Ad

Tag: SOS

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने रूहानी ख़ज़ाना पाने के लिए निरंतर ध्यानाभ्यास का मंत्र दिया

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अपने साप्ताहिक संदेश ने किसी भी सफलता के लिए ध्यानाभ्यास का मंत्र दिया
साइंस आफ स्प्रिचुअलिटी और सावन कृपाल रूहानी मिशन के मौजूदा संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने फ़रमाया है कि सफलता के लिए किसी जन्मजात गुण की नहीं वरन निरंतर अभ्यास की जरुरत होती है |
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अनेकों उदाहरण देते हुए समझाया कि जब हम बास्केटबाल या हाकी के प्रख्यात खिलाडि़यों को सफलतापूर्वक चैम्पियनशिप्स जीतते हुए देखते हैं, तो हम उनके हुनर पर आश्चर्य करते हैं, उनकी प्रतिभा से अभिभूत हो जाते हैं। हम देखते हैं कि प्रसिद्ध गोल्फ़ खिलाड़ी एक के बाद एक टूर्नामेंट जीतते चले जाते हैं, और हम सोचते हैं कि उनका यह विशेष गुण जन्मजात है। हम देखते हैं कि कलाकार एक के बाद एक उच्चकोटि की कलाकृतियाँ देते चले जाते हैं, और हम सोचते हैं कि काश हम भी इस हुनर के साथ ही पैदा हुए होते।
हम सफल व्यवसायियों को विश्व के सबसे अधिक धनवान लोगों की सूची में आगे बढ़ते हुए देखते हैं, और उनकी व्यावसायिक प्रतिभा पर चमत्कृत होते हैं। हम अक्सर यह सोचते ही नहीं कि जिस किसी ने भी जीवन में सफलता हासिल की है, उसने उस मुकाम तक पहुँचने के लिए बहुत अधिक मेहनत की है, बहुत ज़्यादा प्रयास किया है।
सफलता कोई जन्मजात गुण नहीं है; सफलता का रहस्य है निरंतर प्रयास करते रहना और हार न मानना। कम ही लोग देखते हैं कि जो बास्केटबाल या हाकी का खिलाड़ी सारी चैम्पियनशिप्स जीत रहा है, वो इसके लिए दिन-रात मेहनत कर रहा है, जबकि दूसरों को तो समय से प्रैक्टिस पर बुलाने के लिए भी कोच को चिल्लाना पड़ता है। कम ही लोग देखते हैं कि चैम्पियनशिप्स जीतने वाला गोल्फ़ खिलाड़ी कई हज़ार गेंदों पर अभ्यास करता है, हर दिन करता है, साल दर साल करता है, और तब जाकर वो उस मुकाम पर पहुँचा है जहाँ वो है। कम ही लोग देखते हैं कि एक सफल कलाकार अपनी कलाकृतियों को बेहतरीन बनाने के लिए कितने घंटों लगा रहता है। कम ही लोग देखते हैं कि सफल होने से पूर्व एक धनवान व्यवसायी को अनेक व्यावसायिक असफलताओं और नुकसानों से जूझना पड़ा था। किसी ने भी अगर कुछ भी पाया है, तो वो निरंतर प्रयास करते रहने और हार न मानने से ही पाया है।
महारज जी ने फरमाया कि यदि हम आध्यात्मिक क्षेत्र में अपने लक्ष्य तक पहुँचना चाहते हैं, तो हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। दिव्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें अभी एक लंबा रास्ता तय करना है। हालाँकि रूहानी ख़ज़ाने हमारे भीतर ही हैं, हमारे शरीर की नसों से भी ज़्यादा हमारे क़रीब हैं, परंतु हमें उन्हें ढूंढने की कला में माहिर होना है। दिव्य ज्ञान हमारे बेहद क़रीब भी है, लेकिन बेहद दूर भी है,क्योंकि हम अपने मन को इतनी देर के लिए शांत नहीं कर पाते कि वो हमें विचार भेजना बंद कर दे और हम अंदरूनी दुनिया में ध्यान टिका पाएँ। हम बाहरी संसार के अनगिनत आकर्षणों और मायाजाल में ही फँसे रहते हैं, जोकि हमारे ध्यान को अंतर में एकाग्र होने ही नहीं देते। ध्यानाभ्यास एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा हम अंतर में एकाग्र हो पाते हैं और अंदरूनी ख़ज़ानों को पा सकते हैं।
ध्यानाभ्यास के द्वारा हमारी एकाग्र होने की क्षमता में वृद्धि होती है। हम धैर्य और निरंतर प्रयास जैसे गुण सीखते हैं। ये दो गुण हमारी आध्यात्मिक तरक़्क़ी में मददगार साबित होते हैं, तथा ये बाहरी दुनिया में सफलता प्राप्त करने में भी हमारी सहायता करते हैं। कुछ भी पाने के लिए लगातार अभ्यास करते रहना पड़ता है। अगर हम हार मान लेंगे, तो हम कभी भी अपनी मंजि़ल तक पहुँच नहीं पाएँगे। हमें जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
‘सावन कृपाल रूहानी मिशन’/‘साइंस आफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ में हम ‘शब्द ध्यानाभ्यास’ या आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने का अभ्यास करते हैं। हम एक प्रारंभिक विधि भी सिखाते हैं, जिसे ‘ज्योति ध्यानाभ्यास’ कहा जाता है और जिसका अभ्यास आप अपने घर के आरामदायक वातावरण में भी कर सकते हैं। आप इस सरल ज्योति मेडिटेशन का अभ्यास करके देख सकते हैं, जिससे आपकी एकाग्र होने की क्षमता में भी बढ़ोतरी होगी। जैसे-जैसे आप ध्यानाभ्यास करते रहेंगे, वैसे-वैसे आप अंतर में असीम शांति व ख़ुशी का अनुभव करेंगे। ऐसा करने से आपकी एकाग्र होने की क्षमता भी दिन-ब-दिन बढ़ती चली जाएगी। रोज़ाना ध्यानाभ्यास करने पर आप देखेंगे कि आपकी धैर्य-शक्ति में और निरंतर प्रयास करते रहने की क्षमता में वृद्धि होती चली जाएगी, तथा यही चीज़ सांसारिक कार्यों में भी आपकी आदत बन जाएगी। इस तरह आप देखेंगे कि चाहे आपका लक्ष्य आध्यात्मिक हो या सांसारिक, आप तब तक प्रयास करते रहेंगे जब तक अपने लक्ष्य को पा नहीं लेते। हर दिन हम अपने लक्ष्य के थोड़ा और क़रीब पहुँचते चले जाते हैं। हमें असफलता से घबराकर हार नहीं मान लेनी चाहिए। अगर हमें एक दिन ध्यानाभ्यास में मनचाहा परिणाम नहीं मिलता, तो हमें हार मानकर ध्यानाभ्यास करना बंद नहीं कर देना चाहिए। हमें अगला मौक़ा मिलते ही फिर अभ्यास पर बैठ जाना चाहिए। अगर हमें कामयाबी न मिले, तो हमें फिर से बैठना चाहिए। दिन-ब-दिन हम देखेंगे कि हमारी तरक़्क़ी होनी शुरू हो जाएगी, और आखि़रकार हम सफलता अवश्य प्राप्त कर लेंगे। ध्यानाभ्यास में बेहतर होते जाने का अर्थ है अपने शरीर और मत को शांत करने की क्षमता में बढ़ोतरी होते जाना, तथा कोई भी विचार आए बिना अंतर में दृष्टि टिकाए रखना। हमें बार-बार कोशिश करते रहना चाहिए। हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। तब हम देखेंगे कि एक दिन हम अपने लक्ष्य तक अवश्य ही पहुँच जाएँगे।
सोर्स SOS

शांत मन से ध्यानाभ्यास पर बैठ कर सभी संबंध भी शांतिपूर्ण हो जाते हैं:संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

साइंस आॅफ़ स्पिरिच्युएलिटी SOSऔर सावन कृपाल रूहानी मिशनSKRM के वर्तमान संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अध्यात्म और विज्ञान के संबंधों के प्रति जिज्ञासा से सम्बंधित प्रश्नो का उत्तर दिया|
[१]प्रश्न:
आप ध्यानाभ्यास की विधि सिखाते हैं और आपकी संस्था का नाम ‘साइंस आॅफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ है? अध्यात्म और विज्ञान के बीच भला क्या संबंध है?
संत राजिन्दर सिंह जी:
हम आज एक अति वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं। आज का समय ऐसा नहीं है जबकि लोग अंधविश्वास में पड़कर बस चीज़ों को मान लें। आज के समय में हम उसी चीज़ में विश्वास करते हैं जिसे हम स्वयं अनुभव कर सकते हों। हमारी संस्था का नाम ‘साइंस आॅफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ है क्योंकि हम मानते हैं कि अध्यात्म भी एक तरह का विज्ञान ही है। इसमें भी हम स्वयं अनुभव किए बिना किसी चीज़ को यूँ ही नहीं मान लेते।
[२]प्रश्न:
विज्ञान का तरीका तो है प्रयोग करना, क्या अध्यात्म का तरीका भी प्रयोग करना ही है?
संत राजिन्दर सिंह जी:
अध्यात्म का तरीका, या जिस तरीके द्वारा हम अपने सच्चे स्वरूप को जान सकते हैं, वो एक प्रयोग ही है। इस प्रयोग में हम शारीरिक चेतनता से ऊपर उठते हैं। इस प्रयोग को बार-बार दोहराया जा सकता है, और सही व नियमित ढंग से करने पर इस प्रयोग के नतीजे भी हमेशा ज्ञात और प्रमाणित होते हैं। विज्ञान में भी यही होता है। हम एक प्रयोग करते हैं, और हमें अपेक्षित नतीजे हासिल होते हैं। अध्यात्म को भी प्रयोग के द्वारा प्रमाणित किया जाता है।
[३]प्रश्न:
यह प्रमाणित किया जा सकता है?
संत राजिन्दर सिंह जी:
यह बिल्कुल प्रमाणित किया जा सकता है। हम मानव शरीर को एक प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल करते हैं। जब हम भौतिकशास्त्र या रसायनशास्त्र पढ़ते हैं, तो हम एक प्रयोगशाला में जाते हैं और प्रयोग करते हैं। हो सकता है कि हम एक ट्यूब में कोई ऐसिड डालें और रंगीन धुँआ बाहर निकले। हमारे शिक्षक हमें पहले ही बता देते हैं कि सही ढंग से प्रयोग करने पर किस तरह का और कौन से रंग का धुँआ निकलेगा। इसी तरह, जब हम ध्यानाभ्यास करते हैं, तो हम अपने अंतर में जा पाते हैं। हम अपने भीतर दिव्य प्रकाश देख पाते हैं और दिव्य श्रुति को सुन पाते हैं। तो यह मानव शरीर भी एक प्रयोगशाला है जिसमें हम अपने सच्चे स्वरूप को, अपनी आत्मा को जानने के लिए प्रयोग करते हैं।
जब हम संतुष्ट होते हैं, तो हम जीवन में जो कुछ वास्तव में महत्त्वपूर्ण है, उस पर ध्यान दे पाते हैं। हम एक शांत मन के साथ ध्यानाभ्यास पर बैठ पाते हैं। अपने परिवारजनों और मित्रों के साथ हमारे संबंध शांतिपूर्ण हो जाते हैं। हम लगातार अपनी इच्छाओं को पूरा करने की भागदौड़ में नहीं लगे रहते। ऐसा करने से हम जीवन के कई तनावों से बच सकते हैं।