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Tag: संत रहीम दास जी की वाणी

इन्द्रियों पर एकाधिकार करने वाला जीवन में सुख , दुःख की कहाँ परवाह करता है

जेहि रहीम तन मन लियो , कियो हिए बिच भौन ।
तासों दुःख सुख कहन की , रही बात अब कौन ।

Rakesh khurana On Sant Rahim Das Ji

अर्थ : कवि रहीम का कथन है कि जिस व्यक्ति ने तन – मन पर अधिकार कर लिया है , उसने ह्रदय में स्थान बना लिया है ।ऐसे प्रेमी से अब दुःख , सुख कहने की कौन सी बात शेष रह गई है।
भाव : जिसने अपनी समस्त इन्द्रियों पर एकाधिकार कर लिया है अर्थात उन्हें अपने वश में कर लिया है , वही व्यक्ति ईश्वर के प्रेम को अपने ह्रदय में स्थान दे पाता है ।ऐसा ईश्वरीय प्रेम का दीवाना व्यक्ति , जीवन में सुख , दुःख की कहाँ परवाह करता है , वह तो समदर्शी हो जाता है। वह सभी में ईश्वर की छवि निहारना लगता है , सभी जीवों से प्रेम करने लगता है ।दुःख – सुख , सांसारिक मोह – माया और किसी तरह का लालच उसे कभी नहीं भरमाता ।
संत रहीम दास जी की वाणी
प्रस्तुती राकेश खुराना

कुविचार और दुष्कर्म जितने भी लुभावने लगें , उन्हें त्याग देना ही हितकर होता है

रहिमन रहिला की भली ,जो परसै चित लाय ।
परसत मन मैलो करे , सो मैदा जरि जाय ।
अर्थ : कवि रहीम कहते हैं कि बेसन का आटा हितकर है, जिसको प्रेमपूर्वक शरीर पर मला जाता है , परन्तु मलने पर जो तन-मन को मैला कर दे , उस मैदा का नष्ट हो जाना ही बेहतर है।

Rakesh khurana On Sant Rahim Das

भाव: जिन सद्विचारों और कर्मों से तन_मन शुद्ध और पवित्र हो उन्हें ही ग्रहण करना हितकर होता है। किन्तु जिन कुविचारों और कर्मों से तन-मन मैला हो , वे देखने में चाहे कितने ही अच्छे लगें , उन्हें त्याग देना ही हितकर होता है।
संत रहीम दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

खेल के पांसे ही अपने हाथ में हैं लेकिन दांव नहीं

निज कर क्रिया रहीम कहि , सुधि भावी के हाथ ।
पांसे अपने हाथ में , दांव न अपने हाथ ।

खेल के पांसे ही अपने हाथ में हैं लेकिन दांव नहीं

अर्थ : रहीम दास जी कहते हैं कि अपने हाथ में तो कर्म करना है , परिणाम भविष्य के गर्भ में है ।जैसे -जुआरी के हाथ में खेल के पांसे तो अपने हाथ में होते हैं ,परन्तु दांव अपने हाथ में नहीं होता ।
भाव :आदमी को अपना कर्म करते रहना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि फल की प्राप्ति आदमी के हाथ में नहीं होती । ‘गीता ‘ में भी कहा गया है – ‘ कर्मण्येवाधिकरास्ते मा फलेषु कदाचन ‘ अर्थात श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तू कर्म कर (युद्ध कर )परिणाम की चिंता मत कर । तुझे कर्म करने का अधिकार है , कर्म फल पाने का नहीं संत रहीम दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना

आदमी को सदा अपनी सीमा में रहकर ही कार्य करना चाहिए

रहिमन अति न कीजिये , गहि रहिये निज कानि ।
सैजन अति फूले तऊ , डार पात की हानि ।
अर्थ : रहीम दास जी कहते हैं किसी भी चीज की भी अति कदापि न कीजिये । हमेशा अपनी मर्यादा को पकड़े रहिये । जैसे सहिजन वृक्ष के अत्याधिक विकसित होने से उसकी शाखाएँ और पत्ते झड़ जाते हैं ।
भाव : अति हर चीज की बुरी होती है । आदमी को सदा अपनी सीमा में रहकर ही कार्य करना चाहिए
संत रहीम दास जी की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना