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नए संवत के पहले चैत्र के पहले नवरात्र की शुभकामनाओं के साथ विक्रमों को मुह बंद रखने की निशुल्क सलाह

[नई दिल्ली]नए संवत के पहले चैत्र के पहले नवरात्र की शुभकामनाओं के साथ विक्रमों को मुह बंद रखने की निशुल्क सलाह |
नववर्ष +नवरात्र हम सब के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाये ।
इस शुभ अवसर पर आदतन एक निशुल्क सलाह उछाल रहा हूँ जिसे अच्छी लगे स्वीकार कर लेना वरना आगे वाले की तरफ सरका देना
महाराजा विक्रमादित्य के जीवन से जुडी एक लोककथा याद आरही है | ईसा पूर्व पहली सदी से संबंधित इतिहास पर आधारित यह आज भी प्रासंगिक है| इसीलिए इस रोचक लोक कथा से सर्वत्र छितरे हुए विक्रमों को सबक लेने की जरूरत हैं |
यह लोक कथा में दो मुख्य पत्र हैं [१]उज्जैन के पराक्रमी+बुद्धिमान +उदार शील+महाराजा विक्रमादित्य [विक्रम] [२] बैताल
इस कथा का स्मरण होते ही महाराजा विक्रम और उनके कंधे पर चढ़े बैताल का चित्र नज़रों के सामने नाचने लगता है| इस कथा के अनेकों प्रसंग हैं लेकिन यह सभी प्रसंगों में समान है कि विक्रम ने ऋषि के आदेश पर जन कल्याण के लिए सूनसान श्मशान में चतुर बैताल को कंधे पर लादा |पीपल के पेड से उतर कर विक्रम की सवारी करने के पीछे भी बैताल ने एक रखी शर्त थी जिसके अनुसार विक्रम को समूचे मार्ग में बोलना नहीं था |चूंकि बैताल जनकल्याण के लिए पीपल छोड़ कर कहीं और जाना नहीं चाहता था इसीलिए मार्ग में समय व्यतीत करने के बहाने वोह समस्यायों पर आधारित किस्से कहानियाँ सुनाया करता था और विक्रम को छकाया करता था
अंत में ज्ञान वर्धक प्रश्न पूछ कर विक्रम को बोलने पर मजबूर कर देता था जब विक्रम बोलता था तो शर्त अनुसार बैताल तो ये जा और वोह जा|
इस लोक कथा को अगर वर्तमान राजनितिक परिपेक्ष्य में तौला जाये तो बेहद समानता दिखाई देती है |बस अंतर केवल इतना है कि आज एक नहीं अनेको विक्रम बने बैठे हैं और अपने अपने बेतालों को ढोते ही जा रहे हैं |
वास्तविक विक्रम मजबूरी में बोल कर बैताल को खो देता था मगर ये आधुनिक विक्रम अपनी जुबान को दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ाते जा रहे हैं जाहिर हैं बैताल तो इनसे सम्भल नहीं रहे उलटे समस्याएं विकराल होकर भूंचाल मचा रहे हैं |इन लोगों ने द्रौपदी के कौरवों पर किये गए व्यंग से हुए विनाश से भी सबक नही लिया
भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्भवत विक्रम और बैताल की कथाओं का मूल सन्देश को समझ लिया है इसीलिए श्री मोदी ने “नव वर्ष विक्रम संवत २०७२ की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए सुख, समृद्धि और शांति की कामना की है और अपनी गुजरात में चलने वाली जुबान पर नियंत्रण रखा हुआ है|इसके बावजूद श्री मोदी और उनके विरोधियों के ढेरों छोटे बढे विक्रम यत्र+तत्र+सर्वत्र मुह खोले शब्दों को उगलते फिर रहे हैं |साध्वी+साधू हों या फिर अपने को आजम का खान समझने वाले यूंपी के मंत्री हों या फिर नकल अभियान में बिहार के शिक्षा मंत्री का ताजोतरीन बयान हो सभी अपने अपने बैताल से पीछा नहीं छुड़ा पा रहे हैं |कांग्रेस के विक्रम आज कल कुछ शांत हैं मगर आम आदमी पार्टी के विक्रम को मुह खोलने में महारथ हासिल हैं |
हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने तो कांग्रेस को अंग्रेजों की ओलाद बता कर अपनी पार्टी का भी स्वास्थ्य खराब कर लिया है |
विक्रम की सर्वमान्यतानुसार आज के दिन नामांकरण का भी प्रचलन है लेकिन दुर्भाग्यवश आज के दिन अपनाये गए नाम के अर्थ का जीवनपर्यन्त पालन करने के बजाय इच्छानुसार नाम परिवर्तन होता रहता है |अब चूंकि महाराजा विक्रम की बात चली है तो यह भी बताना जरूर्री है कि विक्रमादित्य के दरबार में “नवरत्न कहे जाने वाले नौ विद्वान थे |[विक्रमार्कस्य आस्थाने नवरत्नानि]
कालिदास प्रसिद्ध संस्कृत राजकवि थे तो विक्रमादित्य की बेटे की मौत की भविष्यवाणी करने वाले वरामिहिर उस युग के प्रमुख ज्योतिषी थे,।वेतालभट्ट एक धर्माचार्य भी थे।
विक्रम बनने वाले आधुनिक विक्रम बेशक पराक्रमी+बुद्धिमान+उदार शील न हो मगर पौराणिक विक्रमादित्य के कदमो का पालन करने के लिए नवरत्न पालने में माहिर जरूर हैं |इनके भी अपने अपने मठाधीश हैं +धर्म गुरु हैं+ ज्योतिषाचार्य हैं और इनके पराक्रम का बखान करने वाले मीडिया ग्रुप भी हैं |इन सबके बारे में क्या खबरे आ रही हैं ये तो जग जाहिर ही हैं |