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स्थानीय चुनावी वैतरणी पार करने के लिए एक राष्ट्रीय चेहरे की पतवार की ही तलाश है: मेरठ में भाजपा हारी

[मेरठ]ऐतिहासिक छावनी बोर्ड के आठ वार्डों के लिए हुए चुनावों में भाजपा को करारी शिकस्त मिली है|आठ सीटों में से केवल दो सीटों पर ही सफलता मिली |
मेरठ कैंट बोर्ड चुनाव में भारतीय जनता पार्टी[भाजपा]को करारा झटका लगा है। राष्ट्रीय पार्टी को 8 वार्डों में से केवल 2 सीटों पर ही संतोष करना पडा। इन नतीजों से भाजपा के स्थानीय न्रेतत्व के सदस्यता अभियान के दावों को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है | मात्र आठ सीटों के लिए हुए चुनावों में लगभग ४०,००० मतदाताओं के रुझान और ध्रुवीकरण को समझ पाने में नाकाम स्थानीय न्रेतत्व द्वारा सदस्यता अभियान के भारी भरकम दावों की सत्यता पर भी यह चुनाव सम्भवत बढ़ा प्रश्न चिन्ह है ???शायद स्थानीय भाजपा को स्थानीय चुनावी वैतरणी पार करने के लिए में अभी भी एक अदद राष्ट्रीय चेहरे की पतवार की ही तलाश है
चुनावों के नतीजे निम्न है
वार्ड एक से रिनी जैन,
वार्ड 2 से बुशरा कमाल,
वार्ड तीन से बीना वाधवा,
वार्ड चार से नीरज राठौर,
वार्ड पांच से अनिल जैन,
वार्ड 6 से मंजू गोयल,
वार्ड सात से धर्मेन्द्र सोनकर व
वार्ड आठ से विपिन सोढी विजयी रहे।
गौरतलब है कि यहाँ के विधायक[सत्यप्रकाश अग्रवाल]+सांसद [राजेंद्र अग्रवाल]भाजपा से हैं |इसके अलावा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ लक्ष्मी कान्त वाजपाई भी इसी शहर से हैं|शहर के मेयर[हरिकांत अहलूवालिया ] भी भाजपा के ही हैं |यहाँ तक कि स्थानीय निकाय प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक अमित अग्रवालभी इसी छेत्र से हैं इसके बावजूद यहाँ मिली करारी हार से पार्टी की कार्यविधि पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है|
जानकारों के अनुसार प्रत्याशियों के चयन में एक वर्ग विशेष की अनदेखी से भी यह अप्रिय स्थिति उत्प्न्नहुई है|भाजपा के अपने असंतुष्टों ने ही भाजपा के विजय रथ को रोका है| देश में 62 और यूपी के 23 कैंट बोर्ड हैं अन्य की तरह मेरठ में भी भाजपा का कैंट बोर्ड चुनाव में सफाया हो गया है।
यहाँ भाजपा ने अपने सिंबल पर प्रत्याशी उतार कर प्रयोग किया था लेकिन सफलता नहीं मिली।यह अपने आप में विचारणीय है कि अधिकाँश शहरों में भाजपा ने अपने मेयरों को विजय दिलाने में सफलता पाई लेकिन इन्ही शहरों के कैंट बोर्डों में करारी हार का सामना करना पढ़ा है