इक नदिया इक नार कहावत , मैलो नीर भरो ।
जब दोनों मिल एक बरन भये, सुरसरी नाम परौ ।
संत सूरदास जी समझाते हैं कि एक नदी है एक नाला है; नदी में साफ़-सुथरा पानी
है तथा नाले में गन्दा पानी है। हम सांसारिक प्राणी तो काम, क्रोध, मोह, अहंकार, की
माया में फंसे हुए हैं, बुरे कर्मो की गन्दगी से लथ-पथ हैं। प्रभु तो निर्मल जल का समुद्र
है। वह करुणा , दया, प्रेम का अथाह सागर है। जब कोई गन्दा नाला , दरिया में
जाकर मिलता है तो उसका पानी भी साफ़ हो जाता है और दरिया का हम रंग बन
जाता है। इसी तरह हमारी आत्मा और हमारे सतगुरु का मिलाप होता है। हम जब अपने सतगुरु की शरण में जाते हैं तो सतगुरु हमारे पापकर्मों को धो देता है और यतन करते -करते हमारा मन परमात्मा के नाम में लीनता लाभ करने लगता है। और हमारे
अन्दर से काम, क्रोध, मोह, अहंकार, की गंदगी समाप्त हो जाती है।
संत सूरदास जी की वाणी
प्रस्तुति राकेश खुराना
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