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फल इच्छा बिना कर्म करने से ईश्वर प्राप्ति सरल होती है


न में पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि
श्रीमदभगवदगीता
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं -हे पार्थ ! मुझे तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है
और न कोई प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्य है , फिर भी मैं कर्तव्य में लगा रहता हूँ .
व्याख्या : भगवान भी अवतार काल में सदा कर्तव्य , कर्म में लगे रहते हैं , इसलिए जो साधक फल की
इच्छा से रहित और आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्य , कर्म में लगा रहता है , वह आसानी
से भगवान को प्राप्त कर लेता है.
भगवद गीता
प्रस्तुती राकेश खुराना