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Archive for: March 2013

एल के अडवाणी के ब्लाग से :न्यायिक नियुक्तियों सम्बन्धी कॉलिजियम पध्दति इमरजेंसी से भी ज्यादा घातक

एन डी ऐ के पी एम् इन वेटिंग और वरिष्ठ पत्रकार लाल कृषण अडवाणी ने अपने ब्लॉग में वर्तमान न्यायिक नियुक्तियों सम्बन्धी कॉलिजियम पध्दति पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे लोक तंत्र के लिए इमरजेंसी कल से भी ज्यादा घातक बताया है उन्होंने इस कॉलिजियम पध्दति की पुनरीक्षा की जरूरत पर बल दिया है|इस ब्लाग में श्री अडवाणी ने टेलपीस नही दिया है
प्रस्तुत है एल के अडवाणी के ब्लाग से एक वरिष्ठ पत्रकार की चिंता
भारत को स्वतंत्र हुए 65 से ज्यादा वर्ष हो गए हैं। यदि कोई मुझसे पूछे कि साढ़े छ: दशकों की इस अवधि में देश की सर्वाधिक बड़ी उपलब्धि क्या रही है, तो निस्संकोच मेरा जवाब होगा : लोकतंत्र।

एल के अडवाणी के ब्लाग से :न्यायिक नियुक्तियों सम्बन्धी कॉलिजियम पध्दति इमरजेंसी से भी ज्यादा घातक

एल के अडवाणी के ब्लाग से :न्यायिक नियुक्तियों सम्बन्धी कॉलिजियम पध्दति इमरजेंसी से भी ज्यादा घातक

हम गरीबी, निरक्षरता और कुपोषण पर विजय नहीं पा सके हैं। लेकिन पश्चिमी विद्वानों के प्रचंड निराशावाद के विपरीत 1947 के बाद से औपनिवेशिक दासता से मुक्त होने वाले देशों में विशेष रूप से भारत जीवंत और बहुदलीय लोकतंत्र बना हुआ है।
यह भी सत्य है कि 1975-77 के आपातकाल की अवधि के दो वर्ष का कालखण्ड एक काले धब्बे की तरह है, जब कानून का शासन, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की अन्य जरूरी विशेषताओं पर ग्रहण लग गया था।
मेरा मानना है कि 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय जिसने न केवल प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी के चुनाव को अवैध करार दिया था अपितु उनके 6 वर्षों तक कोई भी चुनाव लड़ने पर रोक लगाई थी, की आड़ में सत्ता में बैठे लोगों ने हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा प्रदत्त लोकतंत्र को ही समाप्त करने का गंभीर प्रयास किया।
पं. नेहरू द्वारा शुरू किये गये नई दिल्ली से प्रकाशित दैनिक समाचार-पत्र नेशनल हेराल्ड ने तंजानिया जैसे अफ्रीकी देशों में लागू एकदलीय प्रणाली की प्रशंसा करते हुए एक सम्पादकीय लिखा:
जरूरी नहीं कि वेस्टमिनिस्टर मॉडल सबसे उत्तम मॉडल हो और कई अफ्रीकी देशों ने इस बात का प्रदर्शन कर दिया है कि लोकतंत्र का बाहरी स्वरूप कुछ भी हो, जनता की आवाज का महत्व बना रहेगा। एक मजबूत केन्द्र की आवश्यकता पर जोर देकर प्रधानमंत्री ने भारतीय लोकतंत्र की शक्ति की ओर संकेत किया है। एक कमजोर केंद्र होने से देश की एकता, अखंडता और स्वतंत्रता की रक्षा को खतरा पहुंच सकता है। उन्होंने एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है : यदि देश की स्वतंत्रता कायम नहीं रह सकती तो लोकतंत्र कैसे कायम रह सकता है?
दो सदियों के ब्रिटिश राज में भी अभिव्यक्ति के अधिकार को इतनी निर्ममता से नहीं कुचला गया जितना कि 1975-77 के आपातकाल के दौरान। 1,10,806 लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया, जिनमें 253 पत्रकार थे।
इस सबके बावजूद यदि लोकतंत्र जीवित है तो इसका श्रेय मुख्य रूप से मैं दो कारणों को दूंगा: पहला, न्यायपालिका; और दूसरा मतदाताओं को जिन्होंने 1977 में कांग्रेस पार्टी को इतनी कठोरता से दण्डित किया कि कोई भी सरकार आपातकाल के प्रावधान का दुरूपयोग करने की हिम्मत नहीं कर पाएगी जैसा कि 1975 में किया गया।
सभी प्रमुख राजनीतिक नेताओं, सांसदों इत्यादि को आपातकाल में मीसा-आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने वाले कानून-के तहत बंदी बना लिया गया था। इनमें जयप्रकाश नारायण के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, चन्द्रशेखरजी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता भी थे। कुल मिलाकर मीसाबंदियों की संख्या 34,988 थी। कानून के तहत मीसाबंदियों को कोई राहत नहीं मिल सकती थी।
सभी मीसाबंदियों ने अपने-अपने राज्यों के उच्च न्यायालयों में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की हुई थी। सभी स्थानों पर सरकार ने एक सी आपत्ति उठाई: आपातकाल में सभी मौलिक अधिकार निलम्बित हैं और इसलिए किसी बंदी को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है। लगभग सभी उच्च न्यायालयों ने सरकारी आपत्ति को रद्द करते हुए याचिकाकर्ताओं के पक्ष में निर्णय दिए। सरकार ने इसके विरोध में न केवल सर्वोच्च न्यायालय में अपील की अपितु उसने इन याचिकाओं की अनुमति देने वाले न्यायाधीशों को दण्डित भी किया। अपने बंदीकाल के दौरान मैं जो डायरी लिखता था उसमें मैंने 19 न्यायाधीशों के नाम दर्ज किए हैं जिनको एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में इसलिए स्थानांतरित किया गया कि उन्होंने सरकार के खिलाफ निर्णय दिया था!
16 दिसम्बर, 1975 की मेरी डायरी के अनुसार:
सर्वोच्च न्यायालय मीसाबन्दियों के पक्ष में दिये गये उच्च न्यायालय के फैसलों के विरूध्द भारत सरकार की अपील सुनवाई कर रहा है। इसमें हमारा केस (चार सांसद जो एक संसदीय समिति की बैठक हेतु बंगलौर गए थे लेकिन उन्हें वहां बंदी बना लिया गया) भी है। न्यायमूर्ति खन्ना ने निरेन डे से पूछा कि : संविधान की धारा 21 में केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं बल्कि जिंदा रहने के अधिकार का भी उल्लेख है। क्या महान्यायवादी का यह भी अभिमत है कि चूंकि इस धारा को निलंबित कर दिया गया है और यह न्यायसंगत नहीं है, इसलिए यदि कोई व्यक्ति मार डाला जाता है तो भी इसका कोई संवैधानिक इलाज नहीं है? निरेन डे ने उत्तर दिया कि : ”मेरा विवेक झकझोरता है, पर कानूनी स्थिति यही है।”
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय के अधिकांश न्यायाधीशों ने बाद में स्वीकारा कि उक्त कुख्यात केस में फैसला गलत था। इनमें से कई ने सार्वजनिक रूप् से अपने विचारों को प्रकट किया।
सन् 2011 में, सर्वोच्च न्यायालय ने औपचारिक रुप से घोषित किया कि सन् 1976 में इस अदालत की संवैधानिक पीठ द्वारा अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस में दिया गया निर्णय ”त्रुटिपूर्ण‘ था, चूंकि बहुमत निर्णय ”इस देश में बहुसंख्यक लोगों के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करता है,” और यह कि न्यायमूर्ति खन्ना का असहमति वाला निर्णय देश का कानून बन गया है।
इन दिनों देश में सर्वाधिक चर्चा का विषय भ्रष्टाचार है। एक समय था जब भ्रष्टाचार की बात कार्यपालिका-राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के संदर्भ में की जाती थी। कोई भी न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की बात नहीं करता था, विशेषकर उच्च न्यायपालिका के बारे में तो नही ही।
परन्तु हाल ही के वर्षों में इसमें बदलाव आया है। सर्वोच्च न्यायालय की एक पूर्व न्यायाधीश रूमा पाल ने नवम्बर, 2011 में तारकुण्डे स्मृति व्याख्यानमाला में बोलते हुए ”न्यायाधीशों के सात घातक पापों” को गिनाया। इनमें भ्रष्टाचार भी एक था।
अपने भाषण में उन्होंने कहा कि यह मानना कि आजकल न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है, भी ”न्यायपालिका की स्वतंत्रता की विश्वसनीयता के लिए उतना ही हानिकारक है जितना कि भ्रष्टाचार।”
मैं अक्सर इस पर आश्चर्य व्यक्त करता हूं कि यदि जून 1975 जैसी स्थिति आज देखने को मिले तो न्यायपालिका की प्रतिक्रिया कैसी होगी। क्या उच्च न्यायालयों के कम से कम 19 न्यायाधीश मीसाबंदियों के पक्ष में निर्णय कर कार्यपालिका की नाराजगी मोल लेने का साहस जुटा पाएंगे? सचमुच में मुझे संदेह है।
कालान्तर में, चयनित न्यायाधीशों के स्तर के सम्बन्ध में काफी बदलाव आया है जब रूमा पाल ने न्यायाधीशों के सात पापों के बारे में बोला तो, स्वयं एक सम्मानित न्यायविद् होने के नाते उन्होंने अपने भाषण में जानबूझकर यह चेतावनी जोड़ी कि वह ”सेवानिवृत्ति के बाद सुरक्षित” होकर बोल रही हैं।
वर्तमान में, न्यायिक नियुक्तियों और न्यायाधीशों के तबादले – भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों की एक समिति जिसे ‘कॉलिजियम‘ कहा जाता है, द्वारा किए जाते हैं। इस कॉलिजियम प्रणाली की जड़ें तीन न्यायिक फैसलों (1993, 1994 और 1998) में निहित हैं। इनमें से पहला और दूसरा निर्णय भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा ने दिया। फ्रंटलाइन पत्रिका (10 अक्तूबर, 2008) को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा ”सन् 1993 का मेरा निर्णय जिसका हवाला दिया जाता है को बहुत ज्यादा गलत समझा गया, दुरूपयोग किया गया। यह उस संदर्भ में कहा गया कि कुछ समय से निर्णयों की कार्यपध्दति के बारे में जो गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं उन्हें गलत नहीं कहा जा सकता। इसलिए पुनर्विचार जैसा कुछ होना चाहिए।”
सन् 2008 में, विधि आयोग ने अपनी 214वीं रिपोर्ट में विभिन्न देशों की स्थितियों का विश्लेषण करते हुए कहा: ”अन्य सभी संविधानों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में या तो कार्यपालिका एकमात्र प्राधिकरण्ा है या कार्यपालिका मुख्य न्यायाधीशों की सलाह से न्यायधीशों की नियुक्ति करती है। भारतीय संविधान दूसरी प्रणाली का अवलम्बन करता है। हालांकि, दूसरा निर्णय कार्यपालिका को पूर्णतया विलोपित अथवा बाहर करता है।”
‘फ्रंटलाइन‘ में प्रकाशित न्यायमूर्ति वर्मा के साक्षात्कार को उदृत करते हुए विधि आयोग लिखता है: ”भारतीय संविधान अनुच्छेद 124 (2) और 217(1) के तहत नियंत्रण और संतुलन की सुंदर पध्दति का प्रावधान करता है कि सर्वोच्च न्यायालयों और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका और न्यायपालिका की संतुलित भूमिका का उल्लेख है। यही समय है कि अधिकारों के संतुलन का वास्तविक स्वरुप पुर्नस्थापित किया जाए।”
हम, विश्व का सर्वाधिक बड़ा लोकतंत्र हैं जिसमें स्वाभाविक रुप से आशा की जाती है कि कम से कम उच्च न्यायिक पदों से जुड़ी नियुक्तियां पारदर्शी, निष्पक्ष और योग्यता आधारित पध्दति से हों। तारकुण्डे स्मृति व्याख्यानमाला में न्यायमूर्ति रुमा पाल ने टिप्पणी की कि ”सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया देश में सर्वाधिक रुप में गुप्त रखे जाने वाला विषय है।”
उन्होंने कहा कि ”इस प्रक्रिया की ‘रहस्यात्मकता‘ जिस छोटे से समूह से यह चयन किया जाता है और बरती जाने वाली ‘गुप्तता और गोपनीयता‘ सुनिश्चित करती है कि ‘अवसरों पर प्रक्रिया में गलत नियुक्तियां हो जाती हैं और इससे ज्यादा अपने आप को भाईभतीजावाद में फंसा देती हैं।”
वे कहती हैं कि एक अविवेकपूर्ण टिप्पणी या अनायास अफवाह ही पद के लिए किसी व्यक्ति की दृष्टव्य सुयोग्यता को बाहर कर सकती है। उनके अनुसार मित्रता और एहसान कभी-कभी अनुशंसाओं को सार्थक बना देते हैं।

दिल कहता है कि देश जरुर बदलेगा और यह आवाज दिलों तक पहुंचेगी :अरविन्द केजरीवाल

उपवास के छठे दिन आज आप पार्टी के सर्वोच्च नेता अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि सरकार के भय को दिल्ली वालों के दिल से समाप्त किये बगैर वोह चैन से नहीं बैठेंगे|उन्होंने समर्थकों को एड्रेस करते हुए कहा कि जब सच्चे दिल से आवाज निकलती है तो अपने आप घर घर हर दिल तक पहुँच जाती है| मेरा दिल कहता है देश जरुर बदलेगा |
सुन्दर नगरी में उपवास पर बैठे आप के नेता अरविन्द केजरीवाल ने आज भाजपा और कांग्रेस पर भी निशाना साधा उन्होंने कहा कि ये दोनों पार्टियां बदलाव की बयार से परेशान हैं|अभी तक ये दल बाहु बल और मनी के बल पर चुनाव जीत कर आते रहे हैं लेकिन अब एक तरह का चुनाव होगा|और यह चुनाव महज चुनाव नहीं बल्कि क्रांति होगी|

दिल कहता है कि देश जरुर बदलेगा और यह आवाज दिलों तक पहुंचेगी :अरविन्द केजरीवाल

दिल कहता है कि देश जरुर बदलेगा और यह आवाज दिलों तक पहुंचेगी :अरविन्द केजरीवाल

इस अवसर पर किसान नेता गुरनाम सिंह ने बताया कि हरियाणा में किसानो ने बिजली १४ साल से बिजली के बिल देने बंद कर रखे हैं|मनीष शिशोदिया ने कहा कि मध्य प्रदेश में ८०० गावों ने बिजली के बिलों को देना बंद किया हुआ है| इन नेताओं ने दिल्ली के नागरिकों को भी एक जुट होकर बिजली पानी के अनाप शनाप बिलों को नहीं देने को प्रेरित किया |
आप के प्रवक्ता के अनुसार होली के बाद कार्यकर्ताओं ने और जोशो खरोश से जन संपर्क अभियान तेज कर दिया है| नार्थ वेस्ट के मुन्द्का में ट्रेक्टर पर ओसतन २५० समर्थक प्रति दिनके हिसाब से जुटाए जा रहे हैं| करावल में एक पोलिस कांस्टेबिल ने आन्दोलन के लिए लगातार दो दिन कार्य करने का ऐलान किया | बताया गया है कि ७००० कार्यकर्ताओं द्वारा पूरी दिल्ली में जन संपर्क में जुटे हैं इनके अलावा पड़ोसी राज्यों से भी स्वयम सेवक आने लग गए हैं|अभी तक इनकी संख्या ५०० बताई गई है|

पोलिस ने आज होली मनाई

पोलिस ने आज होली मनाई

पोलिस ने आज होली मनाई

मेरठ की पोलिस ने आज होली मनाई दरअसल होली पर पोलिस वाले कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए त्यौहार में भी ड्यूटी पर होते है इसीलिए होली के अगले दिन अर्थात आज होली मानी गई|प्रस्तुत है महिला थाना आदि में मनाई गई होली के कुछ द्रश्य

मेरठ में प्रशासन के होली मिलन की कुछ झलकियाँ

[ मेरठ] के टाप प्रशासनिक अधिकारियों ने आज होली मिलन का आयोजन किया इस अवसर पर राजनीतिकों ने भी गले मिल कर प्रशासन और नेताओं में दूरी कम करने का प्रयास किया |भाजपा +बसपा+कांग्रेस के नेता एक दूसरे के बगलगीर हुए और होली की मुबारकें बांटी|फोटो का विवरण निम्न है
[१[भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डाक्टर लक्ष्मी कान्त वाजपई
[२]बसपा के राज मंत्री शाहिद मंजूर जिलाधिकारी और कमिश्नर के साथ
[३] शाहिद मंजूर+पोलिस कप्तान और व्यापारी नेता नगीन चंद जैन
[४] भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल +कमेला किंग युसूफ कुरैशी
[५] कुरैशी और

मेरठ में प्रशासन के होली मिलन की कुछ झलकियाँ

मेरठ में प्रशासन के होली मिलन की कुछ झलकियाँ

वाजपई

अरविन्द केजरीवाल के उपवास के छठे दिन स्वास्थ्य गिरा : पल्स रेट में गिरावट HEALTH OF ARVIND KEJRIWAL DETERIORATED

आम आदमी पार्टी[आप ] के सर्वोच्च नेता के उपवास का छठा दिन है आज सुबह के हेल्थ बुलेटिन में डाक्टरों की टीम ने उपवास पर बैठे नेता के हेल्थ की जांच की | आप के नेता के स्वास्थ्य में गिरावट नोट की| शुगर+किटों और पल्स में बीते दिन के मुकाबिले आज सुबह गिरावट दर्ज़ की गई है| पार्टी का दावा है के बेशक अरविन्द केजरीवाल का स्वास्थ्य गिर रहा है मगर भ्रस्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के लिए उनका हौंसला बुलंद है और उनके असहयोग आन्दोलन के साथ जुड़ने वालों की संख्या में लगातार बढोत्तरी हो रही है| बीते दिन का रिकार्ड २.६९ ४२३ है|पार्टी के दावे के अनुसार दिल्ली के निवासियों का सरकार के विरुद्ध अब जुड़ना शुरू हो गया है और यही इस उपवास का उद्देश्य भी है|

अरविन्द केजरीवाल के उपवास के छठे दिन स्वास्थ्य गिरा : पल्स रेट में गिरावट

अरविन्द केजरीवाल के उपवास के छठे दिन स्वास्थ्य गिरा : पल्स रेट में गिरावट

28 march 2013 27march २०१३
[१] ब्लड प्रेशर ========१२० /७४ ======== ११४ /७०
[२]पल्स==============६६ ७४
[३]शुगर==============१०६ =१०८
[४] यूरिन में कीटोंKetone==3+ ==============4+
[५]वजन ============================५९.५ के जी

संजय दत्त ने हीरो की तरह सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई जेल की सजा को सहर्ष काटने का एलान किया :माफी नहीं मांगेंगे

अवैध हथियार रखने के दोष में सजा पाए फिल्म स्टार संजय दत्त ने आज हीरो की तरह सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई [और] साडे तीन साल की जेल की सजा को सहर्ष काटने का एलान कर दिया | 1993 मुंबई ब्लास्ट के संबंध में अविध हथियार रखने के दोष में सुप्रीम कोर्ट से 5 साल की जेल की सजा पाने के बाद बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त आज पहली बार मीडिया के सामने आए| अपना स्टेटमेंट देते समय संजय दत्त इतने भावुक हो गए कि वो रो पड़े और उनके साथ उनकी बहन सांसद प्रिय दत्त ने उन्हें कंधे का सहारा दिया|

संजय दत्त ने हीरो की तरह सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई जेल की सजा को सहर्ष काटने का एलान किया :माफी नहीं मांगेंगे

संजय दत्त ने हीरो की तरह सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई जेल की सजा को सहर्ष काटने का एलान किया :माफी नहीं मांगेंगे


मीडिया को एड्रेस करते हुए संजय दत्त ने कहा है कि वोह [संजय] टूट चुके हैं उनका परिवार टूट चूका है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं और जेल जाने के लिए निश्चित अवधि में ही सरेंडर करेंगे |सजा से माफी के लिए कोई अपील नहीं करेंगे| कोर्ट का सम्मान करते हैं और अपने देश से प्यार करते हैं| इसके साथ उन्होंने यह भी साफ किया कि वह दिए हुए वक्त के अंदर सरेंडर करेंगे|
संजय दत्त ने अंग्रेज़ी में मीडिया से कहा कि यह मेरे [संजय]लिए काफी मुश्किल वक्‍त है. मैंने माफी की अपील नहीं की है और ना ही करूंगा.
उन्होंने कहा कि मैं उन लोगों का आभारी हूं जिन्होंने मेरा साथ दिया. मैं अपने देश और यहां के लोगों से बेहद प्यार करता हूं. इसके बाद उन्होंने मीडिया से कहा कि मुझे जेल जाने से पहले अपना काम खत्म करना है इसलिए मैं शांति चाहता हूं.|उन्‍होंने रूंधे गले से कहा, ‘मैं मीडिया से कहना चाहूंगा कि मेरे जेल जाने में कुछ ही दिन बाकी बचे हैं. मुझे बहुत से काम करने हैं जो आधे पड़े हैं. मुझे अपनी फिल्‍में पूरी करनी हैं. मुझे परिवार के साथ भी वक्‍त गुजारना है. तो मैं हाथ जोड़कर गुजारिश करना चाहूंगा कि मुझे थोड़ा वक्‍त शांति से गुजारने दें.| इसी के साथ संजय दत्त ने मीडिया से भी अपील की कि उनकी सजा को माफ किए जाने पर बहस नहीं की जाए.
इसके पश्चात संजय दत्त कमालिस्तान[कमल अमरोही स्टूडियो] फिल्म स्टूडियो में पुलिसिया फिल्म की शेष शूटिंग करने चले गए|स्टूडियो में भी भावुक नज़ारा था वहां कम करने वाले कर्मियों ने अपनी बाजु पर सफ़ेद पट्टी बाँध कर अपने नायक को समर्थन दिया|इसी बीच रिटायर्ड जस्टिस मार्कंडेय काटजू का ब्यान भी आया है उन्होंने कहा है कि संजय दत्त को माफी के लिए अपील करने की कोई जरुरत नहीं है संजय की शेष सजा माफी के लायक है और उसके लिए जरुर प्रयास किये जायेंगे|
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 1993 के मुंबई ब्‍लास्‍ट मामले में संजय दत्त को हथियार रखने का दोषी पाया है.| उन्‍हें आर्म्‍स एक्‍ट के तहत पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई है|12 मार्च 1993 को सिलसिलेवार 12 धमाके हुए थे, जिसमें 257 लोगों की मौत हुई थी|
संजय पहले ही 18 महीने जेल में रह चुके हैं और १८ साल तक उनके माथे पर आतंकवादी का काला टीका लगा कर सजा दी जा चुकी है|इसके बावजूद भी उन्‍हें अब करीब साढ़ तीन साल और सजा काटनी होगी|इस अवधि में अच्छे आचरण के लिए उनकी साल भर की सजा जेल प्रशासन द्वारा कम करने की सिफारिश की जा सकती है|ऐसे में उन्हें केवल ढाई साल और जेल में गुजारने होंगे | अब ढाई साल की सजा के लिए माफ़ी की दी जानी है| उन्‍हें चार हफ्तों के अंदर खुद को सरेंडर करना है|कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भी माफ़ी के लिए आवाज उठा चुके हैं|
राज्यसभा सांसद अमर सिंह और जया प्रदा ने भी २६ मार्च मंगलवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल के शंकर नारायणन से मुलाकात की थी.
बीजेपी + शिवसेना +अन्ना हजारे ने इसका विरोध किया है|.उल्लेक्नीय है के [१]संजय दत्त की फिल्मो पर इंडस्ट्री का लगभग २५० करोड़ रूपया लगा हुआ है|
[२] संजयदत्त ने १८ साल तक उस अपमान को पीया है जिसके वोह दोषी नही थे [३] जो अपराध उन्होंने किया नहीं था उसके लिए डेड साल की सजा काट चुके हैं[४]अब वोह सुधर चुके हैं और सजा भी मात्र ढाई साल की बचती है ऐसे में माफी की मांग उठना स्वाभाविक ही है|

परवेज मुशर्रफ ने हारे हुए कारगिल युद्ध पर गर्व करके चुनावी रणनीति का ऐलान किया

परवेज मुशर्रफ ने हारे हुए कारगिल युद्ध पर गर्व करके चुनावी रणनीति का ऐलान किया

परवेज मुशर्रफ ने हारे हुए कारगिल युद्ध पर गर्व करके चुनावी रणनीति का ऐलान किया

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की पाकिस्तान में वापिसी को विश्व मीडिया हाथों हाथ ले रहा है| भारतीय मीडिया भी इसका अपवाद नहीं है|इसका फायदा उठा कर जनरल परवेज भारत के खिलाफ जहर घोल कर वहां की अवाम के एक विशेष वर्ग की सहानुभूति हासिल करने में लगे हैं तो अमेरिकाके साथ संबंधों की वकालत करके पावर फुल बैकिंग भी हासिल करने में लगे हुए हैं|ऐसा नहीं की यह उन्होंने अभी शुरू किया है वरन पाकिस्तान में आने से पहले ही यह प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी |उनके एक पूर्व सिपह सालार ने अपनी एक किताब के जरिये इसकी भूमिका बनानी शुरू कर दी थी|
दरअसल पाकिस्तान के एक[पूर्व] जनरल ने यह कह कर सबको चौंका दिया था कि जनरल परवेज मुशर्रफ बावर्दी भारतीय सीमा में घुसे और एक रात भी बिता कर लौट गए| इस चौंकाने वाली खबर का स्वयम जनरल परवेज ने खंडन नहीं किया था बल्कि इसे बार्डर पर एक स्वाभाविक घटना बताया था|भारतीय [पूर्व ]जनरल वी के सिंह ने अपने समक्ष के दुस्साह की सराहना भी की थी |अब फिर से जनरल परवेज ने भारत के विरुद्ध कारगिल युद्ध पर गर्व प्रकट किया है| एक प्रेस कांफ्रेंस में जनरल परवेज ने कहा है कि करगिल अभियान पाकिस्तानी फौज का सबसे सफल ऑपरेशन है | करगिल में पाकिस्तान ने भारत को गर्दन से पकड़ लिया था।इसीलिए करगिल में भारत के ख़िलाफ़ लड़ाई पर पाकिस्तान को गर्व होना चाहिए।
पाकिस्तान में 11 मई को आम चुनाव होने हैं।औरजनरल इन चुनावों में कराची से भाग लेने की अपनी महत्वकांक्षा जाहिर कर चुके हैं|फौज की वर्दी छोड़ चुके जनरल को कारगिल का यह बयान वहां की फौज को गौरवान्वित करेगा और उसका झुकाव एक बार फिर से अपने पूर्व जनरल कि तरफ हो सकता है|
9/11 हमलों के बाद चरमपंथ के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका का साथ देने पर अपनी सफाई देते हुए उन्होंने कहा कि उस समय अमेरिका का साथ देना देश के हित
में था।इस अवसर पर उन्होंने न्यायालय की सहानुभूति हासिल करने के लिए कहा कि उनके कार्यकाल में किसी भी न्यायाधीश को सजा नहीं दी गई|
कारगिल युद्ध में करारी हार के बावजूद उस युद्ध पर गर्व करना सोची समझी रणनीति का एलान ही है|भारतीय कूटनीति आज कल अमेरिका के दबाब में काम करती है सो कोई शक नही कि जनरल परवेज के इस दुस्साहस को नज़र अंदाज किया जाए अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान के बाद भारत में चुनाव होने हैं |पाकिस्तान में चुनावो का फायदा अगर जनरल को मिलता है तो उसका नुक्सान भारत में सत्ता रुड दल को हो सकता है|

तमिल नाडू में श्रीलंकन क्रिकेटर्स नही खेलेंगे:पिक्चर अभी बाकी है


झल्ले दी झल्लियाँ गल्लां

एक क्रिकेट प्रेमी

ओये झल्लेया हसाडी राजनीती किस दिशा में हमें ले जा रही है ? अब तमिल नाडू में फरमान जारी हो गया है कि तमिल नाडू में होने वाले इंडियन प्रीमियर लीग [आई पी एल ]के मई में दो मैचों में श्रीलंकन प्लेयर्स को खेलने नही दिया जाएगा| ओये यार कल कहा जाएगा कि पूरे देश में श्रीलंकन प्लेयर्स को खेलने नहीं दिया जाएगा|भाई ऐसा कैसा चलने दिया जा रहा है|

झल्ला

अरे मेरे भोले बालक ये लड़ाई राजनितिक वर्चस्व के लिए है|वहां की विपक्षीऔर केंद्र में यूं पी ऐ की सहयोगी रही पार्टी डी एम् के ने श्रीलंका में तमिल के उत्पीडन को मुद्दा बना कर एक बड़ी लकीन खींच दी है|अब २०१४ के चुनाव आने वाले हैं इन चुनावों में कहीं डी एम् के के हाथ तीर न लग जाये इसीलिए मुख्य मंत्री जय ललिता ने यह तुक्का चला दिया है|अब आई पी एल वाले भी ठहरे शुद्ध व्यापारी सो उन्होंने इस तुक्के को भी सर आँखों पर धारण करके मान लिया कि तमिल नाडू में खेले जाने वाले दोनों मैचों में श्रीलंकन प्लेयर्स को नही खिलाया जाएगा|मैच अगले माह पूरे देश में

तमिल नाडू में श्रीलंकन क्रिकेटर्स नही खेलेंगे:पिक्चर अभी बाकी है

तमिल नाडू में श्रीलंकन क्रिकेटर्स नही खेलेंगे:पिक्चर अभी बाकी है

खेले जाने हैं सो पिक्चर अभी बाकी है|

संत अपना प्यार सर्वत्र फैलाकर मानव को प्रेम और भक्ति के मार्ग पर लाते हैं

संत अपना प्यार सर्वत्र फैलाकर मानव को प्रेम और भक्ति के मार्ग पर लाते हैं

संत अपना प्यार सर्वत्र फैलाकर मानव को प्रेम और भक्ति के मार्ग पर लाते हैं

संत महिमा अपार है |संत हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं|संत ही हमें ईश्वरीय प्रेम का अनुभव करते हैं|
संत की महिमा का वर्णन करते हुए बताया गया है कि संत प्रेम का साकार रूप होते हैं । वे हमें सिखाते हैं कि हम अपना जीवन किस तरह का बनायें । संत जानते हैं कि आत्मिक विकास की प्राप्ति के लिए हममें नैतिक गुणों का होना जरुरी है क्योंकि इन सदगुणों में प्रेम छिपा होता है ।संत अपना प्यार सर्वत्र फैलाकर हमें प्रेम और भक्ति के मार्ग पर लगा देते हैं । प्रभु के धाम तक पहुँचने के लिए हमें प्राणिमात्र के प्रति प्रेम भरा ह्रदय रखना होगा । इसप्रकार का प्रेमपूर्ण जीवन अपना लेने पर हमारा जीवन प्रभु तक पहुँचने योग्य हो जायेगा और फिर संत हमें ईश्वरीय प्रेम का स्वाद चखाकर हममें उस अमृत को ज्यादा से ज्यादा पाने की इच्छा जगाते हैं ताकि हम अंतर में उतर जाएँ । जितना हम अंतर में जायेंगे , हमें उतना ही अधिक ईश्वरीय प्रेम का अनुभव प्राप्त होगा । आखिर में जब हम सचखंड पहुँच जाते हैं , हमें संत की आत्मिक महानता का अनुभव होता है ।
प्रस्तुति राकेश खुराना

पांच दिन के उपवास में अरविन्द केजरीवाल के शरीर का वजन साड़े पांच किलो घटा :असहयोगियों की संख्या २६९४२३ हुई

उपवास में अरविन्द केजरीवाल के शरीर का वजन साड़े पांच किलो घटा :असहयोगियों की संख्या २६९४२३ हुई

उपवास में अरविन्द केजरीवाल के शरीर का वजन साड़े पांच किलो घटा :असहयोगियों की संख्या २६९४२३ हुई

आम आदमी पार्टी के उपवास के पांचवे दिन आज असहयोगियों की संख्या २ .६९ लाख तक पहुंची|उपवास पर बैठे अरविन्द केजरीवाल के स्वास्थय में गिरावट जारी है|मेडिकल बुलेटिन में बताया गया है कि [
[१] यूरिन केटों Ketone ]का स्तर =4+
[२]ब्लड प्रेशर =114/७०
[३]पल्स = ७४
[४] शुगर =१०८
[५] वजन =[६५-५९.५]=५.५ के जी

आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता के अनुसार बेशक अरविन्द केजरीवाल का स्वास्थ्य गिर रहा है मगर उनका हौंसला बुलंद हैऔर उनके असहयोग आन्दोलन के साथ जुड़ने वालों की संख्या २.६९ ४२३ पर जा पहुंची है|पार्टी के दावे के अनुसार दिल्ली के निवासियों का सरकार के प्रति डर अब कम हो रहा है और यही इस उपवास का उद्देश्य भी है|