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Tag: अच्छे दिन कब आएंगे

मोदीभापे!वाकई अच्छे दिन आ गए,गर्दिश में थे अपने,वो सभी तोंद बढ़ा गए

#मोदीभापे
अच्छे दिन आ गए,वाकई अच्छे दिन आ गए
गर्दिश में सितारे जिनके,वो नेता तोंद बढ़ा गए
वाकई अच्छे दिन आ गए
गाड़ी से गाड़ियां आई ,महल भी मंजिलें पा गए
मय्यसर नही था चिराग,वो सूरज को कब्जा गए
वाकई अच्छे दिन आ गए
बांटते फिरते फ्री दुनिया मे हमारे टैक्स का सामान
पीड़ित को हक़ देने में दलीलें कर देते हो नाकाम
वाकई अच्छे दिन आ गए
#कंपनसेशन/#रिहैबिलिटेशन क्लेम की सरकारी लूट
#PMOPG/E/2016/0125052

नरेंद्र मोदी जी क्या ये ही अच्छे दिन हैं या वाकई अच्छे दिन आने वाले हैं ?

नरेंद्र मोदी चुनावों से पहले कहते फिरते थे कि अच्छे दिन आने वाले हैं|चुनाव जीतने के बाद कहने लगे अच्छे दिन आ गए|अब विपक्षी पूछने लगे हैं कि अच्छे दिन कब आएंगे |अगर ऐसे ही अच्छे दिन के वायदे किये गए थे तो बुरे दिन कौन से होते होंगे |क्योंकि महंगाई सुरसा राक्षसी की तरह अपना मुह फाड़े ही जा रही हैं|
बिजली+पेट्रोल+डीजल+खाद्य पदार्थों के साथ ही रेल भी महंगी हो चली है |अपने मंत्रियों के कच्चे चिट्ठे खुलने लगे हैं| अपने गवर्नरों की रेल पटरी पर नहीं आ पाई है|शिक्षा के छेत्र में उठे विवाद अभी भी खड़े हैं|डी यूं चार साल के कोर्स के मामले में सरेंडर करने को तैयार नहीं है| सी पी एम टी की परीक्षा का पेपर गाजियाबाद में लीक हो गया है |सांसद स्थानीय समस्यायों को निबटवाने में अक्षम साबित हो रहे हैं| राज्यों में अपराध+भ्र्स्टाचार का ग्राफ नीचे नही हुआ है| रेल यात्रा भाड़े में १४.२% और माल भाड़े में ६.५% की बढ़ोतरी से चारों तरफ हाहाकार सा मच गया है | हाशिये पर आ चुके राजनीतिक दलों को गेम में लौटने के लिए बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया है| इस नकारात्मक एक्शन से रोजाना मीडिया में सुर्खियां बटोरी जा रही हैं |कुछ लोग प्रेस रिलीज़ जारी करने और कुछ लोग सडकों पर पुतले फूंकने +रैल रोकने के उपक्रम करने में लग गए हैं |
केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने जख्मों पर नमक मसलते हुए कहा है कि सरकार द्वारा रेल यात्री किराये व माल भाड़े में बढोतरीका फैसला कठिन लेकिन सही फैसला है | जेटली ने कहा है कि रेलवे का अस्तित्व तभी बचेगा अगर यात्री सुविधाओं के लिए भुगतान करें|यदपि कांग्रेस अपने सभी पैंतरों से केंद्र सरकार को घेरने में लगी हैलेकिन इसी पार्टी के पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कमोबेश अपने उत्तराधिकारी के कर्मो का समर्थन करते हुए कह दिया है कि किसी भी सरकार के लिए सभी कारकों को वश में करना संभव नहीं होता है|
ऐसा नहीं कि मोदी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है |मंत्रालयों से कबाड़ कबाड़ियों के हवाले किया जा रहा है +मीटिंग्स हो रही हैं+विदेशों में मोदी झंडे बुलंद हो रहे हैं | राजनीतिक प्रश्न का उत्तर तत्काल दिया जा रहा है+पानी उपलब्धि का बखान किया जा रहा है|अर्थार्त हर फील्ड में +मंत्रालय में उठापटक दिख रही हैं| लेकिन महंगाई पर तात्कालिक प्रभाव नहीं दिख रहा |
यहाँ एक किस्सा याद आ रहा है एक बार एक गावं में नया प्रधान बनाया गया गावं की समस्यायों को सुलझाने के लिए उसने सुबह से शाम तक गावं की गलियों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए एक सप्ताह बाद गावं वालों ने जब शिकायत की कि समस्याएं तो जस की तस ही हैं|इस पर प्रधान जी का जवाब आया कि तुम्हारी समस्याएं तो तुम्ही जानो मेरी भाग दौड़ में कोई कमी+कसर हो तो बताओ |यह उदाहरण अभी शत प्रतिशत खरा उतरा यह कहना जल्द बाजी होगा क्योंकि अभी इस सरकार को बने तीन सप्ताह ही हुए हैंऔर नरेंद्र मोदी का गुजरात इतिहास भी इसकी इजाजत नहीं देता |