सकल कामना हीन जे , राम भक्ति रस लीन ।
नाम सुप्रेम पियूष हृद , तिनहूं किए मन मीन ।
संत तुलसी दास जी
संत तुलसी दास जी
प्रस्तुती राकेश खुराना
सकल कामना हीन जे , राम भक्ति रस लीन ।
नाम सुप्रेम पियूष हृद , तिनहूं किए मन मीन ।
संत तुलसी दास जी
कहे कबीर पुकारि के , साधुन समुझाई हो ।
सत् सजीवन नाम है , सतगुरु हि लखाई हो ।
प्रभु को पाने के लिए संत कविओं ने मार्ग बताये हैं संत कबीर और आमिर खुसरो ने विरह व्हिलता को प्रभु की कृपा बताया है |प्रस्तुतु है इन दोनों महान संत कविओं की वाणी
[१]अज़ सरे बालीने – मन बरखेज़ ऐ नादाँ तबीब ।
दर्द मंदे इश्क रा , दारू बजुज़ दीदार नेस्त \
असां हुण चंचल मिर्ग फहाया ,
ओसे मैनूं बन्ह बहाया ,
हर्ष दुगाना उसे पढाया ,
रह गईयां दो चार रुकाटा ।
इधर कहा कि न छूटे सवाब का जादा ।
उधर सजा भी दिया रास्ता गुनाहों का ।
इह तन मेरा चश्माँ होवे ते मैं मुर्शिद वेख न रज्जाँ हू ।
लूं -लूं दे मुढ़ लाख -लाख चश्माँ , इक खोलाँ इक कज्जाँ हू ।
ऐनिया डिठियाँ सबर न आवे ,होर किते वाल भज्जाँ हू ।
मुर्शिद दा दीदार है बाहू मैंनू लख करोड़ हज्जाँ हू ।
निज कर क्रिया रहीम कहि , सुधि भावी के हाथ ।
पांसे अपने हाथ में , दांव न अपने हाथ ।
ये अल्लाह की देन है प्यारे, अपने बस का रोग नहीं ।
शुक्रे नेमत भी करता जा , दामन भी फैलाता जा ।
जनम जनम के बीछुरे हरि अब रह्यो न जाय ।
क्यों मन कू दुःख देत हो बिरह तपाय तपाय ।
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