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Tag: जीवन तृष्णा

जैसे जैसे चंचल मृग रूपी सतगुरु जीवन मार्ग दिखाता है तृष्णा बढती जाती है

असां हुण चंचल मिर्ग फहाया ,
ओसे मैनूं बन्ह बहाया ,
हर्ष दुगाना उसे पढाया ,
रह गईयां दो चार रुकाटा ।

Rakesh Khurana

भाव: सद्गुरु (परमात्मा ) किसी चंचल मृग के समान है । वह आसानी से पकड़ में नहीं आता । मोह – माया के भयंकर जंगल में वह मन को भरमाता हुआ दौड़ाता रहता है परन्तु मैंने उस चंचल मृग को पकड़ लिया है । सद्गुरु मुझे मिल गया है परन्तु उसने भी मुझे बांधकर बैठा लिया है।
आत्मा और परमात्मा के एकत्व के बाद चंचलता का कोई अर्थ ही नहीं है ।उसी ने मुझे भजन का पाठ पढ़ाया है।उसी सद्गुरु ने मुझे यह ज्ञान दिया है कि उसे प्राप्त करने के लिए उससे प्रेम करना और उसका भजन करना ही एकमात्र मार्ग है ।परन्तु अब भी थोड़ा सा हिस्सा उससे पढ़ना बाकी है । सद्गुरु की शिक्षा कभी पूरी नहीं होती ।जैसे – जैसे वह जीवन का मार्ग दिखाता है प्यास जागती जाती है और लगता है कि अभी तो यह अधूरा है , अपूर्ण है ।
सूफ़ी संत सांई बुल्लेशाह
प्रस्तुति राकेश खुराना