Ad

ममता का सर्वथा नाश होना ही अंत:करण की शुद्धि है: श्रीमद्भगवद्गीता

श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीभगवानुवाच
कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि ।
योगिन: कर्म कुर्वन्ति संगं त्यक्त्वात्मशुद्धये ।
कर्मयोगी आसक्ति का त्याग करके केवल (ममता रहित )इन्द्रियां , शरीर , मन और बुद्धि के द्वारा अंत:करण की शुद्धि के लिए ही कर्म करते हैं ।
व्याख्या : ममता का सर्वथा नाश होना ही अंत:करण की शुद्धि है । कर्मयोगी साधक शरीर -इन्द्रियाँ -मन -बुद्धि को अपना तथा अपने लिए मानते हुए , प्रत्युत संसार का तथा संसार के लिए मानते हुए ही कर्म करते हैं । इस प्रकार कर्म करते – करते जब ममता का सर्वथा अभाव हो जाता है , तब अंत:करण पवित्र हो जाता है ।
श्लोक

Rakesh Khurana On श्रीमद्भगवद्गीता


प्रस्तुती राकेश खुराना

Comments

  1. This is a nice post!