युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम ।
अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ।
व्याख्या-कर्म बाँधने वाले नहीं होते , प्रत्युत कर्म फल की इच्छा बाँधने वाली होती है । कर्म न तो बाँधते हैं , न मुक्त ही करते हैं । कर्मों में सकाम भाव बाँधने वाला और निष्काम भाव मुक्त करने वाला होता है ।
श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीभगवानुवाच
प्रस्तुति राकेश खुराना
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