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Tag: ईश्वरीय दर्शन की चाह

मुझे चरणों में ही रखो ताकि में अन्दर बाहर आपके दर्शन कर सकूँ ।

जनम जनम के बीछुरे हरि अब रह्यो न जाय ।
क्यों मन कू दुःख देत हो बिरह तपाय तपाय ।

मुझे चरणों में रखो ताकि में अन्दर बाहर आपके दर्शन कर सकूँ ।

भाव : दयाबाई जी कहती हैं हे प्रभु ! मैं जन्म जन्म से आपसे बिछुड़ी हुई हुईं और आगे मैं ज्यादा
इंतजार नहीं कर सकती ।यह विरह मुझे हर वक्त तडपा रहा है आप अंतर में भी आ जाओ
और बाहर भी मुझे अपने चरणों में रखो ताकि में अन्दर बाहर आपके दर्शन कर सकूँ ।
वाणी : दयाबाई जी
प्रस्तुति राकेश खुराना