Ad

Tag: ScienceOfSprituality

रूहानी मिशन के संत दर्शन सिंह जी की २७ वी पूण्य बरसी पर भावभीनी श्रद्धांजलि

sant Darshan Singh Ji

sant Darshan Singh Ji

[मेरठ,यूपी]रूहानी सत्संग सावन आश्रम में दयाल पुरुष संत दर्शन सिंह जी की २७ वी पूण्य बरसी पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई|इस अवसर पर भंडारा और मीठे पानी के छबील[प्याऊ] भी लगाए गए |
श्रद्धालुजनों ने संत जी के साथ अपने अनुभवों को सांझा किया| और उनके प्रेरणादायक उपदेशों का वर्णन किया | सावन कृपाल रूहानी मिशन और साइंस ऑफ़ स्प्रिचुअलिटी के प्रभारी संत राजिंदर सिंह जी का वीडियो सत्संग भी चलाया गया |एस के आर एम के विश्व भर में २००० से अधिक ध्यान केंद्र हैं जिसका अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय अमेरिका में स्थापित है |

संत रजिंदरसिंह जी ने बंसत ऋतू में आत्मा व्यायाम भी जरूरी बताया

[नई दिल्ली]संत रजिंदर सिंह जी महाराज ने बंसत ऋतू में आत्मा व्यायाम का भी उपदेश दिया इसके लिए उन्होंने ध्यानाभ्यास को जरूरी बताया|
साइंस ऑफ़ स्प्रिचुअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के संत राजिन्दर सिंह जी महाराजने कहा हे के
वसंतऋतु का ख़ुशनुमा मौसम हमें घर से बाहर निकलने, व्यायाम करने, और अपने शारीरिक स्वास्थ्य की ओर ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है। जहाँ वसंतऋतु तरह-तरह के व्यायामों के लिए अच्छा समय है, जैसे कि मैराथाॅन की तैयारी करना, जाॅगिंग करना, और अन्य तरह के खेलकूद में हिस्सा लेना, वहीं यह समय आत्मा के व्यायाम के लिए भी बहुत अच्छा है। ध्यानाभ्यास वो सरल विधि है जिसके द्वारा हम अपनी आत्मा का व्यायाम और उसका विकास कर सकते हैं। ध्यानाभ्यास से हमारा आत्मिक स्वास्थ्य बेहतर होता है, जिसके परिणामस्वरूप हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर हो जाता है।
महाराज ने अपने ब्लॉग में बताया के जहाँ एक ओर हम अपने व्यायामों, जैसे कि एैरोबिक्स, कार्डियोवस्क्युलर एैक्सरसाइज़, वेट लिफ़्टिंग, इंटरवल ट्रेनिंग, वेट-बियरिंग एैक्सरसाइज़ आदि, की रूपरेखा तैयार करते हैं – यह तय करते हैं कि हमें रोज़ाना कितने मिनट कौन सा व्यायाम करना है – वहीं हम ध्यानाभ्यास के लिए भी रोज़ाना एक अवधि निश्चित कर सकते हैं, ताकि हमारे शरीर, मन, और आत्मा को लाभ मिल सके। इससे हम देखेंगे कि हम न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ हो गए हैं, बल्कि आत्मिक रूप से भी स्वस्थ हो गए हैं।
ध्यानाभ्यास के द्वारा आत्मिक स्वास्थ्य-लाभ पाने से हम जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का सामना शांत व स्थिर रूप से कर पाते हैं। इससे हमारा तनाव कम होता है, तथा हम तनाव से उत्पन्न रोगों का शिकार होने से बच जाते हैं। साथ ही, ध्यानाभ्यास के द्वारा हम आंतरिक मंडलों की सुंदरता, प्रकाश, ध्वनि, प्रेम, शांति, व ख़ुशी का अनुभव भी कर पाते हैं।
रोज़ाना आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने से, हम बाहरी वसंतऋतु की ताज़ा हवा का आनंद लेने के साथ-साथ अंतर में आध्यात्मिक वसंतऋतु की स्फूर्तिदायक हवा का आनंद भी ले पाते हैं।

Meditate for SomeTime Daily And Enjoy Brilliant Godly Lights Forever:Sant Rajinder Singh Ji

[New Delhi] Meditate for some time daily And enjoy Brilliant Godly Lights Forever :Sant Rajinder Singh Ji Maharaj
The Spiritual Guru Sant Rajinder Singh Ji Maharaj Inspires To Meditate And Light The Soul
Head Guru Of Science Of Spirituality And Sawan Kripal Ruhani Mission Sant Rajinder Singh Ji Maharaj ,While Showing the importance of festivals ,says that The festival of Diwali, or “The Festival of Lights,” is a holiday in which families light lamps, which illumine the night.On Diwali, it is traditional to light candles and lamps But It is a time to reflect upon the importance of lighting our inner lamps—the light of the soul.
That light within us is the Light and Sound of God. Once lit it burns forever.The Light of God is within.
By meditating daily, we can see for ourselves the Light of God burning within. As we meditate and go within, we see the same Light of God that shines in us glowing in all other people as well. That sense of unity breaks down the outer divisions that typically divide people. Such holidays which are celebrated as one family are an expression of our sense of oneness both internally and externally.
This holiday is a time to remember to not only enjoy the outer lights but to go within to enjoy the inner Lights. Brilliant lights await us within.We need only to sit in meditation for some time daily to enjoy them.

मौत के क़रीब से गुज़रे बिना ही,ध्यानाभ्यास से अनंत प्रकाश,सुंदरता ख़ुशियों भरी दुनिया की सैर संभव है:संत राजिंदर सिंह जी

मौत के क़रीब से गुज़रे बिना ही,ध्यानाभ्यास से अनंत प्रकाश,सुंदरता ख़ुशियों भरी दुनिया की सैर संभव है:संत राजिंदर सिंह जी साइंस आफ स्प्रिचुअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के मौजूदा संत राजिंदर सिंह जी महाराज ने आंतरिक प्रकाश के मंडलों की सैर के लिए ध्यानाभ्यास का मंत्र दिया|
महाराज जी ने अपने साप्ताहिक सन्देश में फरमाया है कि ध्यानाभ्यास के द्वारा हम मृत्यु-सम अनुभव के आघात के बिना ही आंतरिक प्रकाश के मंडलों में पहुँच सकते हैं।
आज विश्व भर में मृत्यु-सम अनुभवों या near death experiences के विषय को लेकर अत्यधिक रूचि है। आधुनिक विज्ञान की सहूलियतों के कारण आज डाक्टर कई ऐसे लोगों को पुनर्जीवित करने में सफल रहे हैं जिन्हें डाक्टरी रूप से मृत घोषित कर दिया गया था।
पिछली शताब्दियों में, जब डाक्टरी चिकित्सा ने इतनी तरक़्क़ी नहीं की थी कि दिल का दौरा पड़े किसी व्यक्ति को जीवनदान दे सके, तब हमारे पास इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं था कि अगर किसी व्यक्ति की दुर्घटना में, या किसी आघात से, या आपरेशन टेबल पर मौत हो जाए, तो उसके साथ क्या होता है। आज जबकि डाक्टर हृदय को फिर से शुरू कर सकते हैं, तो हम यह जान पाएँ हैं कि उस समय लोगों के साथ क्या होता है जब वो डाक्टरी रूप से मृत होते हैं।
जब डाक्टरी रूप से मृत घोषित लोगों को पुनर्जीवित किया गया, तो उनमें से कइयों ने बताया कि उस बीच में उनके साथ क्या हुआ। जब उन लोगों का शरीर मृत था, उस दौरान उनको जो अनुभव हुआ उसी को ‘मृत्यु-सम अनुभव’ कहा जाता है। विश्व भर में लाखों लोगों ने ऐसे मृत्यु-सम अनुभव होने की बात स्वीकार की है जिसमें उन्होंने इस संसार से आगे भी जीवन का अनुभव किया।
मृत्यु-सम अनुभव का अर्थ यह नहीं कि उस व्यक्ति की वास्तव में मृत्यु हो गई। जब शरीर डाॅक्टरी रूप से मृत हो गया, तब हमारे अस्तित्व के एक हिस्से ने इस दुनिया से आगे की दुनिया की सुंदरता को अनुभव किया।
संत राजिंदर सिंह जी ने फरमाया कि इस भौतिक संसार से आगे की दुनिया का अनुभव करने के लिए हमें मृत्यु-सम अनुभव का आघात सहने की ज़रूरत नहीं। हज़ारों सालों से पूर्व के देशों के लोग ध्यानाभ्यास के द्वारा यहाँ से आगे की दुनिया का अनुभव करते चले आए हैं। ध्यानाभ्यास की विधि द्वारा हम अपना ध्यान भौतिक संसार से हटाकर आंतरिक दिव्य मंडलों में टिका सकते हैं। हम ऐसा पूरी तरह से जीवित रहते हुए कर सकते हैं। इस अवस्था को और भी कई नामों से पुकारा जाता है, जैसे शरीर से ऊपर उठना, निर्वाण, आत्म-ज्ञान, प्रभु-ज्ञान आदि। इस अवस्था में हम ध्यानाभ्यास द्वारा पहुँच सकते हैं।
‘सावन कृपाल रूहानी मिशन’/‘साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ में हम ध्यान टिकाने की एक बेहद सरल विधि का अभ्यास करते हैं। इससे हम मृत्यु-सम अनुभव के आघात सहे बिना ही अलौकिक प्रकाश के मंडलों का अनुभव कर सकते हैं। अंतर में प्रभु की दिव्य ज्योति और श्रुति पर ध्यान टिकाने से हम मृत्यु के हादसे के बिना ही इस दुनिया के परे के मंडलों के असीम प्रकाश और सुंदरता का अनुभव कर पाते हैं। जो लोग स्वयं यह देखना चाहते हैं कि ध्यानाभ्यास की विधि कितनी सरल है, वे ध्यान टिकाने की एक प्रारंभिक विधि का अभ्यास कर सकते हैं, जिसे ‘ज्योति मेडीटेशन’ कहा जाता है, जिसका अभ्यास घर पर भी आराम से किया जा सकता है। हर दिन थोड़ी देर के लिए ध्यानाभ्यास करने से हम निश्चय ही शांति का अनुभव करेंगे।
जैसे-जैसे हम दिव्य ज्योति और श्रुति पर ध्यान टिकाने की गहन विधि या ‘शब्द मेडीटेशन’ का अभ्यास करने लगेंगे, तो हम भी एक दिन, मौत के क़रीब से गुज़रे बिना ही, उस अनुभव को पा लेंगे जो लाखों लोगों को मृत्यु के हादसे से गुज़रने के बाद प्राप्त होता है – कि इस दुनिया से परे भी अनंत प्रकाश, सुंदरता और ख़ुशियों भरी एक दुनिया है।

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने रूहानी ख़ज़ाना पाने के लिए निरंतर ध्यानाभ्यास का मंत्र दिया

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अपने साप्ताहिक संदेश ने किसी भी सफलता के लिए ध्यानाभ्यास का मंत्र दिया
साइंस आफ स्प्रिचुअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के मौजूदा संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने फ़रमाया है कि सफलता के लिए किसी जन्मजात गुण की नहीं वरन निरंतर अभ्यास की जरुरत होती है |
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अनेकों उदाहरण देते हुए समझाया कि जब हम बास्केटबाल या हाकी के प्रख्यात खिलाडि़यों को सफलतापूर्वक चैम्पियनशिप्स जीतते हुए देखते हैं, तो हम उनके हुनर पर आश्चर्य करते हैं, उनकी प्रतिभा से अभिभूत हो जाते हैं। हम देखते हैं कि प्रसिद्ध गोल्फ़ खिलाड़ी एक के बाद एक टूर्नामेंट जीतते चले जाते हैं, और हम सोचते हैं कि उनका यह विशेष गुण जन्मजात है। हम देखते हैं कि कलाकार एक के बाद एक उच्चकोटि की कलाकृतियाँ देते चले जाते हैं, और हम सोचते हैं कि काश हम भी इस हुनर के साथ ही पैदा हुए होते।
हम सफल व्यवसायियों को विश्व के सबसे अधिक धनवान लोगों की सूची में आगे बढ़ते हुए देखते हैं, और उनकी व्यावसायिक प्रतिभा पर चमत्कृत होते हैं। हम अक्सर यह सोचते ही नहीं कि जिस किसी ने भी जीवन में सफलता हासिल की है, उसने उस मुकाम तक पहुँचने के लिए बहुत अधिक मेहनत की है, बहुत ज़्यादा प्रयास किया है।
सफलता कोई जन्मजात गुण नहीं है; सफलता का रहस्य है निरंतर प्रयास करते रहना और हार न मानना। कम ही लोग देखते हैं कि जो बास्केटबाल या हाकी का खिलाड़ी सारी चैम्पियनशिप्स जीत रहा है, वो इसके लिए दिन-रात मेहनत कर रहा है, जबकि दूसरों को तो समय से प्रैक्टिस पर बुलाने के लिए भी कोच को चिल्लाना पड़ता है। कम ही लोग देखते हैं कि चैम्पियनशिप्स जीतने वाला गोल्फ़ खिलाड़ी कई हज़ार गेंदों पर अभ्यास करता है, हर दिन करता है, साल दर साल करता है, और तब जाकर वो उस मुकाम पर पहुँचा है जहाँ वो है। कम ही लोग देखते हैं कि एक सफल कलाकार अपनी कलाकृतियों को बेहतरीन बनाने के लिए कितने घंटों लगा रहता है। कम ही लोग देखते हैं कि सफल होने से पूर्व एक धनवान व्यवसायी को अनेक व्यावसायिक असफलताओं और नुकसानों से जूझना पड़ा था। किसी ने भी अगर कुछ भी पाया है, तो वो निरंतर प्रयास करते रहने और हार न मानने से ही पाया है।
महारज जी ने फरमाया कि यदि हम आध्यात्मिक क्षेत्र में अपने लक्ष्य तक पहुँचना चाहते हैं, तो हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। दिव्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें अभी एक लंबा रास्ता तय करना है। हालाँकि रूहानी ख़ज़ाने हमारे भीतर ही हैं, हमारे शरीर की नसों से भी ज़्यादा हमारे क़रीब हैं, परंतु हमें उन्हें ढूंढने की कला में माहिर होना है। दिव्य ज्ञान हमारे बेहद क़रीब भी है, लेकिन बेहद दूर भी है,क्योंकि हम अपने मन को इतनी देर के लिए शांत नहीं कर पाते कि वो हमें विचार भेजना बंद कर दे और हम अंदरूनी दुनिया में ध्यान टिका पाएँ। हम बाहरी संसार के अनगिनत आकर्षणों और मायाजाल में ही फँसे रहते हैं, जोकि हमारे ध्यान को अंतर में एकाग्र होने ही नहीं देते। ध्यानाभ्यास एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा हम अंतर में एकाग्र हो पाते हैं और अंदरूनी ख़ज़ानों को पा सकते हैं।
ध्यानाभ्यास के द्वारा हमारी एकाग्र होने की क्षमता में वृद्धि होती है। हम धैर्य और निरंतर प्रयास जैसे गुण सीखते हैं। ये दो गुण हमारी आध्यात्मिक तरक़्क़ी में मददगार साबित होते हैं, तथा ये बाहरी दुनिया में सफलता प्राप्त करने में भी हमारी सहायता करते हैं। कुछ भी पाने के लिए लगातार अभ्यास करते रहना पड़ता है। अगर हम हार मान लेंगे, तो हम कभी भी अपनी मंजि़ल तक पहुँच नहीं पाएँगे। हमें जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
‘सावन कृपाल रूहानी मिशन’/‘साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ में हम ‘शब्द ध्यानाभ्यास’ या आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने का अभ्यास करते हैं। हम एक प्रारंभिक विधि भी सिखाते हैं, जिसे ‘ज्योति ध्यानाभ्यास’ कहा जाता है और जिसका अभ्यास आप अपने घर के आरामदायक वातावरण में भी कर सकते हैं। आप इस सरल ज्योति मेडिटेशन का अभ्यास करके देख सकते हैं, जिससे आपकी एकाग्र होने की क्षमता में भी बढ़ोतरी होगी। जैसे-जैसे आप ध्यानाभ्यास करते रहेंगे, वैसे-वैसे आप अंतर में असीम शांति व ख़ुशी का अनुभव करेंगे। ऐसा करने से आपकी एकाग्र होने की क्षमता भी दिन-ब-दिन बढ़ती चली जाएगी। रोज़ाना ध्यानाभ्यास करने पर आप देखेंगे कि आपकी धैर्य-शक्ति में और निरंतर प्रयास करते रहने की क्षमता में वृद्धि होती चली जाएगी, तथा यही चीज़ सांसारिक कार्यों में भी आपकी आदत बन जाएगी। इस तरह आप देखेंगे कि चाहे आपका लक्ष्य आध्यात्मिक हो या सांसारिक, आप तब तक प्रयास करते रहेंगे जब तक अपने लक्ष्य को पा नहीं लेते। हर दिन हम अपने लक्ष्य के थोड़ा और क़रीब पहुँचते चले जाते हैं। हमें असफलता से घबराकर हार नहीं मान लेनी चाहिए। अगर हमें एक दिन ध्यानाभ्यास में मनचाहा परिणाम नहीं मिलता, तो हमें हार मानकर ध्यानाभ्यास करना बंद नहीं कर देना चाहिए। हमें अगला मौक़ा मिलते ही फिर अभ्यास पर बैठ जाना चाहिए। अगर हमें कामयाबी न मिले, तो हमें फिर से बैठना चाहिए। दिन-ब-दिन हम देखेंगे कि हमारी तरक़्क़ी होनी शुरू हो जाएगी, और आखि़रकार हम सफलता अवश्य प्राप्त कर लेंगे। ध्यानाभ्यास में बेहतर होते जाने का अर्थ है अपने शरीर और मत को शांत करने की क्षमता में बढ़ोतरी होते जाना, तथा कोई भी विचार आए बिना अंतर में दृष्टि टिकाए रखना। हमें बार-बार कोशिश करते रहना चाहिए। हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। तब हम देखेंगे कि एक दिन हम अपने लक्ष्य तक अवश्य ही पहुँच जाएँगे।
सोर्स SOS