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चारि पदारथ जे को मांगै, साध जना की सेवा लागै

चारि पदारथ जे को मांगै, साध जना की सेवा लागै
जे को आपुना दुखु मिटावै, हरि-हरि नामु रिदै सद गावै
जे को अपुनी सोभा लोरै, साध संगी इह हउमै छोरै
जे को जनम मरण ते डरे , साध जना की सरनी परै .
भाव: चारों पदार्थों ( धर्म, अर्थ,काम,मोक्ष) में से कोई कुछ चाहे तो उसे सद्गुरु की सेवा करनी चाहिए. अगर किसी को
दुःख और कष्टों से छुटकारा पाने की इच्छा हो तो उसे अपने आन्तरिक ह्रदय आकाश की गहराई में जाकर शब्द (नाम)
के साथ संपर्क स्थापित करना चाहिए. अगर किसी को अपनी प्रसिद्धि और नाम की इच्छा हो तो किसी संत की संगत
में जाकर अपने अहंकार का त्याग करना चाहिए. अगर किसी को जीने- मरने के कष्ट से डर लगता है तो किसी संत
के चरण कमलों का सहारा ढूँढना चाहिए.
वाणी गुरु अर्जुन देव जी,
प्रस्तुति राकेश खुराना

कुरीतियों के दाग साफ़ करने वाला कोई धोबी अर्थार्त गुरु नहीं मिला

चुनर मोरी मैली भई अब का पे जाऊं धुलान ।
घाट घाट मैं खोजत हारी कोई धुबिया मिला न सुजान ।

भाव : रूह रुपी स्त्री की पुकार है कि मेरी जिस्म रुपी चुनर बड़ी मैली हो गई है अर्थात इस पर काम , क्रोध , मोह आदि के दाग लग गए हैं । जहाँ मुझे पता मिला कि कोई महात्मा है , मैं वहां गई , यह आशा लेकर कि वो मेरी चुनर पर लगे दागों को साफ़ कर देगा , पर मैंने देखा कि सब पेट का धंधा कर रहे हैं ,परमार्थ के नाम पर व्यापार कर रहे हैं । मुझे कोई ऐसा धोबी अर्थात गुरु (स्वामी जी महाराज धुबिया या धोबी यहां गुरु के लिए प्रयोग करते हैं ) न मिला जो इस चुनर को साफ़ कर सके ।

कुरीतियों के दाग साफ़ करने वाला कोई धोबी अर्थार्त गुरु नहीं मिला


प्रस्तुति राकेश खुराना