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जाग पियारी अब का सोवै रैन गई दिन काहे को खोवै

जाग पियारी अब का सोवै |
रैन गई दिन काहे को खोवै ||
जिन जागा तिन मानिक पाया |
तैं बोरी सब सोय गँवाया ||

जाग पियारी अब का सोवै रैन गई दिन काहे को खोवै


वाणी : संत कबीर दास जी
भाव : यहाँ कबीर दास जी हमारी आत्मा को पुकार रहे हैं , वह आत्मा जो सोई हुई है ,
प्रभु से बहुत दूर है | आत्मा की नींद से तात्पर्य है कि काम , क्रोध , मोह , लोभ
और अहंकार के कारण हम अपने आपको भूल चुके हैं | अब रात गुजर चुकी है ,
ऐ इन्सान ! तेरी अँधेरी रात अब समाप्त हो चुकी है | हमारी आत्मा के लिए अँधेरी
रात वह समय है जो हम भिन्न – भिन्न योनियों में गुजारते हैं | मानव चोला
धारण करने के बाद भी यदि हम प्रभु के शब्द के साथ नहीं जुड़े तो हमारे लिए
दिन भी अँधेरी रात के समान है |
जो जाग उठा है , उसने रत्न को पा लिया है अर्थात जो प्राणी सतगुरु की शरण
में आ गया , वह जाग उठा है और जब सतगुरु हमें प्रभु के शब्द के साथ जोड़ देता
है तो हमें अनमोल खजाने मिल जाते हैं |कबीर दास जी कहते हैं कि ऐ आत्मा ! तू
पागल की तरह अपनी जिंदगी गुजार रही है , तू सोती ही रहती है , इसी कारण प्रभु
ने जो रूहानियत के खजाने तुम्हारे अन्दर रखे हुए हैं , तुझे उसकी खबर ही नहीं है
|वाणी : संत कबीर दास जी
प्रस्तुति राकेश खुराना