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Category: Poetry

कामनाओं से रहित होकर नाम जपने वाले ही ईश्वर की भक्ति का रस लेते हैं

सकल कामना हीन जे , राम भक्ति रस लीन ।
नाम सुप्रेम पियूष हृद , तिनहूं किए मन मीन ।
संत तुलसी दास जी

Rakesh khurana

भाव: संत तुलसी दास जी कहते हैं जो कामनाओं से रहित होकर नाम जपते हैं —मुख्य रूप से मनुष्य चार कामनाओं की पूर्ति के लिए ईश्वर को याद करता है —कोई बीमारी के इलाज के लिए , कोई रूपये के लिए , कोई मान- सम्मान के लिए और कोई मोक्ष प्राप्ति के लिए —– वे कहते हैं कि जो इनसे रहित होकर नाम जपते हैं वो ही सच्चे अर्थों में ईश्वर की भक्ति का रस लेते हैं ।जैसे मछली पानी के बिना नहीं रह सकती , पानी उसका जीवन आधार है ऐसे ही नाम का जाप , ईश्वर की सच्चे मन से आराधना उनका जीवन आधार बन जाता है , वे उसके बिना नहीं रह सकते ।
संत तुलसी दास जी
प्रस्तुती राकेश खुराना

जीवन मरण के चक्कर से मुक्ति पाने के लिए महापुरुष से विवेक लेना होगा

कहे कबीर पुकारि के , साधुन समुझाई हो ।
सत् सजीवन नाम है , सतगुरु हि लखाई हो ।

Rakesh Khurana On Sant Kabir das

:
संत कबीर दास जी फरमाते हैं कि मैं पुकार -पुकार कर कह रहा हूँ चौरासी लाख जिया – जून के चक्कर से बचने का और हमेशा की मुक्ति पाने का एक ही साधन है और वो ये है कि हम किसी महापुरुष के चरणों में पहुंचकर उनसे नामदान लें , उनके हुक्म के मुताबिक अपना जीवन बनाएँ , जीते जी मरना सीखें ।हममें विवेक हो , ताकि हम सत -असत का निर्णय कर सकें ।
संत कबीर दास जी की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

प्रभु को पाने के लिए विरह – विह्वलता की आंच में तपकर आंसू बहाना भी उसकी ही कृपा द्रष्टि है

प्रभु को पाने के लिए संत कविओं ने मार्ग बताये हैं संत कबीर और आमिर खुसरो ने विरह व्हिलता को प्रभु की कृपा बताया है |प्रस्तुतु है इन दोनों महान संत कविओं की वाणी
[१]अज़ सरे बालीने – मन बरखेज़ ऐ नादाँ तबीब ।
दर्द मंदे इश्क रा , दारू बजुज़ दीदार नेस्त \

Rakesh Khurana On Amir Khusaro & Sant Kabir Das

भाव ; ऐ मूर्ख चिकित्सक ! तू मेरे सिरहाने से उठ जा , मैं तो विरह का रोगी हूँ । मेरे रोग का उपचार केवल प्रियतम(गुरु) का दर्शन है , उसकी कृपा दृष्टि है।
परम संत कबीर दास जी ने भी इसी भाव को व्यक्त किया है :-
[२]सुखिया सब संसार है , खावे और सोवे ।
दुखिया दास कबीर है , जागे और रोवे ।
अर्थात प्रभु को पाने का रास्ता आंसुओं का रास्ता है । प्रभु को जिसने भी पाया , विरह – विह्वलता की आंच में तपकर , आंसू बहा कर पाया है ।
[१] अमीर खुसरो
[२] परम संत कबीर दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

जैसे जैसे चंचल मृग रूपी सतगुरु जीवन मार्ग दिखाता है तृष्णा बढती जाती है

असां हुण चंचल मिर्ग फहाया ,
ओसे मैनूं बन्ह बहाया ,
हर्ष दुगाना उसे पढाया ,
रह गईयां दो चार रुकाटा ।

Rakesh Khurana

भाव: सद्गुरु (परमात्मा ) किसी चंचल मृग के समान है । वह आसानी से पकड़ में नहीं आता । मोह – माया के भयंकर जंगल में वह मन को भरमाता हुआ दौड़ाता रहता है परन्तु मैंने उस चंचल मृग को पकड़ लिया है । सद्गुरु मुझे मिल गया है परन्तु उसने भी मुझे बांधकर बैठा लिया है।
आत्मा और परमात्मा के एकत्व के बाद चंचलता का कोई अर्थ ही नहीं है ।उसी ने मुझे भजन का पाठ पढ़ाया है।उसी सद्गुरु ने मुझे यह ज्ञान दिया है कि उसे प्राप्त करने के लिए उससे प्रेम करना और उसका भजन करना ही एकमात्र मार्ग है ।परन्तु अब भी थोड़ा सा हिस्सा उससे पढ़ना बाकी है । सद्गुरु की शिक्षा कभी पूरी नहीं होती ।जैसे – जैसे वह जीवन का मार्ग दिखाता है प्यास जागती जाती है और लगता है कि अभी तो यह अधूरा है , अपूर्ण है ।
सूफ़ी संत सांई बुल्लेशाह
प्रस्तुति राकेश खुराना

पूर्णतया गुरु समर्पित हो कर ही मार्ग में बिछे प्रलोभनों के जाल से बचा जा सकता है

इधर कहा कि न छूटे सवाब का जादा ।
उधर सजा भी दिया रास्ता गुनाहों का ।

Rakesh Khurana

खुराना
भाव: एक प्रेमी (ईश्वर -भक्त ) अपने प्रियतम (प्रभु ) से शिकायत कर रहा है कि एक तरफ तो तुम मुझसे ये कहते हो कि मैं नेक – पाक रहूँ , पवित्रता को धारण करूँ , दिन – रात तुम्हारी भक्ति करूँ , काम ,क्रोध , लोभ ,मोह , अहंकार से दूर रहूँ और दूसरी ओर रास्ते में हर जगह प्रलोभनों के जाल बिछा रखें हैं जिनसे बच निकलना मुश्किल है । जरा कदम फिसला कि गए । काम ,क्रोध , लोभ ,मोह , अहंकार आदि से बचने के लिए किसी पूर्ण , समर्थ गुरु पर हमारा अटल विश्वास हो ,हम पूर्णतया गुरु समर्पित हो जाएँ ।उनकी दया – मेहर से ही हम रास्ते में बिछे प्रलोभनों के जाल में फंसने से बच सकते हैं ।
उर्दू रूहानी शायर हजरत शमीम करहानी
प्रस्तुति राकेश खुराना

प्रार्थना तो आत्मा की गहराइयों से निकलनी चाहिए

Rakesh Khurana


कबीर मुलां मुरारे किआ चढहि सांई न बहरा होइ ।
जा कारनि तूं बांग देहि दिल ही भीतर जोई ।
भाव: संत कबीर दास जी कहते हैं कि ए इमाम ! आजान के लिए ऊंचे मीनार पर जाकर क्यों बांग देता है , परमात्मा बहरा नहीं है ।जिसके लिए तू बांग दे रहा है वह तो तेरे दिल में विराजमान है अर्थात ईश्वर की प्रार्थना के लिए हमें कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि प्रार्थना तो आत्मा की गहराइयों से निकलनी चाहिए । जिस चीज के लिए प्रार्थना करें उस की सच्ची ख्वाहिश होनी चाहिए जो न केवल बुद्धि विचार करके हो बल्कि अंतरात्मा से होनी चाहिए ।
संत कबीर दास जी की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना

मुर्शिद का दीदार [सतगुरु दर्शन] करोड़ों हजों अर्थात [पावन तीर्थ] काबे की करोड़ों यात्राओं से बढ़कर है

इह तन मेरा चश्माँ होवे ते मैं मुर्शिद वेख न रज्जाँ हू ।
लूं -लूं दे मुढ़ लाख -लाख चश्माँ , इक खोलाँ इक कज्जाँ हू ।
ऐनिया डिठियाँ सबर न आवे ,होर किते वाल भज्जाँ हू ।
मुर्शिद दा दीदार है बाहू मैंनू लख करोड़ हज्जाँ हू ।

Rakesh Khurana

अर्थ : ये मेरा समूचा शरीर आँखें बन जाए और मैं सारी आँखों से मुर्शिद (सतगुरु ) का दर्शन करूँ , तो भी मुझे उनके दर्शन से संतोष नहीं होगा ।एक -एक रोम मेरा लाख -लाख आँख बन जाए , एक आँख खोलूं ,एक बंद करूँ ,जिससे दर्शन का तार टूटने न पाए , इतना देखने पर भी मुझे संतोष नहीं होता । बाहू साहब कहते हैं कि मुर्शिद का दीदार अर्थात सतगुरु का पावन दर्शन मेरे लिए करोड़ों हजों अर्थात मुसलमानों के पावन तीर्थ काबे की करोड़ों यात्राओं से बढ़कर है ।
संत कवि हजरत बाहू साहब
प्रस्तुति राकेश खुराना

खेल के पांसे ही अपने हाथ में हैं लेकिन दांव नहीं

निज कर क्रिया रहीम कहि , सुधि भावी के हाथ ।
पांसे अपने हाथ में , दांव न अपने हाथ ।

खेल के पांसे ही अपने हाथ में हैं लेकिन दांव नहीं

अर्थ : रहीम दास जी कहते हैं कि अपने हाथ में तो कर्म करना है , परिणाम भविष्य के गर्भ में है ।जैसे -जुआरी के हाथ में खेल के पांसे तो अपने हाथ में होते हैं ,परन्तु दांव अपने हाथ में नहीं होता ।
भाव :आदमी को अपना कर्म करते रहना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि फल की प्राप्ति आदमी के हाथ में नहीं होती । ‘गीता ‘ में भी कहा गया है – ‘ कर्मण्येवाधिकरास्ते मा फलेषु कदाचन ‘ अर्थात श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तू कर्म कर (युद्ध कर )परिणाम की चिंता मत कर । तुझे कर्म करने का अधिकार है , कर्म फल पाने का नहीं संत रहीम दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

जीवन में प्रभु के प्रति शुक्राने का अंश जरूर होना चाहिए

ये अल्लाह की देन है प्यारे, अपने बस का रोग नहीं ।
शुक्रे नेमत भी करता जा , दामन भी फैलाता जा ।

Rakesh Khurana

ये जो हमारी जिंदगी है,उसमे शुक्राने का अंश होना चाहिए जो प्रभु ने हमें दिया है । इसके लिए हमें हर साँस के साथ प्रभु का शुक्राना करना चाहिए और जो शिष्य है , वह तो अपना दामन फैलाए ही रहेगा , प्रभु से उसकी दया – मेहर मांगता ही रहेगा ।
हफ़ीज़ ‘जालंधरी ‘
प्रस्तुति राकेश खुराना

प्रभु अब तो अंतर में आ जाओ और विरह के कष्ट कारी समय से मुक्ति वरदान दो

जनम जनम के बीछुरे हरि अब रह्यो न जाय ।
क्यों मन कू दुःख देत हो बिरह तपाय तपाय ।

Rakesh Khurana


भाव : संत दयाबाई जी अपने पूर्व जन्मों की ओर संकेत करके यह कह रहीं हैं कि कई जन्म गुज़र गए हैं मैं आपसे बिछुड़ी हुई हूँ और आप तक वापिस नहीं पहुँच सकी हूँ । और आगे मैं ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती । मेरी हिम्मत टूट चुकी है , अब मैं बेहाल हूँ । यह विरह का समय बड़ा कष्टकारी है । ऐसी हालत में आपसे प्रार्थना करती हूँ कि मुझ पर दया करें । मेरे गुनाहों की तरफ ध्यान न दें । आप अंतर में भी आ जाओ और बाहर भी मुझे अपने चरणों में रखो ताकि मैं अन्दर बाहर आपके दर्शन करती रहूँ ।
संत दयाबाई
प्रस्तुति राकेश खुराना