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मौत के क़रीब से गुज़रे बिना ही,ध्यानाभ्यास से अनंत प्रकाश,सुंदरता ख़ुशियों भरी दुनिया की सैर संभव है:संत राजिंदर सिंह जी

मौत के क़रीब से गुज़रे बिना ही,ध्यानाभ्यास से अनंत प्रकाश,सुंदरता ख़ुशियों भरी दुनिया की सैर संभव है:संत राजिंदर सिंह जी साइंस आफ स्प्रिचुअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के मौजूदा संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने आंतरिक प्रकाश के मंडलों की सैर के लिए ध्यानाभ्यास का मंत्र दिया|
महाराज जी ने अपने साप्ताहिक सन्देश में फरमाया है कि ध्यानाभ्यास के द्वारा हम मृत्यु-सम अनुभव के आघात के बिना ही आंतरिक प्रकाश के मंडलों में पहुँच सकते हैं।
आज विश्व भर में मृत्यु-सम अनुभवों या near death experiences के विषय को लेकर अत्यधिक रूचि है। आधुनिक विज्ञान की सहूलियतों के कारण आज डाक्टर कई ऐसे लोगों को पुनर्जीवित करने में सफल रहे हैं जिन्हें डाक्टरी रूप से मृत घोषित कर दिया गया था।
पिछली शताब्दियों में, जब डाक्टरी चिकित्सा ने इतनी तरक़्क़ी नहीं की थी कि दिल का दौरा पड़े किसी व्यक्ति को जीवनदान दे सके, तब हमारे पास इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं था कि अगर किसी व्यक्ति की दुर्घटना में, या किसी आघात से, या आपरेशन टेबल पर मौत हो जाए, तो उसके साथ क्या होता है। आज जबकि डाक्टर हृदय को फिर से शुरू कर सकते हैं, तो हम यह जान पाएँ हैं कि उस समय लोगों के साथ क्या होता है जब वो डाक्टरी रूप से मृत होते हैं।
जब डाक्टरी रूप से मृत घोषित लोगों को पुनर्जीवित किया गया, तो उनमें से कइयों ने बताया कि उस बीच में उनके साथ क्या हुआ। जब उन लोगों का शरीर मृत था, उस दौरान उनको जो अनुभव हुआ उसी को ‘मृत्यु-सम अनुभव’ कहा जाता है। विश्व भर में लाखों लोगों ने ऐसे मृत्यु-सम अनुभव होने की बात स्वीकार की है जिसमें उन्होंने इस संसार से आगे भी जीवन का अनुभव किया।
मृत्यु-सम अनुभव का अर्थ यह नहीं कि उस व्यक्ति की वास्तव में मृत्यु हो गई। जब शरीर डाॅक्टरी रूप से मृत हो गया, तब हमारे अस्तित्व के एक हिस्से ने इस दुनिया से आगे की दुनिया की सुंदरता को अनुभव किया।
संत राजिंदर सिंह जी ने फरमाया कि इस भौतिक संसार से आगे की दुनिया का अनुभव करने के लिए हमें मृत्यु-सम अनुभव का आघात सहने की ज़रूरत नहीं। हज़ारों सालों से पूर्व के देशों के लोग ध्यानाभ्यास के द्वारा यहाँ से आगे की दुनिया का अनुभव करते चले आए हैं। ध्यानाभ्यास की विधि द्वारा हम अपना ध्यान भौतिक संसार से हटाकर आंतरिक दिव्य मंडलों में टिका सकते हैं। हम ऐसा पूरी तरह से जीवित रहते हुए कर सकते हैं। इस अवस्था को और भी कई नामों से पुकारा जाता है, जैसे शरीर से ऊपर उठना, निर्वाण, आत्म-ज्ञान, प्रभु-ज्ञान आदि। इस अवस्था में हम ध्यानाभ्यास द्वारा पहुँच सकते हैं।
‘सावन कृपाल रूहानी मिशन’/‘साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ में हम ध्यान टिकाने की एक बेहद सरल विधि का अभ्यास करते हैं। इससे हम मृत्यु-सम अनुभव के आघात सहे बिना ही अलौकिक प्रकाश के मंडलों का अनुभव कर सकते हैं। अंतर में प्रभु की दिव्य ज्योति और श्रुति पर ध्यान टिकाने से हम मृत्यु के हादसे के बिना ही इस दुनिया के परे के मंडलों के असीम प्रकाश और सुंदरता का अनुभव कर पाते हैं। जो लोग स्वयं यह देखना चाहते हैं कि ध्यानाभ्यास की विधि कितनी सरल है, वे ध्यान टिकाने की एक प्रारंभिक विधि का अभ्यास कर सकते हैं, जिसे ‘ज्योति मेडीटेशन’ कहा जाता है, जिसका अभ्यास घर पर भी आराम से किया जा सकता है। हर दिन थोड़ी देर के लिए ध्यानाभ्यास करने से हम निश्चय ही शांति का अनुभव करेंगे।
जैसे-जैसे हम दिव्य ज्योति और श्रुति पर ध्यान टिकाने की गहन विधि या ‘शब्द मेडीटेशन’ का अभ्यास करने लगेंगे, तो हम भी एक दिन, मौत के क़रीब से गुज़रे बिना ही, उस अनुभव को पा लेंगे जो लाखों लोगों को मृत्यु के हादसे से गुज़रने के बाद प्राप्त होता है – कि इस दुनिया से परे भी अनंत प्रकाश, सुंदरता और ख़ुशियों भरी एक दुनिया है।