आय वर्ग से सम्बंधित मरीज के रिश्तेदारों ने ही प्राईवेट एम्बुलेंस की व्यवस्था करके मरीज को दिल्ली भेजा जहां वह मरीज अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा को मजबूर है| मरीज ना तो दलित है और नाही उसका समुदाय अल्पसंख्यक है |शायद यही उसका दोष है|