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प्रभु के संगीत के श्रवण मात्र से वापस अपने निजधाम सचखंड में पहुंचा जा सकता है

नकली मंदिर मसजिदों में जाए सद अफ़सोस है ।
कुदरती मसजिद का साकिन दुःख उठाने के लिए ।
कुदरती काबे की तू महराब में सुन ग़ौर से ।
आ रही धुर से सदा तेरे बुलाने के लिए ।

Rakesh Khurana

भाव : संत तुलसी साहिब फरमा रहे हैं कि जो बाहर के मंदिर और मस्जिद बने हुए हैं उसमें हम लोग जाते हैं , उनका स्वरूप भी इन्सान के रूप में बनाने का प्रयास किया जाता है।उनके गुम्बद सिर के सामान होते हैं । धर्म – स्थान पर दिया या मोमबत्ती जलेगी , घंटियाँ बजेंगी , या मुल्ला अजान देगा । परन्तु जो कुदरत ने मस्जिद बनाई है , वह यह मानव चोला है और इसका साकिन अर्थात इसमें रहने वाली हमारी आत्मा दुःख उठा रही है क्योंकि वह परमात्मा से अलग है ।
परमात्मा का बनाया हुआ जो यह शरीर है उसकी महराब शिव नेत्र है (दसवाँ द्वार अथवा दिव्य चक्षु ) उस पर हम अपना ध्यान टिकाएं और प्रभु के संगीत को सुनें । उस मधुर संगीत , उस धुन के साथ , वह जो धारा परमात्मा की ज्योति और श्रुति की है , जो स्वयं प्रभु से उत्पन्न हुई है , उसके जरिये हम वापस अपने निजधाम सचखंड में पहुँच सकते हैं ।
संत तुलसी साहिब हाथरस वाले
प्रस्तुति राकेश खुराना

Comments

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