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खेल के पांसे ही अपने हाथ में हैं लेकिन दांव नहीं

निज कर क्रिया रहीम कहि , सुधि भावी के हाथ ।
पांसे अपने हाथ में , दांव न अपने हाथ ।

खेल के पांसे ही अपने हाथ में हैं लेकिन दांव नहीं

अर्थ : रहीम दास जी कहते हैं कि अपने हाथ में तो कर्म करना है , परिणाम भविष्य के गर्भ में है ।जैसे -जुआरी के हाथ में खेल के पांसे तो अपने हाथ में होते हैं ,परन्तु दांव अपने हाथ में नहीं होता ।
भाव :आदमी को अपना कर्म करते रहना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि फल की प्राप्ति आदमी के हाथ में नहीं होती । ‘गीता ‘ में भी कहा गया है – ‘ कर्मण्येवाधिकरास्ते मा फलेषु कदाचन ‘ अर्थात श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तू कर्म कर (युद्ध कर )परिणाम की चिंता मत कर । तुझे कर्म करने का अधिकार है , कर्म फल पाने का नहीं संत रहीम दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

Comments

  1. I discovered your blog using google. I must I am floored by your blog. Keep up the good work.

    1. Jamos says:

      Thanks For Your Valuable & Encouraging Comments.Please Keep Visiting