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Category: Poetry

सच्चाई के साथ जुड़ने से हमारे घमंड का सत्यानाश होता जाता है |

किस का दर है किह जबीं आप झुकी जाती है |
दिले खुद्दार ! तेरी आन मिटी जाती है ||
संत दर्शन सिंह जी महाराज हमें समझाते हुए कहते हैं कि वह कौन सी जगह है
कि जबीं (गर्दन , सिर) अपने आप झुकी चली जाती है और हम इन्सान , जो बहुत
घमंडी होते हैं , अहंकार से भरे होते हैं , हमारी वह आन खुद -ब -खुद मिटती चली
जाती है | जैसे – जैसे हम सच्चाई के साथ जुड़ते हैं , नाम के साथ जुड़ते हैं , शब्द
के साथ जुड़ते हैं , वैसे – वैसे हमारी खुदी का सत्यानाश होता जाता है |
संत दर्शन सिंह जी महाराज
प्रस्तुती राकेश खुराना

सच्चाई के साथ जुड़ने से हमारे घमंड का सत्यानाश होता जाता है |

ध्यान से तनाव को ख़त्म करो :संत राजेंद्र सिंह

ध्यान : तनाव को ख़त्म करने की औषधि सावन कृपाल रूहानी मिशन के वर्तमान संत राजेंद्र सिंह जी ने तनाव से भरी आज की जिन्दगी के लिए ध्यान जरुरी बताया है|

ध्यान : तनाव को ख़त्म करने की औषधि :संत राजेंद्र सिंह


संत राजेंद्र सिंह जी का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से भावनाओं के तूफ़ान और तनाव को ख़त्म करने हेतु लोगों का रुझान
ध्यान की विद्या की ओर हुआ है| ध्यान से शारीरिक और दिमागी तौर पर बहुत से फायदे
हैं| यह सुरक्षात्मक, असरदार और निशुल्क है | जब हम एक बार ध्यान की विद्या सीख
लेते हैं, तब हमारे पास अंतर में हर समस्या का समाधान तैयार होता है |
ध्यान की विधि क्या है ?

ध्यान के लिए हम किसी ऐसे आसन का चयन करते हैं जिसमे हम कुछ समय के लिए
शांत और निश्चित मुद्रा में बैठ सकें| ध्यान के द्वारा हम अपनी एकाग्रता को दो आँखों
के पीछे मध्य बिंदु पर टिकाते हैं जिसे हम शिवनेत्र या दसवां द्वार कहते हैं| इस प्रकार
हम अपने ध्यान को बाहरी जिस्म से हटाते हैं|

ध्यान की अवस्था केवल मानसिक और
शारीरिक स्तर पर ही होती है| पर जब हम ध्यान के द्वारा अंतर में प्रभु की ज्योति के
दर्शन करते हैं और उसके शब्द को सुनते हैं, तब इस ज्योति और शब्द की धारा से हम
अंतर का प्रभुरूपी प्यार, चेतना और परम सुख पाते हैं|
संत राजिंदर सिंह जी महाराज
प्रस्तुती राकेश खुराना

राम नाम के हीरे मोती, संत बिखेरें गली गली,

राम नाम के हीरे मोती, संत बिखेरें गली गली,
ले लो रे कोई राम का प्यारा, ध्वनि लगायें कृष्ण हरी. 
 संत महापुरुषों का इस धरा धाम पर अवतरण का उद्देश्य होता है.   परमात्मा जब देखता है
कि जगत में पापों से तपे हुए जीव दुखी हैं तो वह दीनदयाल , करुणासागर, भक्तवत्सल, 
उन जीवों के कल्याण के लिए संत महापुरुषों को, अपनी अलौकिक शक्तियां देकर , इस धरा धाम पर भेजता है.   तथा संत महापुरुष गली-गली, शहर-शहर जा-जा कर परमेश्वर के नाम कि ध्वनि को गुंजाते हैं.  उनकी यह गूँज या तरंग  किसी बिछड़ी हुई आत्मा को स्पर्श करती है तथा  जिज्ञासुओं में आस्तिक भाव सजग हो जाते हैं.   उनके मन में राम नाम जपने का शौक पैदा हो जाता है तथा परमात्मा के नाम में लगन लग जाती है  और उनके तपे हुए मन शांत हो जाते हैं.   यही संत का उद्देश्य होता है.  
श्री रामशरणम्  आश्रम, गुरुकुल डोरली , मेरठ  के परमाध्यक्ष पूज्यश्री भगत नीरज मणि ऋषि जी  के प्रवचन का एक अंश.
श्री रामशरणम्  आश्रम, गुरुकुल डोरली , मेरठ  

चौथा राम सबसे न्यारा है वही सृष्टि का कर्ता-धर्ता है

Sant Kabir Das

एक राम दशरथ का बेटा , एक राम घट-घट में बैठा
एक राम का सकल पसारा , एक राम सबहूँ ते न्यारा
अर्थात: कबीर साहब के कथनानुसार राम चार प्रकार के हैं , उन्होंने फ़रमाया है :-
[ एक राम]
तो राजा दशरथ के पुत्र थे जिन्होंने यहाँ राज किया . वो एक आदर्श पुत्र , आदर्श पति ,
आदर्श भाई तथा आदर्श राजा थे . जब भी हम अपने मुल्क की बेहतरी की दुआ करते हैं तो यही
कहते हैं कि यहाँ राम राज्य हो जाए.
[दूसरा वो राम है,]
जो हमारे घट – घट में बैठा है और वो है हमारा मन . उसका`काम है कि वो हमें
परमार्थ के रास्ते में तरक्की न करने दे , यद्यपि हमारा मन भी ब्रह्म का अंश है , ब्रह्म का स्रोत है
परन्तु वह अपने स्रोत को भूल चूका है और संत हमें समझाते हैं कि ” मन बैरी को मीत कर ”
[ तीसरा वो राम है]
जिसका ये सारा पसारा है इसमें माया भी है , काम – क्रोध – लोभ – मोह – अहंकार
भी है बाकि भी हर तरह की कशिश है , हमें इनसे बचने का प्रयास करना है .
[चौथा राम]
सबसे न्यारा है , सबसे ऊंचा है ,सबसे बड़ी ताकत है , वही इस सृष्टि का कर्ता-धर्ता है ,
हमारे जीवन का लक्ष्य तभी पूरा होता है जब हम , जितनी भी अवस्थाएँ हैं , उन सबसे गुजरकर प्रभु
को पा लें. संत जब भी बात करते हैं , वो उसी राम का जिक्र करते हैं
संत कबीर वाणी
प्रस्तुती राकेश खुराना .

गुरु धीरे -धीरे हमें शरीर और शारीरिक व्यापार से ऊपर ले जाता है .


मेरी नज़र का हुस्न भी शरीके हुस्न हो गया
वो और भी निखर गए वो और भी संवर गए

अर्थात गुरु खूबसूरती का स्रोत तो होता ही है मगर ज्यों – ज्यों हम उसकी रहमत से तरक्की
करते चले जाते हैं उसका हुस्न और निखरता चला जाता है , और रोशन होता चला जाता है
और हमें वो ज्यादा खूबसूरत दिखाई देता है . अगर खुशकिस्मती से हमें ऐसा गुरु मिल जाये
तो फिर हमें अपना सब कुछ उस पर न्यौछावर कर देना चाहिए . अगर हम अपना सब कुछ
न्यौछावर कर देंगे तो फिर गुरु धीरे -धीरे हमें शारीर और शारीरिक व्यापार से ऊपर ले
आयेगा . हमारे अन्दर जो असली सूर्य और चन्द्रमा हैं , उनके मण्डलों से गुजारकर गुरु हमें
अपने दिव्य स्वरूप के दर्शन कराएगा और वो दिव्य स्वरूप ज्यादा से ज्यादा रोशन और
सुंदर होता चला जायेगा .
सावन कृपाल रूहानी मिशन आश्रम के संत दर्शन सिंह[१९२१-१९८९] जी महाराज जी की रूहानी शायरी
प्रस्तुती राकेश खुराना

सच्चे गुरु – भक्त के समक्ष कामवासनाएँ ठहरती नहीं हैं .

लगा रहे सतज्ञान सों , सबही बंधन तोड़
कहैं कबीर वा दास सौं, काल रहै हथजोड़
भाव : कबीर दास जी शिष्य की महिमा बताते हुए कहते हैं , जिसने विषयों से अपने मन को हटा लिया है,
जो सांसारिक बन्धनों से रहित है और सत्य – स्वरूप में जिसकी दृढ निष्ठा है , ऐसे गुरु – भक्त के
सामने तो काल भी सिर झुकाए हुए रहता है अर्थात – मन की लम्बी दौड़ और काम वासना ही
मनुष्य का काल है . एक सच्चे गुरु – भक्त के सामने कामवासनाएँ या कल्पनाएँ ठहरती ही नहीं हैं .
कबीर संत थे या दास यह हमेशा चर्चा का विषय रहा है|वास्तव में कबीर संत और दास दोनों ही थे|उन्होंने एक जुलाहे परिवार में परवरिश पाई थी मगर विचारों से क्रांतिकारी थे उन्होंने एक धर्म या कुरीतिओं में बंधे रहना कभी स्वीकार नहीं किया| संत कबीर की भाषा को पञ्च मेल खिचडी भी कहा जाता है|हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मो के अनुयायियों ने उन्हें अपनाया है यहाँ तक की वर्तमान में सिख धर्म में भी कबीर की अमृत अमर वाणी का आदर किया गया है|
संत कबीर वाणी
प्रस्तुती राकेश खुराना

सद्विचारों की रस्सी से मोह माया के सागर से बाहर निकला जा सकता है

तन रहीम है कर्म बस , मन रखो ओहि ओर
जल में उलटी नाव ज्यों , खैंचत गुन के जोर
अब्दुर्रहीम खानखाना
अर्थ : कवि रहीम कहते हैं कि शरीर तो कर्म फल के आधीन है परन्तु मन को प्रभु भक्ति
की ओर लीन करके रखना चाहिए . जैसे – जल में नाव के उलट जाने पर उसे रस्सी से
खींचकर ही बचाया जाता है .
भाव : हमारा यह शारीर हमारे कर्म फल को ही हमेशा प्राप्त करता है . हम जैसा करते हैं ,
ईश्वर हमें वैसा ही फल देता है . ऐसे प्रभु के प्रति सदैव भक्ति – भाव बनाए रखना चाहिए .
जिस प्रकार जल में नाव के उलट जाने पर उसे रस्सी से बांधकर जल से बाहर निकालते हैं .
उसी प्रकार यदि संसार रुपी भवसागर की मोह – माया में हमारा मन लिप्त हो जाए तो हमें
दृढ़ता से अपने मन के चंचल स्वभाव पर अंकुश लगाना चाहिए और उसे सद्विचारों की रस्सी
से बांधकर इस मोह – माया से बाहर खींचकर लाना चाहिए , तभी हम अपने जीवन को सफल
बना सकते हैं अर्थात चंचल मन पर अंकुश रखना परम आवश्यक है
संत रहीम वाणी
(अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना[ १७-१२-१५५६-१६२७],मुग़ल बादशाह अकबर के नव रत्नों में से एक थे| जहाँ इन्हें इनके दोहों के लिए हिंदी साहित्य में इतिहास में श्रेष्ठ स्थान दिया गया है वहीं आस्ट्रालोजी पर उनकी किताब भी मील का पत्थर है|इन्ही के नाम पर पंजाब के नवांशहर में खानखाना गावं है|इनकी ननिहाल में कृष्ण भक्ति की जड़े बताई जाती है|
प्रस्तुती राकेश खुराना

बुल्ल्हा शौह नूं सोई पावे , जेह्ड़ा बकरा बणे कसाई दा

तेरा नाम तिहाई दा, साईं तेरा नाम तिहाई दा
बुल्ल्हे नालों चुल्ल्हा चंगा , जिस पर ताम पकाई दा
रल्ल फकीरां मजलस कीती , भोर भोर खाई दा
रंगड़े वालों खिंगर चंगा , जिस पर पैर घिसाई दा
बुल्ल्हा शौह नूं सोई पावे , जेह्ड़ा बकरा बणे कसाई दा
साईं बुल्लेशाह
सतगुरु परमात्मा का को प्राप्त करने का मार्ग अत्यंत कठिन है . इस मार्ग पर चलने से पहले अपने अहंकार और
स्वार्थ का त्याग करना पड़ता है. बुल्लेशाह इसी को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि हे सतगुरु परमात्मा ! हम बस तेरे
नाम का ही सुमिरन करते हैं .
बुल्ले से तो यह चूल्हा अच्छा है , क्योंकि इस पर कम – से – कम रोटी तो पकती है जिसे फकीर एकत्र होकर अत्यंत
संतोष से बांटकर खा लेते हैं .
अहंकारी से तो वह पत्थर अच्छा है जिस पर पैर घिसकर मैल साफ़ कर लिया जाता है परन्तु अहंकार तो रोज नई
गंदगी इस मन में एकत्र करता है .
सतगुरु परमात्मा को वही प्राप्त कर सकता है जो कसाई का बकरा बनने के लिए तैयार हो अर्थात सतगुरु परमात्मा
को प्राप्त करने के लिए ‘मैं ‘ को मिटाना पड़ता है क्योंकि परमात्मा का मिलन ही जीवन के चरम लक्ष्य की प्राप्ति है .

फल इच्छा बिना कर्म करने से ईश्वर प्राप्ति सरल होती है


न में पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि
श्रीमदभगवदगीता
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं -हे पार्थ ! मुझे तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है
और न कोई प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्य है , फिर भी मैं कर्तव्य में लगा रहता हूँ .
व्याख्या : भगवान भी अवतार काल में सदा कर्तव्य , कर्म में लगे रहते हैं , इसलिए जो साधक फल की
इच्छा से रहित और आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्य , कर्म में लगा रहता है , वह आसानी
से भगवान को प्राप्त कर लेता है.
भगवद गीता
प्रस्तुती राकेश खुराना

बुल्ल्हे नालों चुल्ल्हा चंगा , जिस पर ताम पकाई दा

तेरा नाम तिहाई दा, साईं तेरा नाम तिहाई दा
बुल्ल्हे नालों चुल्ल्हा चंगा , जिस पर ताम पकाई दा
रल्ल फकीरां मजलस कीती , भोर भोर खाई दा
रंगड़े वालों खिंगर चंगा , जिस पर पैर घिसाई दा
बुल्ल्हा शौह नूं सोई पावे , जेह्ड़ा बकरा बणे कसाई दा
साईं बुल्लेशाह
सतगुरु परमात्मा का को प्राप्त करने का मार्ग अत्यंत कठिन है . इस मार्ग पर चलने से पहले अपने अहंकार और
स्वार्थ का त्याग करना पड़ता है. बुल्लेशाह इसी को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि हे सतगुरु परमात्मा ! हम बस तेरे
नाम का ही सुमिरन करते हैं .
बुल्ले से तो यह चूल्हा अच्छा है , क्योंकि इस पर कम – से – कम रोटी तो पकती है जिसे फकीर एकत्र होकर अत्यंत
संतोष से बांटकर खा लेते हैं .
अहंकारी से तो वह पत्थर अच्छा है जिस पर पैर घिसकर मैल साफ़ कर लिया जाता है परन्तु अहंकार तो रोज नई
गंदगी इस मन में एकत्र करता है .
सतगुरु परमात्मा को वही प्राप्त कर सकता है जो कसाई का बकरा बनने के लिए तैयार हो अर्थात सतगुरु परमात्मा
को प्राप्त करने के लिए ‘मैं ‘ को मिटाना पड़ता है क्योंकि परमात्मा का मिलन ही जीवन के चरम लक्ष्य की प्राप्ति है

बुल्ले शाह दी काफी

बादशाह औरंगजेब के शासन काल में सय्यद परिवार में लाहौर के कसूर पंडोकी गावं में १६८० में जन्मे अब्दुलाह शाह कादिर को बाबा बुल्ले शाह भी कहा जाता है|बाबा ने पंजाबी गूड रहस्यवाद की अभिव्यक्ति पर कमांड हासिल की और विश्व के सर्वश्रेष्ठ सूफी का रुतबा हासिल किया|इनकी मृत्यु की त७८ वर्ष में हुई बताई जाती है\

प्रस्तुतकर्ता राकेश खुराना .

बादशाह औरंगजेब के शासन काल में सय्यद परिवार में लाहौर के कसूर पंडोकी गावं में १६८० में जन्मे अब्दुलाह शाह कादिर को बाबा बुल्ले शाह भी कहा जाता है|बाबा ने पंजाबी गूड रहस्यवाद की अभिव्यक्ति पर कमांड हासिल की और विश्व के सर्वश्रेष्ठ सूफी का रुतबा हासिल किया|इनकी मृत्यु की त७८ वर्ष में हुई बताई जाती है\