जनम जनम के बीछुरे हरि अब रह्यो न जाय ।
क्यों मन कू दुःख देत हो बिरह तपाय तपाय ।
इंतजार नहीं कर सकती ।यह विरह मुझे हर वक्त तडपा रहा है आप अंतर में भी आ जाओ
और बाहर भी मुझे अपने चरणों में रखो ताकि में अन्दर बाहर आपके दर्शन कर सकूँ ।
वाणी : दयाबाई जी
प्रस्तुति राकेश खुराना
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