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Tag: मानव चोला

इस मानव चोले से सचखंड में पहुंचा दीजिये: चौबीसों घंटे आपके चरणों पर वारी जाऊँगी

अब मैं कौन कुमति उरझानी । देश पराया भई हूँ बिगानी ।
अब की बार मोहिं लेव सुधारी । मैं चरनन पर निस दिन वारी

भाव : इस शब्द में स्वामी जी महाराज आत्मा की प्रार्थना परमात्मा तक पहुंचा रहे हैं । आत्मा पुकार रही है कि इस समय मैं किस अज्ञान में उलझ गई हूँ ? इस वक्त मैं ऐसी अवस्था में हूँ कि अपनी उलझन सुलझा नहीं सकती । यह देश मेरा है ही नहीं , यह तो पराया देश है और मैं इसमें एक परदेसी हूँ , एक अनाथ की तरह हूँ । इस बार आप मुझे सुधार दीजिये । इस बार आपने मुझे जो योनि दी है अर्थात जो ये मानव चोला दिया है , इस जिंदगी में ही मुझे इस जेलखाने से अलग कर दीजिये , इससे मुझे हटाकर सचखंड तक पहुंचा दीजिये । मैं आपका उपकार नहीं भूलूंगी । चौबीसों घंटे आपके चरणों पर वारी जाऊँगी , न्यौछावर रहूंगी ।
स्वामी शिव दयाल सिंह जी महाराज
प्रस्तुती राकेश खुराना

प्रभु के संगीत के श्रवण मात्र से वापस अपने निजधाम सचखंड में पहुंचा जा सकता है

नकली मंदिर मसजिदों में जाए सद अफ़सोस है ।
कुदरती मसजिद का साकिन दुःख उठाने के लिए ।
कुदरती काबे की तू महराब में सुन ग़ौर से ।
आ रही धुर से सदा तेरे बुलाने के लिए ।

Rakesh Khurana

भाव : संत तुलसी साहिब फरमा रहे हैं कि जो बाहर के मंदिर और मस्जिद बने हुए हैं उसमें हम लोग जाते हैं , उनका स्वरूप भी इन्सान के रूप में बनाने का प्रयास किया जाता है।उनके गुम्बद सिर के सामान होते हैं । धर्म – स्थान पर दिया या मोमबत्ती जलेगी , घंटियाँ बजेंगी , या मुल्ला अजान देगा । परन्तु जो कुदरत ने मस्जिद बनाई है , वह यह मानव चोला है और इसका साकिन अर्थात इसमें रहने वाली हमारी आत्मा दुःख उठा रही है क्योंकि वह परमात्मा से अलग है ।
परमात्मा का बनाया हुआ जो यह शरीर है उसकी महराब शिव नेत्र है (दसवाँ द्वार अथवा दिव्य चक्षु ) उस पर हम अपना ध्यान टिकाएं और प्रभु के संगीत को सुनें । उस मधुर संगीत , उस धुन के साथ , वह जो धारा परमात्मा की ज्योति और श्रुति की है , जो स्वयं प्रभु से उत्पन्न हुई है , उसके जरिये हम वापस अपने निजधाम सचखंड में पहुँच सकते हैं ।
संत तुलसी साहिब हाथरस वाले
प्रस्तुति राकेश खुराना